पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने शनिवार को आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार इस डर से जातीय जनगणना कराने में अनिच्छुक है कि प्रधानमंत्री की ओबीसी स्थिति के बारे में झूठ उजागर हो जाएगा। जदयू के विधानपरिषद सदस्य और मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने संवाददाता सम्मेलन में मोदी के इस दावे पर सवाल उठाया कि वह “अति पिछड़ा” समुदाय से हैं।
नीरज ने कहा कि मोदी पर आरोप लगा कि जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने 2002 में अपनी जाति “मोध घांची” को ओबीसी सूची में शामिल कराया। जदयू नेता ने कहा, “मोदी ने यह दावा करके इस आरोप का खंडन करने की कोशिश की कि यह 1994 में किया गया था जब कांग्रेस गुजरात के साथ-साथ केंद्र में सत्ता में थी।” उन्होंने एक कागज दिखाते हुए दावा किया यह भारत का राजपत्र है जिसमें उस साल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल किए गए जातियों का उल्लेख है। नीरज ने कहा, “घांची जाति के छह उप समूह हैं, जिनमें से केवल एक, घांची (मुस्लिम), 1994 में ओबीसी की सूची में था।” उन्होंने भाजपा को उनके दावे को खारिज करने की चुनौती दी।
PM ने मोध घांचियों को ओबीसी में किया था शामिल
जदयू नेता ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी ने चुनावी लाभ के लिए मोध घांचियों को ओबीसी में शामिल किया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि 1931 की जनगणना के अनुसार, प्रधानमंत्री की जाति में साक्षरता दर ब्राह्मणों के बराबर और राजपूतों से अधिक थी इसलिए उसे ओबीसी को दिए जाने वाले लाभों की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने कहा, “रिकॉर्ड पर यह दस्तावेज भी हैं कि 19वीं सदी की शुरुआत में, मोध घांची ब्रिटिश सरकार से आग्रह किया था कि उन्हें बनिया समुदाय में गिना जाए, न कि घांची में, जिनके साथ उन्होंने कभी भोजन नहीं किया या वैवाहिक संबंध नहीं बनाए।” जद(यू) नेता ने कहा, “नीतीश कुमार सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वेक्षण ने पूरे देश में हलचल पैदा कर दी है। लेकिन केंद्र इस डर से जातीय जनगणना कराने से कतरा रहा है कि गुजरात में जिस झूठ का सहारा लिया गया था, वह उजागर हो सकता है।”
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