(गीत नारी जब सबला बनकर)

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नारी जब सबला बनकर  दुष्टों का संहार करें,

दूर क्षितिज में खड़े देवता उसकी जय जयकार करें।

नहीं डरो तुम अंगारों से, नवयुग को तुम्हें गढ़ना है,

राह नहीं देगा कोई तुमको पथ पर आगे बढ़ना है।

तुम् ना भूलो नारी अपनी स्वर्णिम उस गौरव गाथा को,

सारी सृष्टि झुकाती जिसे शीश तूने झुका दिया उस विधाता को।

 भूल गई तुम मां अनुसुइया त्रिदेव को बांध लिया,

शिशु बने पालना झूले माता बनकर लाड़ किया।

खड़ी रही देवियां तीनों हाथ जोड़ सम्मान किया,

मुक्त किए देव फिर तीनों सतीओ में स्थान लिया।।

भूल गई तुम मां सीता को,रावण का दंभ था चूर किया,

याचक बनकर के खड़ा रहा, झुकने पर था मजबूर किया।

था बलशाली, बलवान मगर नारी के आगे ढेर हुआ,

विश्व विजेता था जो रावण नारी ने कमजोर किया।।

भूल गई तुम सन् सत्तावन, रण बीच लड़ी मर्दानी थी,

गोरो का सर था काट दिया रानी की गज़ब कहानी थी।

बरछी कृपाण और भालो से, रानी ने वार पे वार किया,

शत्रु को पल में ढेर किया रणबीच वक्ष को फाड़ दिया।।

इतिहास भारतीय नारी का फिर दूर क्षितिज तक जाता है,

भारत की केवल बात नहीं सारा विश्व ही सर को झुकाता है।

इनकी शक्ति को जो कम आंके  वो मूढ़ और अज्ञानी है।

सारी सृष्टि की जननी ये नारी, कहलाती सबकी माता है।।

जब जब नर ने नारी शक्ति को बढ़कर ललकारा हैहमने भी काली मां बनकर, उनका शीश उतारा है।

सुला दिया धरती पर उनको रक्त से उनके पान किया,

शरणागत जो हुए हमारे, उनके जीवन को संवारा है।।

कभी परम की परियां बन कर जीवन में मैं प्यार भरू,

कभी-कभी दुर्गा मां बनकर दुष्टों का संहार करू।

नारी की जहां निन्दा होती परम पिता भी शरमाए,

कर लो नर नारी की वंदना, सर तेरा क्यों झुक जाएं।।

(अनामिका सिंह अविरल) 

(कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश)

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