गाँधी मर सकता है पर गांधीवाद नहीं.

2187 0

चूंकि गांधीवाद एक विचारधारा है जबकि गांधी एक व्यक्ति विशेष , और व्यक्ति का मरना शाश्वत है लेकिन किसी विचारधारा या विचार का मरना अर्थात उसकी प्रासंगिकता का समाप्त होना बहुत मुश्किल होता है और जब विचार उस व्यक्ति का हो जिसपर न जाने कितने छात्र शदियों से शोध कर रहे हों।

 मैने जितना अभी तक गांधी जी के बारे में पढ़ा उसके अनुसार मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वो कोई साधारण व्यक्ति नही थे ।एक शक्स जिसकी हर बात का और उसकी विचारधारा का उसके व्यक्तित्व का पूरा विश्व लोहा मानता है इंग्लैंड जिसका सूरज कभी नहीं अस्त होता था अब तो नहीं लेकिन पहले यह मिथक था जो टूट गया उसके अलावा दक्षिण अफ्रीका ले लीजिए,तक ने उनके विचारों को माना और जीवन मे उतारा ,यहां तक कि अमेरिका तक में उनकी मूर्तियां बनी है सारी चीजें हैं ।क्यों?? ऐसा इसलिए क्योंकि वह व्यक्ति ही ऐसा था जिसने अपने व्यक्तित्व की अपने विचारों की छाप इस कदर छोड़ी की लोग उसे अपने जहन में बिठाने के लिए आतुर हुए ।

पहली बात तो उसकी आदत थी विचारधारा ही उसे मान लेते हैं कि समाज को उस वक्त जैसा  तकाजा  होता था वैसे ही उसकी पहलकदमी भी उसके  सामने होती थी ।जब भारतीय आंदोलन के पटल पर महात्मा गांधी का आगमन होता है वह दौर था 1917 का उस पहले आंदोलन में गांधीजी ने इस कदर अपनी छाप छोड़ी और सफलता भी पाई कुल मिलाकर आप यह कह सकते हैं कि अंग्रेजों के विरोध में अगर  किसी आंदोलन में पूर्ण विजय मिली थी तो वह था 1917 का चंपारण सत्याग्रह जो वहां के किसान राजकुमार शुक्ल की मेहनत और पहलकदमी का परिणाम था। यहीं  से गांधी जी के आंदोलन की शुरुआत हुई फिर उन्होंने अपने अनशन,और सत्याग्रह और अहिंसा, विनम्रता के अलावा कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया जिससे ब्रिटिश हुकूमत अपनी बर्बरतापूर्ण  प्रकृति दिखा सके वह तो चाहती थी कि कोई भी ऐसे  आंदोलन की शुरुआत होने पर कोई ऐसा मौका उन्हें  न मिल जाए जिसके जरिए फिरंगी उस  आंदोलन को बर्बरता पूर्वक दबा सकें । ऐसा गांधीजी ने मौका नहीं दिया गांधीजी हर चीज को समझ रहे थे,, अनुभव जीवन में बहुत कुछ होता है बात आती है कि गांधी जी ने ही #आज़ादी में योगदान दिया तो नहीं देखो अगर यह बात करें कि सिर्फ #चरखे से #आजादी आई है तो इससे हम बिल्कुल सहमत नहीं है  योगदान है सबका कहीं ना कहीं हमारे क्रांतिकारी चंद्र  शेखर आजाद, भगत सिंह ,सुभाष चंद्र बोस, सुखदेव , बसंत विश्वास, मनमत विश्वास, लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल , आदि ने भी सब कुछ न्योक्षावर किया  लेकिन  अगर देखा जाए तो इनका विरोध कहीं न कहीं दबा दिया गया  वो चाहे गिरफ्तारी के जरिये या धोखाधड़ी के जरिये उन्हें पकड़ने की बात हो ।लेकिन अगर आज़ादी और क्रांति का बीज बोने तथा उस पौधे को पालने की बात आये तो हम दावे के साथ कह सकते हैं कि सारा श्रेय गरम दल के नेताओं को जाता है ऐसा मेरे हिसाब से है और सत्य भी।

 इसीलिए गांधीजी का विचार यह था कि कुछ ऐसा ना किया जाए जिसके जरिए कोई समस्या पैदा होने पाए इसलिए उन्होंने व्यवहारिकता का प्रयोग किया और जनता को साथ में लाने का व्यवहार और विश्वास जताया। और एक बात वजह गरम दल के नेता ही थे जिससे अंग्रेज डरते थे , वो जानते थे गांधी जी को यदि कुछ कहा गया तो ये लोग छोड़ेंगे नही  लेकिन बेचारे गांधी जी ये बात कभी नही समझे अगर ये बात समझते तो जो उनपर दो चार आक्षेप आज लगते हैं शायद वो न लगते , खैर वैसे भी पूर्ण होने इंसान की प्रकृति से परे है ।

उसके बाद चाहे नमक सत्याग्रह अथवा डांडी मार्च फिर भारत छोड़ो आंदोलन हो गया और तमाम सारे  विरोध हुए उसमें गांधीजी बराबर  सहयोग किया और हद तक सफल भी हुए ।

 मुझे जो सबसे ज्यादा प्रभावित की है वह घटना है नोआखली (कोलकाता) , का नरसंहार जो आज़ादी के तुरंत बाद का हिन्दू मुस्लिम नरसंहार था,वहां पर सीधे सीधे लोग काटे जा रहे थे , गांधी जी जानते थे सम्भव है कि  मुझे मार दिया जाए लेकिन उसकी परवाह न करके उन्होंने उन दंगो को रोकवाने का प्रयास किया और लोग माने भी ।

अब अगर बात कीजिए कि जाए गांधीजी को क्या मिला तो गांधीजी चाहते तो भारत के पहले प्रधानमंत्री हो सकते थे गांधी जी चाहते  तो भारत के पहले राष्ट्रपति हो सकते  थे लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं मांगा अंत मे उन्होंने कहा भी की अब देश आजाद हो  गया है अब हर भारतीय गांधी है ,, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है ।

 यही विशेष चीजें हैं जो महात्मा गांधी में हमें देखने को मिलती हैं।

अगर बात करे क्या है गांधी वाद तो वो यही आदर्शवादी विचारों के  साक्ष्य ही गांधीवाद हैं और विचारधारा भी । एक ही व्यक्ति था जिसके सामने ब्रिटिश हुकूमत झुकी वो थे गांधी जी और वो पहली घटना थी चंपारण सत्याग्रह ,, अथवा नील विद्रोह।

 इन्ही वसूलों की बदौलत गांधी जी ने कहा कि गांधी मर सकता है लेकिन गांधीवाद नही ।

हम सब उस राष्ट्रपिता से बहुत कुछ सीखें ऐसे ही नहीं नेताजी सुभाषचंद्र बोस  जी ने गांधी जी को राष्ट्रपिता कहा।।

लेकिन हमारे समाज मे चंद अल्प ज्ञान रखने वाले लोग इस महापुरुष पर उंगली उठाते हैं यह बात बिल्कुल अशोभनीय है हमे अपने इतिहास पर उंगली उठाने के बजाय उसकी गरिमा को बढ़ाने की सोचना चाहिए  ,,इन अल्प ज्ञान वालों का कोई अधिकार नही बनता क्योकि जो शोध कर रहा है उनपर वो तो समझ नही पाया तो तुम सब क्या।। बाकी मेरी गुजारिस है ऐसी  भद्दी सोच वाले लोग  एक बार सत्य के प्रयोग  or myexperimentwithTruth  जो गांधी जी की जीवनी है जरूर पढ़ लें सब समझ जाएंगे।।

आज 2 अक्टूबर है आज 2 महापुरूषों का अवतरण दिवस है एक तो बापू दूसरे हुए लाल बहादुर शास्त्री इनके बारे में क्या कहूँ आप इनके नाम का अर्थ ही देख कर सब समझ लीजिए ,,

लाल –  कीमती रत्न

बहादुर- वीर

शास्त्री – सादगी भरा व्यक्तित्व( वैसे ये आध्यात्मिक शब्द है     शास्त्री जिसकी परिभाषा हम असमर्थ है

सिद्धार्थ मिश्रा

Related Post

क्या “बेटी दिवस” मनाने मात्र से ही होंगी सुरक्षित बेटियां?

Posted by - सितम्बर 26, 2021 0
आज “अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस” है। पूरी दुनिया के साथ हिंदुस्तान भी “बेटी दिवस” मनाता है, लेकिन बेटियों को पूर्ण सुरक्षा…

महिलाओं को सशक्त करना है, मानवता में नया रंग भरना है : डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी

Posted by - अगस्त 20, 2022 0
रिपोर्ट: सिद्धार्थ मिश्रा धर्मशास्त्रों में नारी को पूज्य मानते हुए उन्हें ऊँचा स्थान दिया गया है| नारी को जननी भी…
Translate »
Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial
LinkedIn
Share
WhatsApp