महिलाओं की सहभागिता के लिए तत्परता जरुरी, तभी समाज का स्वरुप समतुल्य बन पाएगा

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पिछले कुछ वर्षों में, महिलाओं को राजनीति में समान प्रतिनिधित्व के साथ सक्षम बनाने के साथ-साथ, बिहार में महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आर्थिक और पर्यावरणीय भलाई के लिए बेहतर पहुंच की आवश्यकता है। राजनीति में महिलाओं की भूमिका का बहुत व्यापक प्रभाव है, जो ना सिर्फ मतदान अधिकार, वयस्क मताधिकार और सत्तारूढ़ दल की आलोचना करने तक सीमित‌ है, बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया, राजनीतिक सक्रियता और चेतना आदि में भागीदारी से भी भी सरोबार रखता है। जहां तक बिहार विधानसभा चुनाव 2020 का सवाल है, महिला समर्थक अभियान बयानबाजी और प्रमुख दलों द्वारा लैंगिक समानता के लिए व्यक्त की गई प्रतिबद्धता के बावजूद, बिहार चुनाव ने राज्य में महिला विधायिकाओं के अधिक प्रतिनिधित्व में रूपांतरित नहीं किया है। वर्तमान बिहार विधान सभा में कुल 26 महिला विधायक हैं, जो पिछले एक (2015 राज्य विधानसभा) से दो कम है। हालाँकि, चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की कुल संख्या के संदर्भ में इज़ाफ़ा हुआ है, ये 8% (2015 में 273 महिलाओं ने चुनाव में हिस्सा लिया) से 10% (2020 में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या 371 थी) तक बढ़ गया है। जहां तक बिहार की बात आती है, आप देख लें कि बिहार में 40 सांसदों में से मात्र 3 सांसद महिला हैं। इस महिला दिवस पर, ये सारे आंकड़े फिर से यही सवाल करते हैं जनमानस से- क्या बिहार में पढ़ी-लिखी महिलाओं की कमी है ? या उन्हें राजनीति में आने का अवसर नहीं मिल पाता है। हलांकि  इन धूमिल  आंकड़ों के अंधेरों में, कई सकारात्मक कहानियां भी हैं। उदाहरण के लिए, बिहार पहला राज्य था, जिसने वर्ष 2006 में पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी। हालांकि, इसमें भी प्रॉक्सी उम्मीदवारी (मुखिया-पति या सरपंच-पति- कई महिलाओं के लिए एक चिंता का विषय यह भी बन जाता है कि वह होती तो हैं जनप्रतिनिधि लेकिन, उन्हें वह कार्य करने नहीं दिया जाता है, क्योंकि उनके बदले पति कार्य करता है) की उपस्थिति और चलन का मुद्दा है, जिसका समाधान खोजने की जरूरत है। इसके अलावा, बिहार सरकार ने कई प्रमुख योजनाओं जैसे कि- आरक्षित रोजगार महिलाओं का अधिकार, मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना (6,57,393 लाभार्थी बिहार बजट 2022-23 के अनुसार) और कई अन्य हस्तक्षेपों के माध्यम से लैंगिक असमानता को दूर करने का प्रयास किया है।

बिहार में महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति का तथाकथित चिंताजनक पहलू भी इस तथ्य की विशेषता है कि बिहार में पांच में से तीन महिलाएं एनीमिक हैं, जबकि पांच पुरुषों में से 1.5 महिलाएं हैं। साथ ही, बिहार की कुल प्रजनन दर भारत में सबसे अधिक है (3.4 थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 2.28 है)।

बिहार में महिला-विशिष्ट हस्तक्षेपों के लिए एक उच्च बजटीय आवंटन समय की आवश्यकता है-जिससे लैंगिक असमानता को कम किया जा सके, और वर्तमान समय के अनुरूप एक स्थायी भविष्य का निर्माण किया जा सके लैंगिक समानता के केंद्र में।बिहार सरकार ने अपने बजट 2022-23 में कई ऐसी घोषणाएं की हैं, जिन्हें अगर अक्षरश: लागू किया जाए तो आधी आबादी का भाग्य और भविष्य बदल सकता है।

“राज्य सरकार के सबसे उल्लेखनीय नीतिगत हस्तक्षेपों में से एक के कार्यान्वयन में महिलाएं ही मुख्य बिंदु हैं- यानी राज्य भर में शराब पर प्रतिबंध, जिसके कारण घरेलू हिंसा के मामलों में भी उल्लेखनीय गिरावट आई है, और ग्रामीण और शहरी परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।”

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में महिला जनसंख्या का प्रतिशत हिस्सा लगभग 47.85 प्रतिशत था, एवं दूसरा बिहार में लिंगानुपात 918 है यानी प्रत्येक 1000 पुरुष के लिए, जो 2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय औसत 940 से भी कम है। साथ ही किसी भी तरह की समानता की परिकल्पना करने के पहले ये भी जान ना जरुरी है की- बिहार में श्रम महिला कार्यबल की भागीदारी देश में सबसे कम है।  यह शहरी क्षेत्रों के लिए 6.4 प्रतिशत है, और ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 3.9 प्रतिशत महिला श्रम बल कार्यरत है।

बिहार की महिलाओं से जुड़े सामाजिक और आर्थिक कोणों को देखने के लिए, यह भी ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं की साक्षरता दर उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में 20 प्रतिशत कम है, भले ही 1991 और 2014 के बीच इसमें 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई हो। बिहार में केवल 11 प्रतिशत या शहरी महिलाएं और 2.7 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं स्नातक की डिग्री पूरी करती हैं।

यहां तक कि लड़कियों के लिए आठवीं कक्षा को पूरा करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में शुरू की गई योजनाएं भी ज्यादा प्रभावी नहीं हैं, और ग्रामीण लड़कियां माध्यमिक स्कूल शिक्षा से बाहर हो जाती हैं। इसके लिए उत्प्रेरक में से एक प्रारंभिक बाल विवाह और गर्भावस्था है, जो आगे चलकर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट का कारण बनता है। बिहार में महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति का तथाकथित चिंताजनक पहलू भी इस तथ्य की विशेषता है कि बिहार में पांच में से तीन महिलाएं एनीमिक हैं, जबकि पांच पुरुषों में से 1.5 महिलाएं हैं। साथ ही, बिहार की कुल प्रजनन दर भारत में सबसे अधिक है (3.4 थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 2.28 है)।

बिहार में महिला-विशिष्ट हस्तक्षेपों के लिए एक उच्च बजटीय आवंटन समय की आवश्यकता है-जिससे लैंगिक असमानता को कम किया जा सके, और वर्तमान समय के अनुरूप एक स्थायी भविष्य का निर्माण किया जा सके लैंगिक समानता के केंद्र में। बिहार सरकार ने अपने बजट 2022-23 में कई ऐसी घोषणाएं की हैं, जिन्हें अगर अक्षरश: लागू किया जाए तो आधी आबादी का भाग्य और भविष्य बदल सकता है।

अंत में, हम सभी को यह तय करना होगा कि- हर बार की तरह इस बार भी अपनी बहन, माँ, बेटी, पत्नी, मित्र या स्वयं का सिर्फ़ एक ख़ास दिन पर आभार व्यक्त करना है या उनके जीवन व मन में एक मूलभूत बदलाव लाना है। हमारी मानें तो आइए इस साल सुंदरता की परिभाषा को बदलते हैं। सुंदरता को कोमलता और शारीरिक गुणों से ना जोड़कर ज्ञान, विवेक, सृजनात्मकता और बल से जोड़ते है। महिलाओं के लिए जो साथ चलने की बातें की जाती हैं उनकी सहभागिता को बढ़ाने के लिए भी उतनी ही तत्परता के साथ काम किया जाए, तभी समाज का स्वरुप समतुल्य बन पाएगा।

(कनक लता चौधरी)

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