पटना: लोकतांत्रिक लोक राज्यम पार्टी के संस्थापक सह राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित कुमार चौधरी ने कहा कि बिहार सरकार में मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों की उपेक्षा की गई है।

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राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री सहित अन्य जगहों पर लिखा है।

उन्होंने कहा कि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में दीक्षा-शिक्षा, चिंतन-मनन के प्रोधा ब्राह्मण जो पुरोहित और गुरु संवर्ग में आते हैं राजनीतिक संस्कार में ब्राह्मण विभूति चाणक्य की स्तुति है।

लेकिन मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों की उपेक्षा की गई है यह ब्राह्मणों के प्रति आपके उपेक्षा भाव को दर्शाती है जो आपके लिए शुभ नहीं है।

जबकि ब्राह्मण प्रतिभा के धनी हैं और उनकी एक ही कामना हैं। जन-जन का कल्याण उसी ब्राह्मण संवर्ग के जागृति के लिए ये वैचारिक आयाम के तहत लोकतांत्रिक लोक राज्यम पार्टी  का यह विचार बीज ब्राह्मणों के चेतना के लिए प्रेम समर्पित और आपके लिए विचारणीय है।

मिथिलांचल के दरभंगा,मधुबनी, झंझारपुर,सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर के अलावा सुपौल, सहरसा और चंपारण में ब्राह्मण मतदाता निर्णायक होते हैं। एक- दौर ऐसा भी था जब मैथिल ब्राह्मणों की सियासत बुलंद हुआ करती थी,चाहे ललित नारायण मिश्रा हो, जगन्नाथ मिश्रा,बिंदेश्वरी दुबे या फिर भगवान झा आजाद हो ।

बिहार चाणक्य की कर्मभूमि है, राजनीति में चाणक्य को एक प्रतीक मानकर बार-बार ब्राह्मणों को श्रेष्ठ रणनीतिकार बताया जाता रहा है।

इसके बावजूद आज बिहार की राजनीति में ब्राह्मणों का एक सिरे से बाहर कर देना ?

बिहार में संवर्ण जातियों में आबादी के आधार पर सबसे बड़ी जाति ब्राह्मणों की है।

आजादी के बाद ब्राह्मण नेताओं का वर्चस्व किसी से छिपा नहीं है।1960 से लेकर 1990 तक रहा वर्चस्व बिहार में करीब 6 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। करीब 20 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण वोटर हार जीत तय करते हैं।

उन्होंने सरकार पर सवाल खड़ा कर दिया है

१ महागठबंधन की नई कैबिनेट में ब्राह्मण साइडलाइन हो गए हैं और जो एक हैं वो आधारहीन है ?

२.नितीश तेजस्वी सहित कुल 35 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में मात्र एक ब्राह्मण नेता ?

३. क्या बिहार की राजनीति में ब्राह्मणों का अब कोई योगदान नहीं है ?

४. क्या बिहार में ब्राह्मणों की कोई अहमियत नहीं है ?

५. क्या बिहार को, मिथिलांचल के ब्राह्मणों की कोई आवश्यकता नहीं है ?

एक समय बिहार की राजनीति में ब्राह्मण की तूती बोलती थी।

1961 में पहली बार पंडित विनोदानंद झा बतौर ब्राह्मण नेता के तौर पर मुख्यमंत्री बनते हैं अक्टूबर 1963 तक पंडित विनोदानंद झा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हैं मार्च 1972 से

जनवरी1973 तब केदार पांडेय मुख्यमंत्री रहे.अप्रैल1975 में डॉ जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री बनते हैं जगन्नाथ मिश्रा ने बिहार की राजनीति में ब्राह्मणों को अलग पहचान दिलाई ।

लोकतांत्रिक लोक राज्यम पार्टी प्रतिभा का कदर करती है देश हित में ब्राह्मणों के योगदान को सम्मान करती है।

 इसलिए बिहार सरकार और केंद्र सरकार से आग्रह है कि इस विसंगति-कुसंगति को दूर करें ।

*1990 के बाद बिहार की राजनीति में ब्राह्मण नेताओं का वर्चस्व कभी नहीं लौटा ?

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