बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ( Prof. chandrashekhar) के आप्त सचिव कृष्णानंद यादव की ओर से भेजे गए पीत पत्र के जवाब में शिक्षा विभाग ने जवाबी कार्रवाई की है। शिक्षा विभाग ने मंत्री के आप्त सचिव की विभाग में एंट्री पर रोक लगा दी है।
पटना: बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ( Prof. chandrashekhar) के आप्त सचिव कृष्णानंद यादव की ओर से भेजे गए पीत पत्र के जवाब में शिक्षा विभाग ने जवाबी कार्रवाई की है। शिक्षा विभाग ने मंत्री के आप्त सचिव की विभाग में एंट्री पर रोक लगा दी है।
पत्र के माध्यम से केके पाठक पर लगाए गए थे गंभीर आरोप
दरअसल, शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के आप्त सचिव कृष्णानंद यादव ने 4 जुलाई को मंत्री के निर्देश पर 3 पन्नों का पीत पत्र लिखा है, जिसमें कई बातों का जिक्र है। पत्र के माध्यम से अपर मुख्य सचिव केके पाठक पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे, साथ ही नसीहत भी दी गई थी। वहीं, पीत पत्र के जवाब में शिक्षा विभाग के निदेशक सुबोध कुमार ने कड़ा पत्र लिखा है। निदेशक की ओर से कृष्णानंद यादव को दिए गए जवाब का मजमून इस तरह है। पत्र में लिखा गया है कि पिछले एक सप्ताह में आपके द्वारा भांति-भांति के पीत-पत्रों में भांति-भांति के निदेश विभाग और विभागीय पदाधिकारियों को भेजे गए हैं। इस संबंध में आपको आगाह किया गया था कि आप आप्त सचिव (बाह्य) तौर पर है। अतः आपको नियमत सरकारी अधिकारियों से सीधे पत्राचार नहीं करना चाहिए। किन्तु आपके लगातार जारी अनर्गल पीत पत्रों और अविवेकपूर्ण बातों से यह पता चलता है कि आपको माननीय मंत्री के प्रकोष्ठ में अब कोई काम नहीं है और आप व्यर्थ के पत्र लिखकर विभाग के पदाधिकारियों का समय नष्ट कर रहे हैं।
“कृष्णानंद यादव शिक्षा विभाग के कार्यालय में नहीं कर सकते हैं प्रवेश”
साथ ही कृष्णानंद यादव को शिक्षा विभाग में प्रवेश तक पर रोक लगा दी गई है। पत्र में आगे लिखा गया कि कृष्णानंद यादव की सेवाएं लौटाने के लिए सक्षम प्राधिकार को विभाग पहले ही लिख चुका है। विभाग द्वारा यह भी निदेशित किया गया है कि अब कृष्णानंद यादव शिक्षा विभाग के कार्यालय में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। विभाग को यह भी पता चला है कि कृष्णानंद यादव पहले शिक्षा विभाग पर मुकदमा कर चुका है, जिसके कारण उसके सेवा सामंजन का प्रस्ताव विभाग द्वारा काफी समय से लगातार खारिज किया जाता रहा है। ऐसी स्थिति में वह विभागीय मंत्री के प्रकोष्ठ में काम करने के लायक नहीं हैं। इन्हीं कारणों से सक्षम प्राधिकार को उसे हटाने के लिए पत्र लिखा जा चुका है।
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