भारत की आजादी के दीवाने ‘शहीद जुब्बा सहनी
(79वाँ शहादत दिवस पर विशेष श्रद्धांजलि)

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भारत की आजादी के दीवाने अमर शहीद जुब्बा सहनी का आज 11 मार्च, 2023 को 79वाँ शहादत दिवस है। हम भातरवासी इस अवसर पर उन वीरों, देशभक्तों को याद कर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिये प्राण न्योछावर कर दिए। वीरों की इस कड़ी में आज हम बिहार के उन शूरवीरों के साथ-साथ देशभक्त जुब्बा सहनी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जिन्होंने भारतीय स्वतंत्राता संग्राम के दौरान मातृभूमि की रक्षा के लिये फाँसी के फंदे को हंसते हुये गले लगाया। भारतीय स्वतंत्राता संग्राम के इतिहास में वीर जुब्बा के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। ‘‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले। वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशां होगा।’’

अमर शहीद जुब्बा का जीवन उन दिनों का है जब अंग्रेजी हुकुमत भारत पर राज्य कर रही थी। गोरी सरकार के एजेन्ट कोठीवाले साहबों की कोठियां मुख्यतः उत्तर बिहार के मुज़फ्फरपुर, चम्पारण, सारण आदि जिला में थी। शूरवीर जुब्बा का जन्म सन् 1906 ई. में एक अत्यन्त निर्धन निषाद् (मल्लाह) परिवार में मुज़फ्फरपुर जिलान्तर्गत मीनापुर थानान्तर्गत चैनपुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम पांचू सहनी था। वे मजदूरी कर अपना जीवन-यापन करते थे। मुजफ्फरपुर जिलांतर्गत भिखनपुर एण्ड झपहाकिन्सन से संबंध चीनी मील की जमीन में कभी कभार जुब्बा ईख काटने एवं उसे टाली (छोटी रेल की मालगाड़ी) पर लादने का काम करते थे। खेतों में सम्पूर्ण दिन काम करने वाले मजदूरों को उन दिनों कोठी वाले साहबों की ओर से मात्र डेढ़ आने से लेकर दो आने तक की मजदूरी मिलती थी।

मिलों में कुर्सी पर काम करने वाले में मुख्यतः अंग्रेज साहब तथा चन्द बंगाली बाबू होते थे। मील और फिल्ड सुपरवीजन का काम अंग्रेज साहब द्वारा होता था। छोटी सी गलती में भी जूते से मजदूरों को ठोकर मार देना, इनके लिए साधरण सी बात होती थी। एक समय की बात है कि जुब्बा जी ईख काटकर टाली पर सही ढंग से लाद रहे थे। इसी बीच नशे में चूर एक अंग्रेज साहब उसे जूते से ठोकर मारते हुए कहा- ‘‘डैम फुलिश! टुम काला आदमी है।’’ यह सुनकर स्वाभिमानी जुब्बा की आंखें इस अपमान के कारण क्रोध् से लाल हो गयी। वे चिल्ला उठे- ‘‘साहब तुम पागल हो, हमारे यहां पलकर हम पर रोब गांठता है’’। जुब्बा की बातें सुन साहब आग-बबूला होकर उस पर बेंत से आक्रमण करने दौड़ा। मगर स्वाभिमानी जुब्बा गोरे साहब पर ईख की छड़ी से आक्रमण कर वहां से चलता बना। जुब्बा की मार से साहब नीचे गिर पड़ा और चिल्लाया- ‘‘पकड़ो-पकड़ो! डैम ब्लडी को …………………’’। मीनापुर थाना का एंग्लो इण्डियन दारोगा मि. बालर था। इसके डर से मीनापुर का पत्ता-पत्ता कांपता था। उसकी मर्जी के खिलाफ किसी को एक क्षण भी आगे बढ़ना आसान नहीं था। भिखनपुर एण्ड झपहाकिंशन से जुब्बा द्वारा एक साहब को मारने-पीटने का मामला उसी बालर दारोगा के समक्ष मीनापुर थाने में आया। थाने की ओर से जुब्बा को पकड़ने के लिए वारण्ट जारी हो गया। इन्होंने किशोरावस्था से ही स्वतंत्राता आंदोलन में भाग लेना प्रारंभ किया। सन् 1930 ई. में बापू के आह्वान पर पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन जोरों पर था।

24 वर्ष की अवस्था में जुब्बा जी ने इस आंदोलन में प्रमुख रूप से भाग लिया। सन् 1932 में मुजफ्फरपुर के धर्मशाला चौक पर शराब की दुकान पर नशाखोरी के विरुद्ध पिकेटिंग (धरना) करते समय पुलिस की मार से उनकी बायीं पसली की हड्डी टूट गयी। घटना के कुछ ही दिनों के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू का मुजफ्फरपुर में आगमन हुआ। घटना की जानकारी मिलने पर नेहरू जी जुब्बा को बुलाए और अपनी गोद में उठाकर भीड़ को जुब्बा भाई कहकर संबोध्ति किया। नेहरू जी की इस सभा के बाद से लोग इन्हें स्वतंत्राता आंदोलन के दौरान जुब्बा भाई के नाम से पुकारने लगे। स्वतंत्राता आंदोलन में वीर जुब्बा के नेतृत्व में कई सरकारी कार्यालयों को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया। रेल की पटरियां उखाड़ कर आवागमन अवरुद्ध कर दिया गया। बिजली और टेलिफोन के तार काट डाले गये। सत्याग्रहियों के प्रति मि. बालर का जोर-जुल्म अपनी चरम सीमा पार कर रहा था। जो व्यक्ति उनके पकड़ में आते थे, उन्हें गिरफ्रतार कर तरह-तरह की यातनाएं दी जाने लगी। फिर भी आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद होते चले गये। ‘‘सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है।’’ इन्हीं नारों के साथ वीर जुब्बा के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस 15 अगस्त 1942 को निकला गया। जुलूस में लोग अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा रहे थे। देश भक्तों का यह जुलूस मीनापुर थाना पहुंच कर वहां के दारोगा मि. बालर, से थाने का संपूर्ण प्रभार जनता को सौंप देने को कहा गया।

मि. बालर जनता की आग्रह की उपेक्षा कर उलटे क्रोध् में आ गये और जुलूस पर पिस्तौल तान दिया। दिवाना जुब्बा ने अपने साथियों के सहयोग से मि. बालर का पिस्तौल झपट लिया और उसे निशस्त्र कर दिया। भीड़ ने मि. बालर का दोनों हाथ पीछे कर बांध् दिया। जुलूस के अन्य सहयोगी अंग्रेज दारोगा के इस दुव्र्यवहार से क्रुध होकर थाने के सभी फर्नीचर, किवाड़ आदि को तोड़ कर इकट्ठा किया और उसमें आग लगा दी। वीर जुब्बा ने उस धधकती आग में मि. बालर को उठाकर फेक दिया, जिससे उसकी मौत हो गयी। मि. बालर को जिन्दा जलाने की सूचना जब जिला मुख्यालय मुजफ्फरपुर पहुंची तो वहां के अंग्रेज कलक्टर ने बौखला कर मीनापुर थाने में पांच सौ सशस्त्रा सिपाहियों को भेजने का आदेश दिया। इधर मीनापुर में सत्याग्रहियों की धर-पकड़ शुरू हो गयी। कुर्की, जब्ती एवं गोली मारने का आदेश दे दिया गया। पुलिस दमन के बावजूद आंदोलनकारियों का मनोबल नहीं टूटा, बल्कि आंदोलन और उग्र रूप धारण कर लिया। मीनापुर के सत्याग्रहियों ने मुजफ्फरपुर और मीनापुर के बीच के सड़कों को कई जगह काट डाला और पुल को क्षतिग्रस्त कर दिया। वृक्षों को काट कर सड़कों को जाम कर दिया गया। जिससे ट्रक-बस आदि सवारियां जहां-तहां रूक गयी। सिपाहियों ने हार मान कर कन्धें पर बन्दूक टांगे, पांव-पगडंडियों के मार्ग से मीनापुर के लिए प्रस्थान किया। मीनापुर थाने में पहुंच कर इन सिपाहियों ने आंदोलनकारियों पर कहर ढाना प्रारंभ कर दिया। वीर जुब्बा ने 54 साथियों के साथ अपनी गिरफ्तारी 16 अगस्त 1942 को दी। सभी को मुजफ्फरपुर से भागलपुर सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। मुजफ्फरपुर सब-जज के इजलास में वीर जुब्बा ने अपने 54 साथियों की जीवन रक्षा के लिए मीनापुर थाने के थानेदार मि. बालर को जिन्दा जलाने की जिम्मेवारी कबूल की।

अंततोगत्वा 15 महीने तक मुकदमा चलने के पश्चात् सेशन जज मुजफ्फरपुर के द्वारा देशभक्त जुब्बा को फांसी की सजा सुनायी गयी तथा अन्य आंदोलनकारियों को आजीवन कारावास की सजा दी गयी। फासी की सजा सुनकर वीर जुब्बा के चेहरे पर तनिक भी शिकन नहीं दिखी और वह बोल उठा- ‘‘एक बूंद गैरत का पानी, जब तक रहे जुबान में। बट्टा कभी न लगने देना, भारत के अभिमान में।’’ अंत में 11 मार्च, 1944 का वह मनहूस दिन भी आ ही गया।

भागलपुर सेन्ट्रल जेल में फासी के फदे पर झूलने के लिए जाते समय शूर-वीर के चेहरे पर तनिक भी शिकन नहीं था। ‘‘वंदे मातरम्’’ के उद्घोष के साथ उन्होंने हंसते- हंसते मातृभूमि की बलिवेदी पर 38 वर्ष की अवस्था में फासी के फदे को चूम कर अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये। ‘‘जब तक सूरज-चांद रहेगा, जुब्बा तेरा नाम रहेगा।’’ इस प्रकार महान देशभक्त जुब्बा सहनी को शहादत के 79 वर्ष पूरा हो गया। मुजफ्फरपुर शहर में जुब्बा पार्क की स्थापना तत्कालीन जिलाधिकारी हेमचन्द्र सिरोही द्वारा की गयी। दिनांक 10 मार्च, 2023 को मैक्डोवल गोलम्बर, मोईनुल हक स्टेडियम, राजेन्द्र नगर, पटना में बिहार के मुख्यमंत्राी द्वारा शहीद जुब्बा सहनी के आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया गया। पार्क का नाम भी जुब्बा सहनी पार्क रखा गया। आजादी की लड़ाई में शहीद जुब्बा का अद्वितीय योगदान, संघर्ष एवं बलिदान का अक्टूबर 2008 से प्रत्येक वर्ष 11 मार्च को पटना में उनकी पुण्य तिथि राजकीय समारोह के रूप में आयोजित की जाती है। भारत सरकार के तत्कालीन संचार मंत्री दिवंगत राम विलास पासवान द्वारा शहीद जुब्बा सहनी के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया है।

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