संशोधन के तहत पहली बार शराब पीते पकड़े जाने पर जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से जमानत मिलने का प्रावधान है. यदि अपराधी जुर्माना जमा करने में सक्षम नहीं है, तो उसे एक महीने के लिए जेल जाना पड़ सकता है.
पटना: बिहार मद्द निषेध और उत्पाद संशोधन विधेयक 2022 बुधवार को विधानसभा से पास हो गया. आबकारी मंत्री सुनील कुमार ने कहा कि सभी पहलुओं के अध्ययन और सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद, शराबबंदी कानून में संशोधन किया गया है. उन्होंने कहा कि हम सदन के माध्यम से यह आश्वस्त करते हैं कि किसी निर्दोष को परेशान नहीं किया जाएगा और किसी भी दोषी को छोड़ेंगे भी नहीं. मंत्री ने आगे कहा कि 2230 पुलिस और उत्पाद विभाग के कर्मी जो शराब मामले संलिप्त थे, उन्हें बर्खास्त किया गया है.
संशोधन के तहत ये है प्रावधान
संशोधन के तहत पहली बार शराब पीते पकड़े जाने पर जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से जमानत मिलने का प्रावधान है. यदि अपराधी जुर्माना जमा करने में सक्षम नहीं है, तो उसे एक महीने के लिए जेल जाना पड़ सकता है. एक प्रावधान यह भी रखा गया है कि जब किसी अपराधी को पुलिस द्वारा प्रतिबंध के उल्लंघन के मामले में पकड़ा जाता है, तो आरोपी को उस व्यक्ति का नाम बताना होगा जहां से उसने शराब प्राप्त की थी. वहीं, नए कानून के तहत इस तरह के मामलों में सुनवाई एक वर्ष के भीतर पूरी करनी होगी. यदि पुलिस भरी संख्या में अवैध शराब बरामद करती है तो पुलिस को अधिकार होगा की वो शराब का सैंपल रखकर बाकी बची शराब नष्ट कर दे. पुलिस को ऐसा करने के लिए कलेक्टर की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी.
बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने बिहार मद्य निषेध व उत्पाद अधिनियम के तहत अप्रैल 2016 में राज्य में शराबबंदी लागू की थी. प्रतिबंध के बाद से बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद हैं. जेल जाने वालों में अधिकांश गरीब तबके के ही लोग हैं. अबतक साधारण मामलों में जमानत की सुनवाई में भी कोर्ट में एक वर्ष तक का समय लग रहा था.
वहीं, भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमण ने पिछले वर्ष कहा था कि 2016 में बिहार गवर्नमेंट के शराबबंदी जैसे निर्णय ने अदालतों पर भारी बोझ डाल दिया है. उन्होंने कहा था कि अदालतों में 3 लाख मामले लंबित हैं. लंबे वक्त से लोग न्याय के लिए इंतजार कर रहे हैं और अब शराब से संबंधित मामले अदालतों पर अतिरिक्त बोझ डाल रहे हैं.
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