बिहार में जातीय गणना पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा जब तक सुनवाई नहीं होती, तक कोई रोक नहीं लगेगी। वहीं इस मामले में अब अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी।
नई दिल्ली/पटनाः बिहार में जातीय गणना पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा जब तक सुनवाई नहीं होती, तक कोई रोक नहीं लगेगी। वहीं इस मामले में अब अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार, उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एक सोच एक प्रयास’ की याचिका न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ के समक्ष 7 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी।
एनजीओ की याचिका के अलावा उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ एक अन्य याचिका शीर्ष अदालत में दायर की गई थी। नालंदा निवासी अखिलेश कुमार द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई थी कि इस कवायद के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, केवल केंद्र सरकार को जनगणना का अधिकार है। इसमें कहा गया, ‘‘मौजूदा मामले में, बिहार सरकार ने आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना प्रकाशित करके केंद्र सरकार के अधिकारों का हनन किया है।” वकील बरुण कुमार सिन्हा के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि छह जून, 2022 की अधिसूचना राज्य एवं संघ विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया था कि बिहार सरकार द्वारा ‘‘जनगणना” करने की पूरी प्रक्रिया ‘‘किसी अधिकार और विधायी क्षमता के बिना” की गई है और इसमें कोई दुर्भावना नजर आती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर इस बात पर जोर देते रहे हैं कि राज्य जाति आधारित जनगणना नहीं कर रहा है, बल्कि केवल लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से संबंधित जानकारी एकत्र कर रहा है ताकि सरकार उन्हें बेहतर सेवा देने के लिए विशिष्ट कदम उठा सके। पटना उच्च न्यायालय ने अपने 101 पृष्ठों के फैसले में कहा था, ‘‘हम राज्य सरकार के इस कदम को पूरी तरह से वैध पाते हैं और वह इसे (सर्वेक्षण) कराने में सक्षम है। इसका मकसद (लोगों को) न्याय के साथ विकास प्रदान करना है।” पटना उच्च न्यायालय द्वारा बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को ‘‘वैध” करार दिए जाने के एक दिन बाद राज्य सरकार हरकत में आई थी और उसने शिक्षकों के लिए जारी सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया था ताकि इस कवायद को शीघ्र पूरा करने के लिए उन्हें इसमें शामिल किया जा सके।
21 जनवरी को पूरा हुआ था सर्वेक्षण का पहला चरण
जाति आधारित सर्वेक्षण का पहला चरण 21 जनवरी को पूरा हो गया था। घर-घर सर्वेक्षण के लिए गणनाकारों और पर्यवेक्षकों सहित लगभग 15,000 अधिकारियों को विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं। इस कवायद के लिए राज्य सरकार अपनी आकस्मिक निधि से 500 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
हाल ही की टिप्पणियाँ