गीत

85 0

तुम्हें चाहने के लिए

तुम्हें चाहने के लिए मैंने नहीं जोड़े हाथ

ना माँगी मन्नत मैंने, ना मैंने बांधे धागे मैंने दुआ में उठे हर हाथ की दुआ को कुबूल हो जाने की दुआ मांगी ! तुम्हें चाहने के लिए मैंने नहीं किया श्रृंगार

मैंने पहनी आज़ादी और किया खुद से प्यार तुम्हें चाहने के लिए मैंने सब बन्धन तोड़े मैंने पंख मन के.. सब उड़ने के लिए खोले तुम्हें चाहने के लिए मैंने नहीं लिखे प्रेम पत्र तुम्हारी चाहत में मैंने प्रेम कविताएँ लिखीं तुम्हें चाहने के लिए मैंने नहीं रखे

उपवास

मैंने चखी है बूंदें बारिश की बुझाई

प्यास

तुम्हे चाहने के लिए मुझे तुम जैसा नहीं मुझे तुम्हारे प्रेम जैसा निश्च्छलहोना था !

 (अनुराधा)

Related Post

पुराने पाटलिपुत्र यानी अब के पटना की विरासत काफी धनी और समृद्ध है।

Posted by - सितम्बर 15, 2021 0
पटना। पुराने पाटलिपुत्र यानी अब के पटना की विरासत काफी धनी और समृद्ध है। पटना के आसपास भी धार्मिक, ऐतिहासिक…

प्रेम

Posted by - दिसम्बर 2, 2022 0
प्रेम क्या है? किसी को पाना या खुद को खो देना? एक बंधन या फिर मुक्ति? जीवन या फिर जहर?…
Translate »
Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial
LinkedIn
Share
WhatsApp