सिद्धार्थ मिश्रा।
शराबबंदी अकेले नीतीश कुमार नहीं बल्कि सभी दलों के निर्णय सर्वानुमति के आधार पर हुआ था पर गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलने बाली भाजपा द्वारा इसके औचित्य पर सवाल उठाना समझ से परे है। जब नीतीश के साथ थी भाजपा तो उनका चालीसा पढ़ते अघाती नही थी तब भी जहरीली शराब से लोगों की मौत होती थी और आज भी हो रही पर तब भाजपा नीतीश की शान में कसीदे पढ़ती थी और और अब विरोध। दरअसल भाजपा सत्ता से बाहर होने से बेचैन है वह भूल जाती है भाजपा शासित कम से कम 5 राज्यों में में छपरा से भी बड़ी घटनाएं हुई या होती रहती है पर कोई बाबेला नहीं मचता ।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में जो कुछ भी कहा बो शराबबंदी के साथ की कमिटमेंट के पिडे का इजहार मात्र है पर मीडिया इसे बात का बतंगड़ ही बनाने पर तुली है जो निरर्थक है। बिहार में शराबबंदी है तो है लागू रहेगा पियोगे तो मरोगे कह नीतीश ने शराबबंदी के समर्थन में दृढ़ इच्छाशक्ति दूरदर्शिता और बचनवद्धता दिखाई ।उसकी सराहना होनी चाहिये न कि आलोचना बाकी आपकी मर्जी।
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