(डॉ. ममतामयी प्रियदर्शनी)
इसकी शुरुआत साल 2014 से हुई और तब से हर साल यह दिवस मनाया जाने लगा। भारत में तुलसी की सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक महत्ता को मजबूती से रेखांकित किया गया है। तुलसी पूजन तो हिंदू जीवनशैली, धर्म और अनुष्ठानों का अभिन्न अंग है। फिर आखिर “तुलसी पूजन दिवस” के लिए एक दिन निर्धारित करने की जरूरत क्यों पड़ी होगी? आइए संक्षिप्त में इसे समझने की कोशिश करते हैं।
सर्वप्रथम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी के महत्व को समझने की कोशिश करते हैं। तुलसी (यानी ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री औषधीय पौधा है। तुलसी के नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। तुलसी की तो वैसे कई प्रजातियां हैं पर #ऑसीमम_सैक्टम को प्रधान तुलसी माना गया है। इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- #श्री_तुलसी, जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं, तथा #कृष्णा_तुलसी (या श्यामा तुलसी) जिसकी पत्तियाँ नीलाभ, यानी बैंगनी रंग लिए होती हैं। शोध में तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं और अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल इसका प्रमुख सक्रिय तत्व है, जिसका अनेकानेक महत्व उल्लेखित हैं।
आयुर्वेद के अनुसार इसमें विटामिन और खनिज का भंडार है, जैसे विटामिन सी, कैल्शियम, जिंक, आयरन और क्लोरोफिल आदि। मान्यता यह भी है कि तुलसी में सिट्रिक, टारटरिक एवं मैलिक एसिड पाया जाता है, जो विभिन्न रोगों के रोकथाम के लिए भी उपयोगी है। साथ ही तुलसी को एंटीस्ट्रेस, एंटीडिप्रेसेंट, एंटीबैक्टिरियल और एंटी ऑक्सीडंट गुणों से युक्त मानते हैं, जिसके कारण इनका उपयोग तनाव दूर करने, याददाश्त बेहतर करने, इन्फेक्शन और इंफ्लेमेशन नियंत्रण करने, शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ाने आदि में होते हैं। फ्रेंच_डॉक्टर, विक्टर रेसीन ने तुलसी पर व्यापक शोध किया और कहा है कि “तुलसी एक Wonder_drug है जो रक्तचाप, पाचन तंत्र और मानसिक विकार को नियंत्रित करने तथा रक्तकणों की वृद्धि करने में अत्यंत लाभकारी है।
आइए अब तुलसी को भारतीय संस्कृति और मान्यताओं के दृष्टिकोण से समझते हैं। हमारे वेदों, पुराणों और औषधि-विज्ञान के ग्रंथों में भी तुलसी को दैवीय और औषधीय गुणों से अभिपूरित मानते हुए काफ़ी कुछ लिखा गया है। #अथर्ववेद में इसे महाऔषधि की संज्ञा दी गई हैं। ऐसी मान्यता है कि तुलसी की जड़ में सभी तीर्थ, मध्य में सभी देवि-देवियाँ और ऊपरी शाखाओं में सभी वेद स्थित हैं। तुलसी दर्शन पापनाशक एवं तुलसी पूजन तथा तुलसी दल सेवन पुण्यकारक एवं मोक्षदायक माना जाता है। ‘तुलसी’ की पूजा कब, कैसे, क्यों और किसके द्वारा शुरू की गई इसके कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से ‘‘तुलसी’’ की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मदेव ने उसे भगवान विष्णु को सौंपा। पद्म_पुराण में लिखा है कि जहाँ तुलसी का एक भी पौधा होता है, वहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश निवास करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में निम्न #तुलसी_नामाष्टक का जिक्र है:
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।
अर्थात “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं। ऐसी मान्यता है कि जो तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करते हैं, उन्हें अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
विष्णु_पुराण में कहा गया है:
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्य वर्धिनी।
आधिव्याधि हरिर्नित्यं तुलेसित्व नमोस्तुते।।
रोपनात् पालनान् सेकान् दर्शनात्स्पर्शनान्नृणाम्।
तुलसी दह्यते पाप वाढुमतः काय सञ्चितम्॥
अर्थात तुलसी सम्पूर्ण सौभाग्यों को बढ़ाने वाली हैं, सदा आधि-व्याधि को मिटाती हैं, अतः आपको नमस्कार है।तुलसी को लगाने से, पालने से, सींचने से, दर्शन करने से तथा स्पर्श करने से मनुष्यों के मन, वचन और काया में संचित पाप नष्ट हो जाते हैं।
उपरोक्त बातों के संदर्भ में “तुलसी पूजन दिवस” का महत्व बहुत बढ़ जाता है। कालांतर में आर्थिक दबाव, आधुनिकीकरण, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अन्य कई वजहों से हम शहरी जीवनशैली को अपनाने के क्रम में अपने पौराणिक-सांस्कृतिक मान्यताओं को थोड़ा दरकिनार कर रहें हैं, जिसके कारण उनसे मिलने वाले बहुआयामी लाभ से भी भारतीय समाज वंचित हो रहा है। इसी आलोक में शायद “योग दिवस” या “तुलसी पूजन दिवस” आदि का महत्व बहुत बढ़ जाता है।
आप सभी को “तुलसी पूजन दिवस की बहुत बधाई।
(डॉ. ममतामयी प्रियदर्शनी)
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