यूँ होने को तो प्यार सबको होता है।

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हमको आपको सबको। पर धीरे धीरे करके प्यार के मायने बदलने लगे है । पहले प्यार स्कूल कॉलेज में, एक दूसरे को, हर दिन चोरी चोरी देख कर धीरे धीरे होता था। फिर नोट्बुक इक्स्चेंज होते थे। घर आकर रात को जब पढ़ने बैठते और यूँ ही आख़िरी पन्ना पलटते तो कुछ लिख कर काटा हुआ रहता था । बहुत देर तक देखने से पता चलता था की आपका ही नाम लिख कर काटा हुआ है । और फिर अचानक चेहरे पर एक शर्मो हया वाली मुस्कान आ जाती।

जिसे तुरंत क़ाबू करना होता था की कही कोई देख न ले ओर ये न पूछ बैठे क्यूँ हंस रहे हो । प्रेम में हँसने के भी अलग मायने है। अलग अलग वख्त की हँसी भी जुदा जुदा। वैसे भी छोटे भाई – बहन से बड़ा जासूस तो बॉंड भी नहीं होता है।

फिर यूँ ही नोट्बुक इक्स्चेंज होते रहते। छूट्टी के वक़्त आते जाते नज़रें मिल जाती और मिलते ही झुक जाती। इग्ज़ाम के समय पेपर लाते तो उसमे एक छोटा सा लव नोट यापहला लव लेटर मिलता।

जिसे आप सबसे छुपा कर रख देते। रात को सबके सोने के बाद लैम्प को धीरे से बढ़ा कर धड़कते दिल से पढ़ना शुरू करते। उसमे लिखी हर बात सच लगती। पढ़ने के बाद सारी दुनिया बदली लगती। दुनिया और सपने बड़े थे और हम छोटे। अहसासों में जो कुछ भी घटता सब नया होता। उतना नया जितना पहली बार ट्रेन का सफ़र।

पर एक मुसीबत ये कि लेटर छिपायें कहाँ ? किताब का जिल्द खोलकर उसके अंदर छुपा दिया और न जाने कब उसमें लिखे शब्दों और भावों को जीते जागते सो जाते। बैकग्राउंड कुमार सानू संभाल लेते।

90 के गाने यूँ ही नही रोमांस से मन भर देते हैं। अक्सर ये गाने भी साथ में बजते बजते सो जाते थे। कुमार सानू के गानों का तो यूँ था कि कोई भी कहीं भी बजायें ख़्याल सिर्फ़ उस इंसान का ही आता। अगर उसमें बारिश हो जाये तो दिल में बिना कोई गाना सुने हीं “पहलेप्यार का पहला ग़म ” बजने लगता था। बारिश के बिना तब लगता कि प्यार करना और होना यहाँतक की सोचना भी असंभव लगता। प्यार ऐसे होता था पहले या यूँ कहे यही होताथा प्यार। बिना किसी बोझ को साथ लाय। सब कुछ मासूम और नया।

जिसके लिए सोच कर ही पलकें शर्म से झुक जाये। रात को चाँद को देख कर ये ख़्याल आये की दूर बैठा वो भी चाँद को ही देख रहा होगा और हम दूर बैठे भी एक दूसरे से जूड़े हुए हैं। हम दोनो यूँ दूर बैठे बैठे ही अधूरे चाँद को पूरा कर देंगे। सबकुछ विस्तार से घटता और हम समय का सदुपयोग करते हुये पलों को सदियों में गुज़रने देते।

आजकल तो सोशल नेट्वर्किंग साएट पर मिलते हैं फिर नम्बर इक्स्चेंज होते हैं और चैटिंग शुरू हो जाती है। तीसरे दिन से सेल्फ़ीस इक्स्चेंज होने लग जाता हैं। दो वीक के बाद तो सेक्सटेक्स्टिंग ओर थोड़ा फ़ॉर्वर्ड कपल हो तो बात और आगे बढ़ ही जाती हैं। मैं ग़लत या सही नही जज करने बैठी बस दो अलग अलग समय पर होने वाले एक ही अहसास को महसूस करने में परेशानी और लुत्फ़ के बदल जाने की बात याद कर रहीं हूँ।

ख़ैर सबका अपना अपना नज़रिया होता हैं, मगर एक बार बिना सेल्फ़ीसनेस प्यार को फ़ील करके देखिये। आँखें बंद करके चाँदनी रात में “पहलापहला प्यार है पहली पहली बार है” सुनिये या कोई और गाना। पर महसूस करिये। टेक्नॉलजी ने दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत अहसास को कितना सीमित कर दिया है। बाँध दिया है। सब कुछ फटाफट।थोड़ा ठहर कर महसूस करके तो देखिये अजीब ही रुमानियत में खो जायेंग। जीने की चीज़ को खोने न दीजिये!

ये पढ़ कर किसी ख़ास कि याद आ रही हो, भले वो आपके साथ हों या न हों, तो आप लकी हैं क्योंकि आपने कुछ खोया नहीं बल्कि जिया हैं!

कनक लता चौधरी की कलम से

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