25 सितंबर को पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. चौधरी देवीलाल जी की जयंती है। इस मौके पर हरियाणा के जींद में एक रैली बुलाई गई है। रैली में देश भर के समाजवादी नेताओं का जुटान होगा। कोशिश है कि भाजपा गठबंधन और कांग्रेस गठबंधन से अलग राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे मोर्चा बने। मोर्चे के निर्माण का जिम्मा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री, स्व देवीलाल के पुत्र इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता ओम प्रकाश चौटाला ने ली है। गौरतलब है कि श्री चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में अपनी सजा औपचिरक रूप से पूरी कर 02 जुलाई 2021 को तिहाड़ जेल से बाहर आए हैं। चौटाला की पार्टी क्षेत्रीय पार्टी है। देश की अधिकांश समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियां क्षेत्रीय हैं। लिहाजा, सभी क्षेत्रीय दल के नेता एक साथ मिलकर राष्ट्रीय चरित्र को अपनाएं, चौटाला यही चाहते हैं। उनकी कोशिश को समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव, सिरोमणी अकाली दल प्रमुख प्रकाश सिंह बादल, पूर्व प्रधानमंत्री (जनता दल सेकुलर, प्रमुख) एच डी देवेगौड़ा ने खुलकर समर्थन दिया है। रैली में शामिल होने के लिए शरद पवार, ममता बैनर्जी, फाऱुख अब्दुल्ला, जयंत चौधरी जैसे क्षेत्रीय दिग्गजों को भी निमंत्रण मिला है। 01 अगस्त 2021 को अपने दिल्ली प्रवास के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सहयोगी के सी त्यागी के साथ ओम प्रकाश चौटाला से मिलने उनके निवास स्थान गुड़गांव जाते हैं। इस मुलाकात के बाद से तीसरे मोर्चे की हवा आंधी में तब्दील होने लगी।
क्या नीतीश शामिल होंगे इस मोर्चे में?
11 सितंबर को जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने साफ किया कि नीतीश कुमार प्रस्तावित रैली में शामिल नहीं होंगे। हालांकि नीतीश कुमार के प्रतिनिधि के तौर पर के सी त्यागी शामिल होंगे। जदयू के इस स्टैंड ने राजनीतिक गलियारे में एक नई बहस की शुरूआत कर दी।
अब मुद्दा यह है कि क्या नीतीश कुमार फिलहाल बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहते? या नीतीश कुमार प्रस्तावित रैली के आलोक में तीसरे मोर्चे की जमीनी हकीकत को समझ लेना चाहते हैं? दरअसल प्रदेश की राजनीतिक चौसर जो संकेत दिया जा रहा है उससे लगता है कि जद यू और बीजेपी की राहें कभी भी जुदा हो सकती है। नीतीश कुमार के लिए कांग्रेस के स्थानीय नेता भी प्यार झलकाते रहे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी से भी उनके लिए पीएम मैटेरियल होने का दावा किया जाता रहा है।
जदयू की आंतरिक राजनीति
जदयू संसदीय दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा लगातार इस नीतीश कुमार को पीएम मेटैरियल बता रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार ने स्वयं इसका खंडन किया है। जदयू की आंतरिक राजनीति में इस समय पार्टी साफ तौर पर दो खेमे में बंटी हुई है। एक खेमा पार्टी के केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का है। दूसरा खेमा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा का है। जबसे आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री बने हैं खुले तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर रहे हैं। दूसरा खेमा नीतीश कुमार को पीएम मेटैरियल बताने लगा है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि नीतीश कुमार के अंदर एक बार फिर से पीएम बनने की हसरत जाग उठी है। लेकिन इस बार 2014 वाली जल्दबाजी करने के मूड में सीएम नहीं हैं।
नीतीश कुमार साल 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा से अलग अपनी ताकत को आजमा चुके हैं। बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से इनके हिस्से मात्र दो सीट आई थी। इनको 16 प्रतीशत के करीब मतदाताओं का आशीर्वाद मिला था। बिहार की क्षेत्रीय राजनीति में नीतीश कुमार अपने बुते सम्मानजनक सीटें ना तो लोकसभा में प्राप्त कर सकते हैं और ना ही विधानसभा में। ऐसे में नीतीश के लिए तीसरे मोर्चे में जाने का सीधा सा मतलब है बिहार को छोड़ना। नीतीश कुमार इसबात को समझते हैं कि कथित तीसरे मोर्चे की राजनीतिक ताकत बिहार में शून्य है। बिहार में नीतीश के अलावा जो क्षेत्रीय दल ताकतवर है वो है लालू प्रसाद यादव की पार्टी (राजद) राष्ट्रीय जनता दल। फिलहाल राजद कांग्रेस के साथ अपनी दोस्ती निभा रही है। कई कानूनी पचड़े में फंसे लालू प्रसाद यादव की मजबूरी है कि वो हर हाल में दिल्ली में कांग्रेस जैसी बड़ी और राष्ट्रीय दल के साथ रहे। दूसरी बात यह भी है कि अगर राजद जैसी पार्टी प्रस्तावित तीसरे मोर्चे से गायब रहती है तो बिहार जैसे बड़े राज्य में तीसरा मोर्चा माहौल तो बना सकता है लेकिन सीट जीतना दूर की कौड़ी होगी। हालंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि तमाम क्षेत्रीय दलों में नीतीश कुमार का ही चेहरा राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपा और गैर कांग्रेस में सबसे अधिक स्वीकार्य है।
कैसा होगा तीसरा मोर्चा?
कैसा होगा तीसरा मोर्चा? यह सवाल 25 तारीख के बाद शायद जवाब पाने की स्थिति में हो। फिलहाल तीसरा मोर्चा में जीतनी पार्टियों ने खुलकर आने की बात की है वे सभी राजनीतिक आईसीयू पड़ी पार्टियां हैं। इनेलो खुद पिछले 16 साल से सत्ता से बाहर है और अपनी ही प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल की हैसियत में भी नहीं है। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश मे मुख्य विपक्षी दल है जरूर लेकिन इसकी हालत लिजलिजी सी है। जाट राजनीति के साथ पहचान बनाने वाले अजीत सिंह के सुपुत्र जयंत चौधरी चुनाव हारे हुए हैं। वहीं किसान आंदोलन के नाम पर राकेश टिकैत का उभार इनके राजनीतिक भविष्य पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। कर्नाटक में जनता दल सेकुलर कभी भाजपा कभी कांग्रेस तो कभी स्वतंत्र होकर अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है। 2019 लोकसभा चुनाव में 9.47 प्रतिशत वोट प्राप्त कर इस दल का एक सदस्य चुनाव जीतने में सफल रहा। तेलंगाना (17 लो.स) सीएम के सी राव, आंध्र प्रदेश (25 लो.स) के मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी, ओडिसा (21 लो.स) के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल (42 लो.स) की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, ये तमाम क्षेत्रीय नेता अपने प्रदेश में ताकतवर हैं। इन सभी ने तीसरे मोर्चे पर अपनी स्थिति साफ नहीं की है। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने खुलकर कहा कि बिना कांग्रेस को साथ लिए भाजपा गठबंधन को कोई भी मोर्चा हराने में कामयाब नहीं होगी। हालांकि शरद पवार के इस बयान को ओम प्रकाश चौटाला खारिज कर चुके हैं।
जुगनुओं की कोशिश ‘सूरज को बदला जाए’ 22 जून 2021 को शरद पवार के नेतृत्व में उनके दिल्ली स्थित आवास पर राष्ट्र मंच के बैनर के नीचे विपक्ष के बड़े नेताओं की बड़ी जमघट हुई थी। गौरतलब है कि इसमें कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल हुई थी। कांग्रेस और नीतीश कुमार दोनों इस भीड़ से अलग रहे। इस मंथन से भी किसी नई ताकत के जन्म लेने की उम्मीद थी। परिणाम क्या निकला यह किसी को पता नहीं। हाल में ही कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी दूसरे दलों के बड़े नेताओं के साथ मीटिंग की थी। इस बात में कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस से इतर एक तीसरे विकल्प की तलाश हो रही है। लेकिन, इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि इस तलाश में वे ही ज्यादा सक्रिय हैं जो या तो अपनी सत्ता गवां चुके हैं या जिनके पास अब गंवाने के लिए कुछ नहीं बचा। राजनीति संभावनाओं का खेल है। तीसरा मोर्चा एक संभवाना है। इसके संभावित नेता में नीतीश कुमार का नाम है। लेकिन भाजपा के नूरा कुश्ती करते हुए सत्ता सुख भोगने वाले नीतीश क्या जुगनुओं की जमात में शामिल होंगे या जैसे चल रहा है वैसा ही चलेगा? पीएम मेटैरियल नीतीश के सामने यक्ष प्रश्न है।
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