प्यार या प्रेम ….

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प्रेम ..

( स्नेह राजपूत )

जब हम किसी के प्रेम में होते हैं तो प्रेमी को सो गुना सुंदर बना देते हैं हम क्यो..

क्योंकि आंखों में दिल मे उसके प्रति आगाध प्रेम होता है।।

हर पल उसका इंतजार।

हर सांस उसकी याद।।।

दिल का कभी उसकी आँखों मे अटकना कभी मुस्कान में ..

हमारे होंटो का मुस्कुरा देना।।

प्रेम परमात्मा का बहुत ही

अनुठा अनुभव है।।पूजा है ।अर्चन है वंदन है समर्पण है।।जिसके प्रति प्रेम है सब सौप देने का मन होता है।

एक लड़की अगर सब किसी को देना चाहती है तो ये प्रेम ही है।

क्योंकि वही लड़की को अगर कोई देखे भी तो उसको बुरा लगता है।।।।

जहाँ प्रेम है वहाँ पाप हो ही नही सकता।।।

पाप और पुण्य मानसिक और सामाजिक दृष्टि से हो सकता है

वर्ना प्रेम में न पाप न पूण्य

बस दो दिलों का मिलने तृप्ति ओर पूजा है ।।

बस कह लो तो खुद परमात्मा ही है।।

अलग सा.. आनंद ,सुकून ,अंतर्मन में भाव की अजब से बहती शांत और चंचल नदी।।

कोई फर्क ही नही देह का

जवान है ,कम उम्र है…

या बूढ़ी..

( स्नेह राजपूत )

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