जैविक नाभिकीय युद्ध का संक्षिप्त परिचय – सुमिता धीमान

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जैविक नाभिकीय युद्ध का संक्षिप्त परिचय- सुमिता धीमान

जैविक नाभिकीय युद्ध genes के लिए हो रहा है। जैविक नाभिकीय युद्ध अर्थात Bio nuclear war (BNW) इस वक्त हमारी धरती पर चल रही है। जैसे जापान मे nuclear war हुई थी। ठीक ऐसे ही Bio nuclear war होती है। यह युद्ध शैली अदृश्य, अंजान, अनकही, अनसुनी, अनसुलझी, अविस्मयकारी, अकल्पनीय, असंभव (इंसानो के लिए) है। क्योंकि यह रणनीति पराभौतिक शक्तियो और देवीए शक्तियो की है। जैविक नाभिकीय रणनीति के तहत हम इंसानो को इसके बारे मे कुछ भी नही बताया गया है। क्योंकि BNW रणनीति के तहत हमे बहुत ही भ्रम, अज्ञान और designer psyche or designer society मे रखा गया है। हमे तो पता ही नही कि genes/गुण देखे भी जा सकते है या इन्हें मन चाहे ढंग से इस्तेमाल भी किया जा सकता है। और इनमे क्या क्या करिश्माई कार्य करने की असीम, अनंत, अकल्पनीय क्षमता होती है। Genes पल क्षण मे चमत्कार सा लगने वाला कोई भी कार्य कर देते है।

BNW इन्हीं चमत्कारी genes के लिए हो रही है। ऐसे चमत्कारी genes/गुण को मैने Atomic genes, Atomic genome (आणविक गुण और आणविक गुण सारणी) or Divine genes का नाम दिया है। क्योंकि आणविक गुण और आणविक गुण सारणी अणु/atom को नियंत्रित करना और अपने मन चाहे ढंग से इस्तेमाल करना जानती है। हम इंसानो को यह युद्ध बेशक दिखाई नही देता। पर इस युद्ध को scientifically or logically सिद्ध किया जा सकता है। इन प्रगाढ़ तथ्यो के द्वारा इस नई रणनीति के बारे मे अध्ययन करते करते हम एक पूरी तरह से नई, विस्मयकारी दुनिया, जिसे मैने भ्रमित और रचित समाज कहा है मे पहुँच जाते है।

इंसान ओर चींटी – अब हम विचार करते है कि विकास करते करते हमारे साथ क्या मजाक हुआ। हम और ज्यादा विकसित हुए या हमे बहुत जबरदस्त अँधेरे में रखा गया। हम देखते है कि हम क्रमिक विकास के सिद्दांत से विकसित नहीं हुए हैं । इस क्रमिक विकास मे तो चींटियाँ भी हमसे अच्छी है। हम सर्वश्रेष्ठ इंसान चींटियों के भी स्तर के नही रहे। चींटियाँ तो पूरी तरह से आत्म निर्भर, आत्म कुशल या अपने आप के लिए पर्याप्त है। क्या ऐसा हम इंसानो के लिए कह सकते हैं ?
(1) अनुकूलन : — वह हर तरह के मौसम से दो चार होना जानती है।
(2) बढिया नक्शा नवीस : — वह बिना किसी स्कूल, कॉलेज & यूनिवर्सिटी गए, बिना किसी वास्तु-कला,आर्किटेक्चर की डिग्री के, बिना किसी भी तरह के अनुभव के अपने घर की समस्या का समाधान करने मे सक्ष्म होतीं है। इनका जीवन काल इतना छोटा होता है कि पढ़ाई लिखाई के लिए और किसी भी तरह के अनुभव लेने की बात ही नहीं उठती। इन्हे पता होता है कि घर बनाने के लिए कौन सी जगह ठीक रहेगी। क्योंकि हर तरह की मिट्टी और जगह इनके घर बनाने के लिए उचित नहीं होती। फिर सिर्फ इतना ही नहीं यह अपने घर मे अलग अलग कामों के लिए अलग अलग चेंबर/कमरे बनातीं है। इनके छोटे से दिमाग को पता होता है कि कौन सा कमरा बच्चों को पालने के लिए बनाया गया है, कौन से कमरे मे खाना रखना है, किस कमरे मे कूड़ा करकट रखना है ओर किस कमरे मे रानी होगी। इनके बनाए घर हर तरह के मौसम ओर हालातों का सामना करने के लायक होते है। इनके घरों मे वेंटिलेशन का पूरा पूरा ध्यान रखा होता है। पता नहीं कौन इन को ये सब बातें बताता है ?
(3) मौसम का पूर्वानुमान : — हमारी तरह इनके पास बहुत शक्तिशाली कंप्यूटर्स भी नहीं होते, जो इन्हे मौसमो के बारे मे जानकारी दे सके। पर फिर भी ना जाने कैसे इन्हें मौसम के मिजाज का पता चल जाता है। बारिश होने से पहले यह अपना भोजन इकट्ठा करने का कार्यक्रम बीच मे ही छोड़ अपने घरों मे वापिस चली जातीं है। कमाल है इन्हें मौसोमो की जानकारी होती है और हमे नही।
(4) सहज अनुभूति : — इन छोटे छोटे से अधने प्राणियों को कौन बताता है कि यह यह मौसम इनके लिए सही है ओर यह यह मौसम नहीं, जो यह विषम परिस्थितियों के लिए पहले से ही खाना इकट्ठा कर लेती है। क्या हम इंसानो के पास ऐसी सुविधा है ? क्या हमे पता होता है कि अब बाढ़ आएगी या सूखा पड़ेगा। पहले से ही कोई बंदोबस्त कर लो ? हमारा अति विकसित दिमाग और इन्द्रियाँ कुछ नही बताती।
(5) सूँघने की क्षमता : — इन नदारद प्राणियों की सूँघने की क्षमता हम इंसानो से ज्यादा होती है। इन्हे पता चल जाता है कि बंद डिब्बे मे क्या है पर हमे नही।
(6) थकावट : — इन्हें थकावट भी नही होती। यह सारे दिन और रात काम कर सकतीं है।
(7) रात्रि दृष्टि :— यह रात को भी बड़े आराम से काम कर लेती है। इन्हे कोई परेशानी नही होती।
(8) जलना :— यह भरी दोपहर मे भी बड़े आराम से काम कर लेती है। इन्हे गर्म जमीन से कोई नुक्सान नही होता। इनके पैर नही जलते और ना ही बदन को गर्मी लगती है और लू लगती है।
(9) प्रकृतिक जैविक हथियार : — यह अपनी हैसियत के हिसाब से बहुत ही अच्छे प्राकृतिक जैविक हथियार (natural biological weapons) रखतीं हैं। खतरे मे, जरूरत पड़ने पर यह काट कर इंसानो की भी बस करवा देती है।
(10) हिम्मत : — इंसान ओर चींटी के साइज़ ओर भार की तुलना करने पर पता चलता है कि हम इनसे बहुत ही बड़े प्राणी है पर फिर भी यह इंसानो को काटने की हिम्मत कर लेती है। हम इंसान बिल्ली, चूहों, शेर ओर हाथी आदि को काट सकते है ? अगर काटे भी तो कितना नुक्सान पहुँचा सकते है ?
(11) भार उठाने की क्षमता : — चींटियाँ अपने भार से 50 X ज्यादा भार उठा लेतीं है ओर हम अपने शरीर के वजन के हिसाब से कितना भार उठा सकते है ?
(12) योग्यता : — इनके पास मिट्टी खोदने के लिए बहुत ही उत्तम औज़ार होते है। पर हम इंसानो के पास ऐसा भी कोई औज़ार नहीं है। हम सख्त मिट्टी को जरा भी नहीं खोद सकते पर यह चींटियाँ झट से यह काम कर लेती है। हमे मिट्टी खोदने जैसे मामूली से काम के लिए भी औजारों की जरूरत पड़ेगी।
(13) गुरुत्वाकर्षण बल : — यह बहुत ही आराम से गुरुत्व आकर्षण के बल से बाहर निकल जातीं है पर हम इंसान इस बल से बाहर निकलना नहीं जानते। यह इस बल से बाहर आ जाती है तभी यह दीवार पर ओर छत पर चढ पातीं है।
(14) अंधेरे मे देखने की योग्यता : — चींटियाँ बड़े ही आराम से अपने भूमिगत/अंडर ग्राउंड घरों मे बिना बिजली के सब कुछ साफ साफ देख लेती है। क्या हम किसी भूमिगत बंद घर मे कुछ साफ देख सकते है ?
(15) ऑल राउंडर : — बिना हमारी तरह विकसित हाथ, पाँव ओर दिमाग के, बिना पढ़ाई लिखाई के यह अपने सारे काम बहुत ही सुचारू ढंग से करने मे सक्षम है। यह अपने बच्चों की बहुत ही अच्छे ढंग से देख भाल करतीं है। हम इंसान सब तरह की समझ ओर बोध होने के बावजूद भी इंसानो के बच्चे कई कई तरह की बीमारियाँ ओर परेशानियों से ग्रस्त रहते है।
(16) प्रजनन तंत्र :— इन्हे प्रजनन के मामले मे कोई परेशानी नहीं होती पर हम इंसानो को इस से जुड़ी कितनी परेशानी होती है। अभी हमारे गुण/genes बहुत ही बढिया है। पर बहुत ही निक्कमा काम करते है। कभी बच्चा ही नहीं होता, कभी हो जाए तो बच्चा ही जीवित नहीं रहता ओर ढेर सारे पंगे, पर चींटियों का जीवन बहुत ही सुचारू रूप से, शान्ति से चलता है। पर हमारा सब से ज्यादा विकसित शरीर, दिमाग हमे कोई ना कोई परेशानी से ही ग्रस्त रखता है।

हम इंसानो को अब यह सोचना शुरू कर देना चाहिए कि हम इस क्रमिक विकास मे विकास करते करते कहाँ पहुँच गए है ? इन करोड़ों सालों के विकास मे हमने क्या क्या हासिल किया ओर क्या क्या खोया ? हम इस क्रमिक विकास मे सिर्फ मूर्ख ओर अपंग बन कर ही रह गए है।

यात्राएँ : — यह मुद्दा भी यही सिद्ध करता है की हमारा समाज जैविक नाभिकीय युद्ध के हिसाब से रचित (designer) है। पुराने समय में अपनी धार्मिक आस्था, जिज्ञासा, खोजी प्रवृति के कारण, जरूरतें और उद्देश्यों (needs & objectives) के कारण इंसानो ने कई बड़ी बड़ी यात्राएँ की। ये बड़े बड़े खोज अभियान किए भी तब जब technology ना के ही बराबर थी। और सुविधाएँ भी कुछ खास नही होती थी तब। कोलम्बस, वास्को डा गामा, ह्वेनसांग, गुरु नानक देव जी आदि लोगों ने बहुत लम्बी लम्बी यात्राएँ की हैं। समुंद्री यात्राओं के दौरान, खोज अभियानों मे कभी कभी हफ़्तों या फिर महीनो कोई तट दिखाई नही देता था। और जहाजियों को लगातार विशाल, विकराल समुन्द्र मे सफर करना पड़ता था। सूखा राशन तो चलो ख़राब नही होता। माँसाहारी के लिए समुन्द्र एक खेत की तरह है। पर पानी, पानी का क्या ? कितना पानी वो लोग अपने साथ store कर ले जाते थे ? तब bisleri bottles तो उपलब्ध नही होंगी। पीने का पानी कितने दिन सम्भाल कर रख सकते हैं ? वैसे भी नहाने धोने, कपडे धोने, बर्तन धोने, सफाई करने और खाना आदि बनाने में कितना पानी इस्तेमाल होता है।


चीनी यात्री ह्वेनसांग जो भारत आया था महात्मा बुद्ध और बौद्ध धरम की जानकारी हासिल करने के लिए। Uffff , OMG क्या उन दिनो malls, super markets, five star hotels, Gucci, Armani के showrooms, laundry etc रास्ते में उपलब्ध थे ? सुरक्षा के सब इंतजाम थे ? तन्हाई, अकेलापन, home sickness अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसाद है। क्या तब वीरान, विशाल वियावान में google map, GPS की सुविधा थी ? गर्मी, सर्दी, बरसात, बर्फ़बारी, आंधी, तूफान, रेगिस्तान आदि क्या क्या ह्वेनसांग ने रास्ते मे आते जाते नही देखा होगा ? ऐसे मे ह्वेनसांग भारत से ढेर सारी बौद्ध धर्म की और बौद्धि साहित्य की किताबे, कई और दूसरी किताबे कुल लगभग 600 + किताबें, अपना यात्रा विवरण (यहाँ यहाँ वो घूमा, ठहरा, तरह तरह की चीजें देखी, अनुभव, जगहो आदि के बारे मे लिखित विवरण) ले कर अकेला प्रकृति के साथ हँसते-खेलते कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बारिश, कभी बर्फ़बारी, कभी पहाड़, कभी नाले, कभी रेगिस्तान, तो कभी तूफ़ान, आँधी तो कभी कोई हिंसक जंगली पशु आदि मे अपने सामान के साथ सही सलामत पैदल चीन वापिस पहुँच गया। Really tooooo much। यहाँ लोगों को आराम से घर बैठे सुबह या शाम की चाय ना मिले तो सिर दुखने लगता है। बिना पंखे के गर्मी/लू लग जाती है और AC में जुकाम, जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है।
यह 630 ई के आस पास भारत आया था। और भाषा, अगर भाषा का उचित ज्ञान ना हो तो स्थिति कुछ ऐसे ही हो जाती है जैसे Coloured LED 85 cm (दुनिया) without electric current। ह्वेनसांग अपनी लम्बी पैदल यात्रा के दौरान कई जगह रुका। यह गोबी रेगिस्तान से किर्घिस्तान, तोकमत, उज्बेकिस्तान, ताशकंद, फारस, समरकंद, पामीर पर्वत माला, अमुदरिया, तामेज़, कुण्डूज़, बलख, नवविहार, बामियान, शिबिर दर्रे,, गांधार, जलालाबाद से होते हुए भारत आया। तब globalization इतना प्रचलित नही था। बहुत हद तक boxism ही चलता था। हर जगह पर भाषा, संस्कृति, सोच, समझ अलग अलग होती है। ऐसे मे ह्वेनसांग थका मंदा, भूखा प्यासा, बिना नहाए धोए फ्रेश हुए क्या और कैसे बात करता था ?अगर किसी से खाने पीने का पूछना होता, रास्ता या कोई जरुरी जानकारी हासिल करनी होती थी तो कैसे बात करता था ? Dialect or pronunciation के कारण तब एक ही भाषा मे 25 km के बाद बहुत अंतर आ जाता था। पंजाबी होने के बावजूद मैं हिंदी भाषा को कुछ ठीक ठाक पढ़, लिख, सुन और बोल लेती हूँ। पर भारत एक विशाल देश है। सो यहाँ बहुत ही विभिन्नता है। मैं कई UP MP बिहार के लोगों की हिंदी नही समझ पाती। हिंदुस्तानी होने के बावजूद मैं हर तरह की हिंदी की dialect और pronunciation नही समझ पाती तो ऐसे में एक चीनी ने कैसे काम चलाया होगा ? जो अलग अलग भाषा, इलाका, संस्कृति, रीती रिवाज, वहमो आदि में घूमा ! हर जगह की currency अलग अलग होती है। यह बोद्धि भिक्षुक इस परिस्थिति से कैसे गुजरा होगा ? यह सब तो हमारे राज कपूर जी की फिल्म Around the world in eight dollar से भी ज्यादा dramatic है।
गुरु नानक देव जी ने 24 सालों में 28 हजार किमी पैदल यात्रा की। इन उदासियों (यात्रा) के दौरान वह पंजाब, से हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, सिक्किम, भूटान, ढाका, असम, नागालैंड, त्रिपुरा, चटगाँव, बर्मा, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पाकिस्तान, सिंध, समुंद्री तट के किनारे घूमते घूमते हुए गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, श्रीलंका, आंध्राप्रदेश, कर्णाटक, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, सुमेर पर्वत का इलाका, लेह लद्दाख, कश्मीर, अफगानिस्तान, मुल्तान, सिंध, बलोचिस्तान, जैदा, मक्का, मदीना, बगदाद, ईरान, खुर्माबाद, इस्फाहन, करतारपुर आदि जगहों पर घूमे। यानि 365 दिनों में इन्होने कोई औसतन 1167 किमी का सफर तय किया। इस दौरान गुरु जी यहाँ यहाँ से भी गुजरे उस रियासत के राजा को ऊँच नीच, जात पात, अन्धविश्वास, पाखंड आदि को ले कर अपने विचारों से अवगत करवाया। और इन सब को खत्म कर सदभाव, समानता कायम करने पर जोर दिया। और तमाम सफर मे जगह जगह लोगों को भी प्रवचन दिया और कीर्तन किया।

Sumita dhiman
Mohabbat nagar
Circular road
Kapurthala
Punjab

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Posted by - नवम्बर 9, 2021 0
मुरली मनोहर श्रीवास्तव कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकति जाय… बहंगी लचकति जाय… बात जे पुछेलें बटोहिया बहंगी केकरा…
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