स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी: एक ऐसी जानलेवा बीमारी, जिसके सिर्फ एक इंजेक्शन की कीमत है करोड़ रुपये

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रिपोटर पटना से निरंजन कुमार

दुनिया में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनके बारे में अधिकतर लोगों को पता भी नहीं होता, लेकिन वो होती बहुत ही जानलेवा हैं। जैसे कि- स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी, जो कि एक आनुवंशिक बीमारी है। यह बीमारी कई प्रकार की होती है, लेकिन इसमें टाइप-1 सबसे गंभीर होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में हर साल जन्म लेने वाले बच्चों में लगभग 400 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। भारत में भी इसके कई मामले सामने आ चुके हैं। ताजा मामला तीरा कामत नाम की एक बच्ची का है, जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 से पीड़ित है और जिसका इलाज मुंबई के एक अस्पताल में चल रहा है, लेकिन सच बात तो ये है कि इस बीमारी का इलाज भारत में है ही नहीं। 

कितनी खतरनाक है यह बीमारी? 

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी के लिए जिम्मेदार जीन शरीर में तंत्रिका तंत्र के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक प्रोटीन के निर्माण को बाधित कर देता है, जिसके फलस्वरूप तंत्रिका तंत्र नष्ट हो जाता है और पीड़ित बच्चों की मौत हो जाती है। दरअसल, यह मांसपेशियों को खराब कर देने वाली एक दुर्लभ बीमारी है। जब यह बीमारी गंभीर हो जाती है तो बच्चों के दो साल के होने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है। 

इस बीमारी के लक्षण क्या हैं? 

जो बच्चे स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 से पीड़ित होते हैं, उनकी मांसपेशियां कमजोर होती हैं, शरीर में पानी की कमी होने लगती है और स्तनपान करने में और सांस लेने में दिक्कत होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की मांसपेशियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि वो हिलने-डुलने लायक तक भी नहीं रहती हैं। 

जिन बच्चों में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं, वे धीरे-धीरे इतने अक्षम हो जाते हैं कि उन्हें सांस तक लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ जाती है। हालांकि लंबे समय तक बच्चों को वेंटिलेटर पर भी नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि इससे ट्यूब में संक्रमण फैलने का खतरा होता है। 

इस बीमारी में असर करने वाले एक खास इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है, जो अमेरिका से मंगाया जाता है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इस इंजेक्शन की कीमत करीब 16 करोड़ रुपये है। इस इंजेक्शन की खासियत ये है कि यह बच्चों की मांसपेशियों को कमजोर कर उन्हें हिलने-डुलने और सांस लेने में समस्या पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय कर देता है, यानी यह तंत्रिका कोशिकाओं के लिए जरूरी प्रोटीन का उत्पादन शुरू कर देता है जिससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य रूप से होने लगता है। 

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