नेताजी सुभाष की यादों को संजोए दिल्ली का स्वतंत्रता सेनानी कॉलोनी पार्क अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है

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दिल्लीः कल चमन था आज एक सेहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ…..ये हालात है दिल्ली के स्वतंत्रता सेनानी कॉलोनी, नेब सराय, नई दिल्ली -68 का, जहां कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कांस्य आदमकद प्रतिमा को स्थापित की गई थी। जहां एक तरफ भारत सरकार आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मना रही है। वहीं स्वतंत्रता सेनानियों की याद में स्थापित यह स्मृति स्थल आज अपने वजूद पर आंसू बहा रहा है। आपको बता दूं कि अब यह स्थान डी0डी0ए0, शहरी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन चला गया है। आज इस जगह की देखभाल के लिए कोई सरकारी अधिकारी तक नहीं है, यह जगह पूरी तरह से कचरों से भरा पड़ा है। इतना ही नही प्राधिकरण की ओर से भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

जब पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है, इंडिया गेट पर ग्रेनाइट से बनी उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है। लेकिन अफसोस की नेता जी की यादें जहां जुड़ी हैं, जहां कभी स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए बैठकर ताने बाने बुने आज वो अपने विरानगी की दास्तान सुना रही है।

ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 23 जनवरी से इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाने का ऐलान किया। यहां पर पहले ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगी थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली स्वतंत्र अस्थाई सरकार का गठन किया था, जिसका नाम था-आजाद हिंद सरकार। इन्होंने ‘गर्वनमेंट इन एग्जाइल’ का गठन करते ही भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था। बोस को यकीन था कि यह सशस्त्र संघर्ष ही देशवासियों को आजादी हासिल करने में मदद करेगा। बाद में जापान ने अंडमान-निकोबार द्वीप को भी नेताजी की अगुवाई वाली आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया था।

1944 में आजाद हिंद फौज के सैनिकों को संबोधित करते हुए नेताजी ने प्रसिद्ध नारा दिया था, ‘’तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’’ इस सिलसिले को काबिज रखने के लिए प्रधानमंत्री ने जार्ज पंचम की प्रतिमा को हटा दी गई थी, उस खाली पड़े जगह पर आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा को स्थापित कर सच्ची श्रद्धांजलि तो दी, मगर अफसोस की जिस दिल्ली के स्वतंत्रता सेनानी कॉलोनी, नेब सराय, नई दिल्ली -68 में स्वतंत्रता की इबारत लिखी गई आज अपनी बदहाली के साथ अपने पर नजर-ए-इनायत की बाट देख रहा है।

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