है 20 वर्षों के संघर्ष की लंबी दास्तान मेरी
धूम धाम से बिक्रम की धरती पर आई थी
ढोल नगाड़े गाजे बाजे से स्वागत हुआ मेरा
मैं और बिक्रमवासी, सभी बड़े उत्साहित थे
मेरा प्रांगण फूल मालाओं से सुसज्जित था
जन-स्वास्थ्य के देखभाल का उद्देश्य जो था मेरा।
पर यह क्या! जब मैं पूर्णरूपेण तैयार हुई
लैश होकर तमाम आधुनिक उपकरणों से
मेरे नाम पर अचानक जद्दोजहद शुरू हो गई
मुझे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का दर्जा दे दिया
मैं हताश परेशान हुई, अंदर ही अंदर खूब रोई
मेरे सारे उपकरणों पर मोटे ताले जड़ दिए गए
औ मेरे उद्देश्यों को पैरों के तले कुचलते देखा मैने।
फिर शुरू हुई मेरे अस्तित्व रक्षा की लंबी लड़ाई
मेरे प्यारे बिक्रम वासियों का अनवरत संघर्ष
धरना दिया, प्रदर्शन किए, कोर्ट केस भी लड़े
बेचारे मेरे समर्थकों की पर किसी ने एक ना सुनी
संसाधन विहीन मेरे शुभचिंतकों ने खूब कोशिश की
असमर्थ रहे पर साबित करने में, औचित्य मेरे स्तित्व की ।
हर चुनाव में नेताओं ने खूब अपनी राजनीति चमकाई
मेरे मुद्दे उछाल कर यदाकदा प्रतिनिधियों ने पाक संसद में
मेरे अस्तित्व की लड़ाई में मेरा साथ देने का स्वांग भी रचा
चुनाव बाद पर ना कोई चर्चा की,ना ही मेरा कभी साथ दिया
होकर मैं घनघोर निराश और हताश, पिछले 10 वर्षों से
बेबस, अपनी काया और उद्देश्य का अवसान देख रही थी।
तब मेरे यही शुभचिंतक फिर से मेरे संघर्ष में आगे आए
“कलम सत्याग्रह” के माध्यम से ये क्षेत्र में अलख जगाए
युवा बुजुर्ग सबने घूम घूम कर, गांव-बाजार चौक-चौराहे
फिर से मेरे अस्तित्व की सार्थकता व औचित्य के समर्थन में
छह महीने तक लोगों को जागरूक कर हस्ताक्षर जुटाया
औ इस जन आवाज को मूक बधिर सरकार तक पहुंचाया।
आज मेरे ये आंसू रूक नहीं रहे, गर्व से सीना चौड़ा है मेरा
कि मेरे अस्तित्व की लड़ाई में मेरे प्यारे बिक्रमवासियों ने
कलम सत्याग्रह के बाद अब जन सत्याग्रह प्रारंभ किया है
मुझे पता नहीं मेरी जर्जर काया का पुनरुद्धार होगा भी कि नहीं!
मुझे पता नहीं कभी मैं इनका इलाज कर भी पाऊंगी कि नहीं!
हे सरकार, क्या इतना कठिन, दुरूह और बड़ा काम है यह!
जिंदगियों की कीमत क्या कुछ करोड़ों से भी कम है??
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