दरभंगा हाउस का धार्मिक,सांस्कृतिक-शैक्षणिक महत्व,

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पटना: राजधानी पटना एक बड़ा शहर होने के साथ ही कई खूबियों को भी समेटे हुए हैं. पटना का महत्व न सिर्फ राजनीतिक लिहाज से है बल्कि ये सांस्कृतिक, शैक्षणिक, विरासत के लिहाज से भी अपनी अहम जगह रखता है. हालांकि, पटना में गोलघर, बिहार म्यूजियम सहित कई ऐतिहासिक धरोहर है. लेकिन पीएमसीएच और पटना कॉलेज के बीच बने दरभंगा हाउस का अपना महत्व हैं. ऐतिहासिक दरभंगा हाउस की जिसकी भव्यता ऐसी थी कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी यहां आने से खुद को नहीं रोक सके थे. तिरहुत सरकार दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह को जब तिरहुत की बागडोर सौपी गयी तो वे तिरहुत में ही पदभार ग्रहण करना चाहते थे | लेकिन उस समय ऐसी स्थित उत्पन्न हो गयी कि उन्हें पटना में  पदभार ग्रहण करने के लिए बुलाया गया |

इसके लिए पटना के बांकीपुर में पटना मेडिकल कालेज से पश्चिम में खाली पड़ी मैदान खरीदी गयी जिसमे तिरहुत सरकार को राज्यसत्ता सौंपने का कार्यक्रम रखा गया इस कार्यक्रम में यह भी घोषणा की गयी कि इस मैदान में एक भव्य महल बनेगा |

कलकल बहती जीवनदायिनी गंगा और उसके किनारे बना ऐतिहासिक दरभंगा हाउस. पटना के करगिल चौक से जब आप पटना यूनिवर्सिटी की तरफ 1 किलोमीटर चलने के बाद आपको पीतल और लाल कलर की बिल्डिंग दिखेगी जो ऐतिहासिक दरभंगा हाउस है. आजादी के करीब 67 साल पहले राजधानी पटना में उस इमारत की स्थापना की गई जो आगे चलकर अपनी स्थापत्य कला की वजह से मशहूर हो गया.

इतिहासकार बताते हैं कि दरभंगा हाउस के निर्माण में ब्रिटिश और मुगल शैली का ध्यान रखा गया और इन दोनों वास्तुकला की नजीर है दरभंगा हाउस. दरभंगा हाउस की दीवार हो या पाया, इसकी मोटाई 40 इंच से कम नहीं है और पूरी इमारत को सुर्खी और चूने को मिलाकर बनाया गया है.

अंग्रेजी हुकूमत ने वास्तुकार डा० एम०ए० कोरनी को इस महल की निर्माण का जिम्मा सौपा था | उसने मिथिला कि परम्परा के अनुसार इस महल को दो भांगों में बांटा एक महाराजा ब्लाक और दुसरा महारानी ब्लाक |

दोनों ब्लाक के बीच में महाराजा परिवार की कूल देवी काली का एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया गया |

इस महल की एक ख़ास विशेषता यह था कि राज परिवार कि महिलायें एक सुरंगनुमा सीढ़ी के सहारे गंगा स्नान को जाती थी और उसी रास्ते से वापस महल में वापस आ जाती थी | अब इस सुरंगनुमा सीढ़ी को हमेशा के लिए बंद करा दिया गया है|

तिरहुत सरकार लक्ष्मेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद  महाराज  रामेश्वर सिंह उस महल में रहने लगे बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी नीति में परिवर्तन कर उस महल का नाम दरभंगा हाउस कर दिया |

जब बांकीपुर पैलेस दरभंगा हाउस के नाम से प्रसिद्ध हुआ तो पटना मेडिकल स्कुल की जगह पटना मेडिकल कालेज की स्थापना कि मांग होने लगी जिसमे रामेश्वर सिंह ने पटना मेडिकल कालेज कि सथापना के लिए ५ लाख रूपये और ३० बीघा जमीन इस मेडिकल कालेज को दानस्वरूप   भेंट किया | इससे यह स्पष्ट होता है दरभंगा महाराज लोगों के स्वास्थ्य के प्रति बहुत ही जागरूक थे | उनके दान के बाद महल का बगान एक अमर इतिहास बन गया |

दरभंगा महाराज इस महल में बहुत कम ही रहे | लेकिन इस महल से उन्होंने बहुत ही अहम् फैसले लिए | बिहार राज्य निर्माण का अहम फैसला इसी महल में लिया गया | इतना ही नहीं पटना हाईकोर्ट की स्थापना का प्रस्ताव भी इसी महल से पास हुआ |

दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने १९५० से १९५२ तक अपनी जमींदारी बचाने के लिए  अदालती लड़ाई भी इसी महल से  लड़ा था | दरभंगा हाउस उस गुप्त बैठक की  मेजबानी का गबाह भी है जब महात्मा गांधी ने कांग्रेसियों को अंग्रेज अधिकारयों के साथ कोई भी मीटिंग नहीं करने एवं उसके साथ किसी भी भोज में शामिल नहीं होने का आह्वान किया था |

( सिद्धार्थ मिश्रा )

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