यूक्रेन को लेकर अमेरिका और रूस के बीच तल्खियां बरकरार हैं। अमेरिका को उम्मीद है कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया इन हालात में भारत बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन के साथ खड़ा होगा और उसकी मदद करेगा। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने नेड प्राइस के मुताबिक, पिछले दिनों मेलबर्न में हुई क्वॉड के विदेश मंत्रियों की मीटिंग में भी यूक्रेन विवाद पर चर्चा हुई थी। प्राइस ने भारत की तारीफ की और कहा- भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय काननों के मुताबिक चलने पर जोर दिया है।
शांति से हल हो विवाद
गुरुवार को मीडिया से बातचीत के दौरान प्राइस ने कहा- क्वॉड मीटिंग के दौरान हर देश ने यही कहा कि रूस-यूक्रेन विवाद का हल जंग से नहीं, बल्कि डिप्लोमैसी से निकाला जाना चाहिए। सभी को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से चलना चाहिए। हिंद-प्रशांत का मामला हो या यूरोप का या फिर दुनिया के किसी और हिस्से का। हम जानते हैं कि भारत हमारा हर उस मामले में साथ देगा जो कानूनन सही हो। ताकत के बल पर सरहदें नहीं बदली जानी चाहिए। बड़े देशों को कोई हक नहीं कि वो छोटे मुल्कों को दबाएं या उन्हें मजबूर करें। हर किसी को अपने साथी चुनने का हक है। प्राइस ने यह बात चीन और रूस के बारे में कही। हिंद-प्रशांत महासागर की बात करते वक्त उनका सीधा इशारा चीन की तरफ था जो इस इलाके में फिलिपींस और वियतनाम जैसे छोटे देशों को धमकाता है।
भारत की बेहद कामयाब डिप्लोमैसी
प्राइस ने साफ कहा कि क्वॉड मीटिंग के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और उनके काउंटरपार्ट एस. जयशंकर के बीच डिफेंस मामलों पर अलग से लंबी बातचीत हुई। हालांकि, उन्होंने इन सवालों का जवाब देने से परहेज किया कि रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने पर स्पेशल एक्ट के तहत प्रतिबंध लगाए जाएंगे या नहीं। दरअसल, प्राइस ने जो नहीं कहा उसे समझा जाना चाहिए। अमेरिका नहीं चाहता कि एस-400 के मामले पर भारत और उसके बीच किसी तरह का तनाव हो, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो रूस और चीन दोनों इसका फायदा उठाएंगे।
यूक्रेन से रूस का विवाद क्या है?
यूक्रेन का पूर्वी भाग रूस के बॉर्डर से लगा हुआ है। सोवियत संघ के विघटन के बाद अधिकांश रूसी मूल के लोग यूक्रेन में बस गए। इस वजह से दोनों देशों के बीच आपसी तालमेल बेहतर था, लेकिन 2014 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के करीबी विक्टर यानुकोविच की सत्ता चली गई। यानुकोविच के हटने के बाद से रूस और यूक्रेन में सियासी टशन शुरू हो गया।
रूस ने इसके बाद यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर हमला कर कब्जा लिया। यूक्रेन को 1954 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव ने क्रीमिया गिफ्ट में दिया था। क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद यूक्रेन ने पश्चिमी देशों से मित्रता बढ़ानी शुरू कर दी। ताजा विवाद यूक्रेन के नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) में शामिल होने की खबर से शुरू हुई। यूक्रेन के NATO में शामिल होने की अटकलों से नाराज रूस ने सीमा पर लाखों सैनिकों की तैनाती कर दी।
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