नागपंचमी पर चिंतन आलेख

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आज #नागपंचमी है. भविष्य पुराण में बताया गया है कि सावन महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग देवता को समर्पित है इसलिए इसे नागपंचमी कहते हैं। सर्प प्रजाति की तो बात ही निराली है। किसी अपने ने किसी को धोखा दिया तो वो आस्तीन का सांप हो गया। हमारी जन्मकुंडली में एक भी दुष्ट गृह उथल पुथल मचा दे तो वो काल सर्प योग हो जाएगा। हमारे जटाधारी महादेव जी गले में साक्षात् काल नाग लिए घूमते है और विष्णु भगवान् की तो बात ही छोडिये, उनको तो शेषनाग की सेज शय्या के बिना नींद ही नहीं आती। एक किवदंती के अनुसार तो शेषनाग के ऊपर ही हमारी धरती टिकी है और जब वो करवट लेते हैं तो हमारे यहाँ भूकंप आता है। कहने का तात्पर्य है कि हमारे देश में सदा से ही सर्प को अपनी समस्त पूजाओ में विशेष स्थान दिया गया है।

वैसे एक बात बताऊँ दोस्तों, इंसान और #सांपो में एक ख़ास समानता है और वह है, #भाव और #दंश का। जैसे विषधर सांपो के गले में विष की ग्रन्थिया होती हैं वैसे ही हर इंसान के अन्दर बुरे भावों का दरिया होता है, जिसे हम विषरूपी शब्द के रूप में बाहर निकालते है। जैसे सांपो के विष से किसी का शरीर विषाक्त हो सकता है, वैसे ही कई बार हम क्रोध में अपने विष बुझे शब्दों से किसी के तन मन में आग लगा सकते है। पर एक बात जरा सोचिये तो, सांप तो अपने विष से अपना नहीं दुसरो को नुकसान पहुंचाता है पर हम अपने क्रोध रूपी विष से दुसरों की भावनाओं को विषाक्त करने के साथ साथ अपने अन्दर भी #ब्लड_प्रेशर से लेकर दिल की तमाम बीमारिया ले बैठते हैं और अपने निर्मल आत्मा को भी दूषित करते हैं। तो ज्यादा जहरीला कौन हुआ? आज हमारे आस पास ये विषबुझे शब्दभेदी तीर अपने भाइयो में विद्वेष पैदा कर रहे हैं, परिवारों को विभक्त कर रहे हैं और समाज को विषाक्त कर रहे हैं। यह क्या #कोबरा सांप के दंश से कम बड़ा दंश है?

तो चलिए दोस्तों, आज नागपंचमी के शुभ दिन पर अपने मन से इस क्रोध और दुष्टता रूपी विष को तजकर खुद के दिल दिमाग को निर्मल बना लें।

आप सबको नाग पंचमी की ढेर सारी शुभकामनाएं

डॉ ममतामई प्रियदर्शिनी

(रचना )

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