रक्षा बंधन का पर्व दो शब्दों के मिलने से बना हुआ है, “रक्षा” और “बंधन“. संस्कृत भाषा के अनुसार, इस पर्व का मतलब होता है की “एक ऐसा बंधन जो की रक्षा प्रदान करता हो”. यहाँ पर “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना होता है उअर “बंधन” का मतलब होता है एक गांठ, एक डोर जो की रक्षा प्रदान करे.
रक्षा बंधन भाई-बहन का प्रतीक माना जाता है। रक्षा बंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को जताता है और घर में खुशिया लेकर आता है। इसके अलावा यह त्योहार भाईयों को याद दिलाता है कि उन्हें अपनी बहनों की रक्षा करनी चाहिए।
राखी का त्यौहार पुरे भारतवर्ष में काफी हर्ष एवं उल्लाश के साथ मनाया जाता है. यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें क्या धनी क्या गरीब सभी इसे मनाते हैं. लेकिन सभी त्योहारों के तरह ही राखी इन हिंदी के भी एक इतिहास है, ऐसे कहानियां जो की दंतकथाओं में काफी लोकप्रिय हैं. चलिए ऐसे ही कुछ रक्षा बंधन की कहानी इन हिंदी के विषय में जानते हैं.
राखी त्यौहार के सबसे पुरानी कहानी सन 300 BC में हुई थी. उस समय जब Alexander ने भारत जितने के लिए अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ आया था. उस समय भारत में सम्राट पुरु का काफी बोलबाला था. जहाँ Alexander ने कभी किसी से भी नहीं हारा था उन्हें सम्राट पुरु के सेना से लढने में काफी दिक्कत हुई.
जब Alexander की पत्नी को रक्षा बंधन के बारे में पता चला तब उन्होंने सम्राट पुरु के लिए एक राखी भेजी थी जिससे की वो Alexander को जान से न मार दें. वहीँ पुरु ने भी अपनी बहन का कहना माना और Alexander पर हमला नहीं किया था.
रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी का कुछ अलग ही महत्व है. ये उस समय की बात है जब राजपूतों को मुस्लमान राजाओं से युद्ध करना पड़ रहा था अपनी राज्य को बचाने के लिए. राखी उस समय भी प्रचलित थी जिसमें भाई अपने बहनों की रक्षा करता है. उस समय चितोर की रानी कर्णावती हुआ करती थी. वो एक विधवा रानी थी.
और ऐसे में गुजरात के सुल्तान बहादुर साह ने उनपर हमला कर दिया. ऐसे में रानी अपने राज्य को बचा सकने में असमर्थ होने लगी. इसपर उन्होंने एक राखी सम्राट हुमायूँ को भेजा उनकी रक्षा करने के लिए. और हुमायूँ ने भी अपनी बहन की रक्षा के हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी चित्तोर भेज दिया. जिससे बाद में बहादुर साह के सेना को पीछे हटना पड़ा था.
भविस्य पुराण में ये लिखा हुआ है की जब असुरों के राजा बाली ने देवताओं के ऊपर आक्रमण किया था तब देवताओं के राजा इंद्र को काफी क्ष्यती पहुंची थी.
इस अवस्था को देखकर इंद्र की पत्नी सची से रहा नहीं गया और वो विष्णु जी के करीब गयी इसका समाधान प्राप्त करने के लिए. तब प्रभु विष्णु ने एक धागा सची को प्रदान किया और कहा की वो इस धागे को जाकर अपने पति के कलाई पर बांध दें. और जब उन्होंने ऐसा किया तब इंद्र के हाथों राजा बलि की पराजय हुई.
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