जमीन मालिक के पक्ष में फैसला आने के बाद भी सरकारी दफ्तर ज्यों का त्यों, जमीन के हकदार लगा रहे न्याय की गुहार!

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अररियाः जहां एक तरफ राज्य सरकार भूमि सम्बन्धी समस्याओं को निबटाने के लिए नित्य नए कठोर नियम बना रही है, ताकि हर किसी की भूमि सुरक्षित और संरक्षित रहे। लेकिन दूसरी तरफ जमीन पर कब्जा करने का मसला हल होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है। आम लोगों के बीच या फिर पारिवारिक झगड़े का भूमि के लिए होना आम बात है। मगर जब सरकारी दफ्तर ही आम जनता की भूमि पर कब्जा जमा ले तो सोचिये जमीन का मालिक आखिर किससे गुहार लगाए। इतना ही नही मामले में कोर्ट का जजमेंट आ जाये बावजूद इसके अपनी भूमि से ही हकदार वंचित रह जाएं तो इसे क्या कहेंगे। अब हम बात करते हैं विस्तार से
अररिया में जो मामला सामने आया है कि इसे किसी और ने नहीं बल्कि जिला कृषि कार्यालय परसिर व कृषि फर्म निजी जमीन पर ही निर्माण करा दिया गया है। ज्ञात हो कि इस जमीन को लेकर न्यायालय में चल रहे मुकदमा में जमीन मालिक के पक्ष में फैसला भी दे दिया गया है,कोर्ट ने दो एकड़ 40 डिसमल जमीन खाली करने का आदेश विभाग को दिया है।

बावजूद उसके इस जमीन को लेकर कोई उचित कार्रवाई नहीं की जा रही है। कोर्ट के आदेश आने के बाद जमीन मालिक जयंत लाल श्रीवास्तव, गोपी लाल श्रीवास्तव व अन्य लोगों ने अपने हक के लिए स्थानीय कार्यालय के सीओ ऑफिस में भूमि की पैमाईश करने के लिए शुल्क को जमा करा दिया है। इस संदर्भ में निर्धारित तिथि को द्वित्तीय पक्ष जिला कृषि पदाधिकारी की मौजूदगी में मापी का काम शुरु हुआ लेकिन सरकारी अमीन संजीव कुमार असहयोगात्मक रवैया की वजह से मापी का कार्य समय पर नहीं हो सका। बता दें कि कृषि कार्यालय परिसर व कृषि फार्म की भूमि में दो एकड़ 40 डिसमल जमीन का खतियान किशन लाल प्रसाद व बिशन लाल प्रसाद ककुड़वा के नाम दर्ज है। उनके पुत्र जयंत लाल श्रीवास्तव, गोपी लाल श्रीवास्तव आदि जमीन का लगान भी देते आ रहे हैं। उक्त जमीन को लेकर 2011 में न्यायलय में टाइटल सूट संख्या 108/2011 दायर किया गया है।

इस मामले में सब जर्ज तृतीय ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया। इतना ही नहीं इस भूमि के कुछ अंश शेख रियासत ने बसंतपुर में केवाला खरीदारी की थी। उस जमीन के लिए मो. अकबर लगातार सरकार के मुलाजिमों से गुहार लगा रहे हैं बावजूद इसके कार्य में किसी प्रकार की प्रगति नहीं दिख रही है। इस पूरे मसले से पीड़ित परिवार के लोग कहते हैं कि अब इसका मुख्यमंत्री के जनता दरबार में ही उचित फैसला हो पाएगा। इतना सबकुछ हो जाने के बाद अगर न्याय नहीं मिलेगा तो राज्य सरकार द्वारा बनाये गए नियमों के तहत आम आवाम अपनी भूमि से वंचित रह जायेगी तो सरकार ही सवालों के घेरे में खड़ी हो जाएगी।

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