28 अक्टूबर पटना: भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अरविन्द कुमार सिंह ने कहा है कि मा केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी की जम्मू कश्मीर यात्रा ऐसे समय हुई जब प्रदेश को उनकी आवश्यकता थी तथा देश भी जानना चाहता था कि सरकार की नीति रणनीति क्या है। ऐसे समय जब हिंदुओं ,सिख ,गैर कश्मीरियों तथा भारत की बात करने वालों पर आतंकवादी हमले हो रहे हों, आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लगातार मुठभेड़ जारी हो, कोई गृह मंत्री शायद ही जाने का फैसला करता। इसके पूर्व केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर था नहीं और न 370 से विहीन था। इस नाते उनकी यात्रा की तुलना किसी से की भी नहीं जा सकती। अगर तुलना हो सकती है तो स्वयं अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पैदा की गई उम्मीदें और दिए गए बयानों से। उनके हाव भाव और शब्दों में आत्मविश्वास और ओजस्विता की वही झलक थी जो लंबे समय से देश उनके अंदर देख रहा है।
आप हम अमित शाह जी की राजनीति से सहमत असहमत हो सकते हैं, किंतु निष्पक्ष होकर विचार करेंगे तो मानना होगा कि जम्मू कश्मीर के संदर्भ में उन्होंने मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जो कदम उठाया उसने इतिहास न केवल बदला, बल्कि नया अध्याय लिख दिया। 5 अगस्त, 1919 को जब वे संसद परिसर में हाथों में कुछ प्रश्नों का कागज लिए प्रवेश कर रहे थे तो क्या किसी को रत्ती भर भी उम्मीद थी कि आज जम्मू कश्मीर और देश के लिए नासूर बने अनुच्छेद 370 की लीला समाप्त हो जाएगी..? देश के जेहन में उसके पूर्व उठाए गए सुरक्षा के सख्त कदमों के साथ राज्यसभा और लोकसभा में हुई बहस तथा मतदान के दृश्य लंबे समय तक ताजा रहेंगे।
श्री अरविन्द ने कहा है कि निश्चय ही देश और जम्मू कश्मीर में रुचि रखने वाले पाकिस्तान सहित कई देश प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कब जम्मू-कश्मीर आते हैं। सबकी गहरी दृष्टि उनकी यात्रा पर लगी हुई थी।नरेंद्र मोदी सरकार, जम्मू-कश्मीर, देश तथा स्वयं अमित शाह के लिए यह यात्रा सामान्य नहीं हो सकती क्योंकि 370 निरस्त कराने के बाद वे पहली बार कदम रख रहे थे। जम्मू कश्मीर में पिछले दो – ढाई वर्षो में आया परिवर्तन कोई भी देख सकता है। पाकिस्तान, सीमा के इस पार बैठे भारत विरोधी तथा आतंकवादी इसे ही सहन नहीं कर पा रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी आदि की बेचैनी इसीलिए है क्योंकि बदलाव जारी रहा तो राजनीतिक वर्णक्रम पूरी तरह बदल जाएगा। अमित शाह गृह मंत्री हैं तो भाजपा के नेता भी। बगैर राजनीतिक लक्ष्य कोई सरकार काम नहीं करती। उनका राजनीतिक लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब भाजपा और संघ के मुख्य लक्ष्य आतंकवाद का खात्मा ,कश्मीर में भारतीय राष्ट्र का उद्घोष, जम्मू के साथ कश्मीर में भी हिंदुओं, सिखों तथा अन्य गैर मुस्लिमों का पूरे भ्रमित माहौल में अपने धार्मिक सांस्कृतिक क्रियाकलापों के साथ सहज रूप में निवास करना पूरी होती दिखे। मोदी सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति बहुआयामी है।
दुसरी ओर सीमा पर भारत की आखिरी पोस्ट मकवाल सीमा पर अग्रिम इलाकों का दौरा और बीएसएफ के बंकर में जाना, सीमा के गांव में बैठकर जनता से संवाद करना तथा श्रीनगर की सभा में बुलेट प्रूफ शीशा हटाकर लोगों कहना कि मैं आपके बीच बात करने आया हूं डरिए नहीं आदि सुरक्षा के प्रति सरकार की कठोरता और प्रतिबद्धता का संदेश देने तथा लोगों के अंदर सुरक्षा का विश्वास जगाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण था। गांदेरबल के प्रसिद्ध खीर भवानी मंदिर में पूजा अर्चना का संदेश भी स्पष्ट था।शाह ने सरकार के प्रयासों से गठित 4500 युवा क्लब के युवाओं से बातचीत करते हुए कहा कि विकास की जो यात्रा शुरू हुई है उसमें किसी को खलल नहीं डालने देंगे तथा आपको सहयात्री बनाने आया हूं। यहां उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का नाम लेने वालों को मैं बहुत कुछ कह सकता हूं लेकिन कहूंगा नहीं केवल यही कहूंगा कि बगल में ही पीओके है जाकर देख लें कि वहां क्या स्थिति है और यहां क्या। वास्तव में पाकिस्तान का राग अलापने वालों के लिए यही सीधा जवाब था और इसका वहां के युवाओं और लोगों पर कुछ न कुछ असर हुआ होगा। उसकी तुलना वहां शुरू होगी। जम्मू की सभा में अमित शाह अपने सहज रूप में थे जब उन्होंने वहां के राजनीतिक दलों पर हमला करते हुए कहा कि तीन दल मेरे से पूछ रहे थे कि क्या दोगे ,मैं तो हिसाब लेकर आया हूं लेकिन आपने 70 सालों में क्या दिया है उसका हिसाब जनता मांग रही है वह तो दीजिए। 3 परिवार से उनका मतलब जम्मू कश्मीर में शासन करने वाली कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी। फिर उन्होंने वो सारी बातें दोहराई जिनसे वहां के राजनीतिक दल और परंपरागत प्रशासन कटघरे में खड़ा होता है। यानी आम महिलाओं को पूरा अधिकार नहीं मिला ,शरणार्थी नागरिक नहीं बने, बाल्मीकि समुदाय, परंपरागत रूप से रहने वाले गुज्जर और दूसरी जातियों को जमीन तक खरीदने का अधिकार नहीं था और वह सब अब मिल रहा है। भाजपा और सरकार की नीति के अनुरूप उनकी यह घोषणा महत्वपूर्ण थी कि अब तीन परिवार से नहीं गांव में जीतने वाला सरपंच और पंच भी मुख्यमंत्री बन सकता है। उन्होंने गुर्जर लोगों की ओर देखते हुए कहा कि आप भी यहां के मुख्यमंत्री बन सकते हो। इसके साथ उन्होंने अपने दो वायदे प्रखरता से दोहराया – एक -एक व्यक्ति यहां सुरक्षित होगा तथा जम्मू के साथ होने वाला अन्याय अब कभी नहीं दिखेगा।यानी दोनों क्षेत्रों का विकास समान होगा, दोनों को समान महत्व मिलेगा। उनके द्वारा यह साफ करना भी महत्वपूर्ण था कि परिसीमन के बाद चुनाव होंगे तथा आने वाले समय में पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा।
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