भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं, उन्हें न्याय का देवता माना जाता है

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मुरली मनोहर श्रीवास्तव

पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करते हैं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार सिद्ध हुआ है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश भगवान चित्रगुप्त करते हैं। विज्ञान ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे ही हजारों वर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया है।

शनि देव को जिस प्रकार सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी कहा जाता है, ठीक उसी प्रकार भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं उन्हें न्याय का देवता माना जाता है।  मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त जी के पास है। अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क में जाएगा, इसका निर्धारण भगवान धर्मराज चित्रगुप्त जी द्वारा ही किया जाता है। भगवान चित्रगुप्त जी भारत (आर्यावर्त) के कायस्थ कुल के इष्ट देवता हैं।

विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा की कई विभिन्न संताने थीं, जिनमें ऋषि वशिष्ठ, नारद और अत्री जो उनके मन से पैदा हुए, और उनके शरीर से पैदा हुए कई पुत्र, जैसे धर्म, भ्रम, वासना, मृत्यु और भरत सर्व वीदित हैं लेकिन भगवान चित्रगुप्त के जन्म अवतरण की कहानी भगवान ब्रह्मा जी के अन्य बच्चों से कुछ भिन्न हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के पहले 13 पुत्र ऋषि हुए और 14 वे पुत्र श्री चित्रगुप्त जी देव हुए। भगवान चित्रगुप्त जी के विषय में स्वामी विवेकानंद जी कहते है कि मैं उस भगवान चित्रगुप्त की संतान हूं जिनको पूजे बिना ब्राह्मणों की मुक्ति नही हो सकती है। ब्राह्मण ऋषि पुत्र है और कायस्थ देव पुत्र हैं।

ग्रंथों में चित्रगुप्त को महाशक्तिमान राजा के नाम से सम्बोधित किया गया है। ब्रह्मदेव के 17 मानस पुत्र होने के कारण वश यह ब्राह्मण माने जाते हैं इनकी दो शादिया हुई, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/नंदनी जो ब्राह्मण कन्या थी, इनसे ४ पुत्र हुए जो भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती/शोभावति ऋषि कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए।

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