बिहार में एक ऐसा मेला…जहां आज भी होता है ‘स्‍वयंवर’, लड़के करते हैं पान ऑफर और लड़की के पान खाते ही शादी फिक्स

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जानकारी के मुताबिक, यह मेला पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के कोसी शरण देबोतर पंचायत के मलिनिया दियारा गांव में 15 अप्रैल से शुरू हो चुका है। ये मेला 4 दिनों तक चलेगा है।

पूर्णिया: बिहार में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के मेलों की शुरुआत हो गई है। वहीं पूर्णिया जिले में एक ऐसा मेला लगता है, जहां पर युवक-युवती को अपने जीवनसाथी को चुनने और पसंद करने की छूट होती हैं। इस मेले की अपनी अलग ही परंपरा है। इस मेले को ‘पत्ता’ मेला के नाम से जाना जाता हैं।

4 दिनों तक चलता है ये मेला
जानकारी के मुताबिक, यह मेला पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के कोसी शरण देबोतर पंचायत के मलिनिया दियारा गांव में 15 अप्रैल से शुरू हो चुका है। ये मेला 4 दिनों तक चलेगा। इस मेले को पत्ता मेला के नाम से जाना जाता है, जहां लड़के अपनी पसंद की लड़की को पान खाने का ऑफर करते हैं। अगर वो उस पान को खा लेती है तो रिश्ता पक्का समझा जाता है। स्वयंवर की ये परंपरा आदिवासी समाज में आज भी जिंदा है। पसंद के बाद मना करने पर सजा का भी प्रावधान है। मेले में नाच-गाना भी होता है। इस मेले में बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा व नेपाल से भारी संख्या में आदिवासी हिस्सा लेते हैं। मेले की शुरुआत बैसाखी सिरवा त्योहार से होती है। मेले का इतिहास 150 साल से ज्यादा पुराना है।

पसंद के बाद मना करने पर सजा का भी है प्रावधान 
बता दें कि इस परंपरा में पसंद के बाद मना करने पर सजा का भी प्रावधान है। यदि लड़का या लड़की किसी ने शादी करने से इंकार कर दिया तो उन्हें आदिवासी समाज दंड देता है और गांव से बाहर निकाल दिया जाता है। वहीं मेले का इंतजार सिर्फ कुंवारे ही नहीं, बल्कि शिव भक्त भी काफी बेसब्री से करते हैं। इस मेले में बांस का एक खास टावर लगाया जाता है। उस टावर पर चढ़कर खास तरह से पूजा होती है। मेले में जनजाति संस्कृति, कला और संगीत का अद्भुत दृश्य भी देखने को मिलता है। युवक-युवती एक-दूसरे पर मिट्टी, रंग, अबीर डालकर जमकर होली भी खेलते हैं। इसी दौरान वर और वधू का चुनाव होता है।

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