बिहार सरकार प्रदेश में शराबबंदी को लागू करवाने को लेकर विभिन्न उपायों में जुटी हुई है। फिर भी राज्य में शराब की बिक्री अवैद्य रूप से जारी है। इस कारण सरकार ने एक नया उपाय निकाला है। अब राज्य में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को शराबबंदी को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
शुक्रवार को शिक्षा विभाग ने आदेश जारी करते हुए कहा है कि शिक्षक शराबियों और शराब विक्रेताओं की पहचान कर के इसकी सूचना मद्य निषेध विभाग को सौंपे। शिक्षकों को आश्वासन दिया गया है कि उनकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी। वहीं, उन्हें इस बात का ध्यान रखने को कहा गया है कि स्कूल का इस्तेमाल शराबी न करें। राज्य सरकार हाल ही में शराब के कारण कई जिलों में हुई मौत के कारण विपक्ष के निशाने पर है। यह फैसला भी इसी का नतीजा माना जा रहा है।
विपक्ष ने साधा निशाना
सरकार के इस आदेश पर विपक्ष ने जमकर निशाना साधा है। कांग्रेस प्रवक्ता असित तिवारी ने कहा कि कुछ साल पहले शिक्षकों को आदेश दिया गया था कि वह लोगों को खुले में शौच करने से रोकें और सरकार के खुले में शौच मुक्त के दावों को शर्मिंदा न करें। अब सरकार फिर से एक ऐसा ही फैसला लेकर आई है। वहीं, राजद के प्रवक्ता विधायक भाई विरेंद्र ने इसे तुगलकी फरमान बताया है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को शराब माफिया के सामने सीधे खड़ा कर के सरकार उन्हें संकट में डाल रही है।
सरकार ने भ्रम फैलाने का लगाया आरोप
एनडीए ने विपक्ष पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है। बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि समाज सुधार में शिक्षकों का बड़ा योगदान होता है। अगर वह नशाखोरी के खिलाफ जंग का हिस्सा बनते हैं तो इसमें कोई भी बुराई नहीं है। वहीं, जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि इस फैसले में कोई भी मनमानी नहीं है। शिक्षकों पर किसी कार्रवाई की बात नहीं कही गई है। क्या शराबबंदी के समर्थन में मानव श्रृंखला को सफल बनाने में शिक्षकों ने अहम भूमिका नहीं निभाई?
शिक्षा मंत्री ने किया बचाव
शिक्षकों को जारी किए गए आदेश का बिहार के शिक्षा मंत्री विजय चौधरी ने बचाव किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने ऐसी अपील बिहार के सभी नागरिकों से भी की हुई है। शिक्षक भी राज्य के नागरिक हैं। सरकार ने उनसे शराबबंदी कानून पर सहयोग मांगा है।
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