– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
महिला सशक्तिकरण, देश, समाज और परिवार के उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। नीतीश कुमार जबसे सत्ता में आए तो उन्होंने अपने शुरुआती दौर से ही न्याय के साथ विकास के सिद्दांत का अनुसरण किया, जिसमें राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक न्याय प्रमुख अवयव के रुप में शामिल रहा। प्रारंभ में पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों के प्रतिनिधियों के निर्वाचन में तथा प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर सरकार ने महिला सशक्तिकरण की नींव रखी।
वर्ष 2006 से बिहार के नगर निकाय एवं पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। ऐसा करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना। कुछ लोग इसको लेकर मेरे खिलाफ रहे। इससे बड़ी संख्या में महिलाएं चुनाव जीतकर आयीं। पुलिस एवं सभी सरकारी सेवाओं में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया। इसका नतीजा है कि आज बिहार पुलिस में 25 हजार से ज्यादा महिलाएं हैं। सूबे के सभी पुलिस जिलों में महिला पुलिस जिला थाना की स्थापना, महिला बटालियन का गठन किया गया। महिला शौचालय एवं स्नानागार की व्यवस्था तथा “जीविका” कार्यक्रम के तहत महिला-स्वयं सहायता-समूहों का गठन, महिला सशक्तिकरण के लिए उठाए गए विभिन्न कदम हैं। इन सभी पहल से महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर सृजित हुए, उनमें आत्मविश्वास का संचार हुआ और उनकी आत्मनिर्भरता दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही
राज्य सरकार ने बालिकाओं की शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया है। बालिकाओं को विद्यालय के प्रति आकर्षित करने एवं उनके अभिभावकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बालिका पोशाक योजना, बालिका सायकिल योजना लागू की गई। योजना के वर्ष 2007-08 में प्रारंभ के समय नवम वर्ग में पढ़ने वाली बालिकाओं की संख्या मात्र 1 लाख 63 हज़ार थी जो इसके बाद तो यह रफ्तार इतनी बढ़ी की स्कूलों में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक हो गई है। नीतीश सरकार ने मैट्रीक परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण छात्राओं के लिए बालिका प्रोत्साहन योजना एवं हर ग्राम पंचायत में एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना कर देश में एक नजीर पेश की। इससे बालिकाएं उच्च शिक्षा के प्रति तो जागरूक तो हुई हीं साथ ही उनके गतिशील होने से सामाजिक अनुशासन एवं भागीदारी की नींव रखी गयी।
बच्चियों तथा माताओं के स्वास्थ्य के लिए भी सरकार ने निरंतर पहल की, जिससे जननी बाल सुरक्षा योजना से संस्थागत प्रसव में आशातीत वृद्धि हुई है। गर्भवती-शिशुवती माताओं को आशा एवं ममता जैसी प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं से स्वास्थ्य संरक्षण प्राप्त हुआ। पहले बिहार में प्रजनन दर 4.3 था जो घटकर अब 3 हो गया है। इसके लिए लड़कियों को शिक्षित किया जा रहा है। लड़कियां पढ़ेंगी तो प्रजनन दर में और कमी आएगी। बिहार का क्षेत्रफल कम है, जनसंख्या का घनत्व अधिक है, इसलिए प्रजनन दर घटाने के लिए बेटियों को शिक्षित करने पर विशेष बल दिया जा रहा है।
राज्य सरकार ने आरक्षित रोज़गार महिलाओं का अधिकार निश्चय के तहत राज्य के सभी सेवा संवर्गों की सीधी नियुक्ति में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था लागू की। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अवसर बढ़े, आगे पढ़े, निश्चय के तहत जी.एन.एम संस्थान, महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान एवं ए.एन.एम संस्थान की स्थापना कर रही है। विकसित बिहार के सात निश्चय में एक शौचालय निर्माण घर का सम्मान भी महिला सशक्तिकऱण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। महिलाओं की न्याय संगत पहुंच सुनिश्चित करने तथा उनके समग्र विकास हेतु अनुकूल वातावरण का सृजन करने के लिए मार्च 2015 में बिहार राज्य महिला सशक्तिकरण नीति, 2015 लागू की गयी। जीविका परियोजना के तहत राज्य में 10 लाख स्वयं सहायता समूह बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था और अब तक 10 लाख 28 हजार स्वयं सहायता समूहों को गठित किया जा चुका है जिनसे 1 करोड़ 27 लाख से परिवार जुड़ गया है। उस समय की सरकार ने जीविका का अध्ययन किया और इसे पूरे देश में आजीविका के नाम से यह योजना चलायी। जीविका स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सक्षम हुई हैं। यह एक मूक क्रांति है। उनकी सांगठनिक शक्ति का बेहतरीन उदाहरण शराबबंदी है।
बाल विवाह और दहेज प्रथा के विरूद्ध वर्तमान में विशिष्ट कानून लागू है। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम-2006 के प्रावधानों के अनुसार लड़कों की शादी की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष निर्धारित है। लेकिन केंद्र सरकार बेटियों की शादी के लिए बी अब 21 वर्ष करने के लिए काम कर रही है। इसी प्रकार दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 एवं समय-समय पर हुए इनके संशोधनों के अनुसार दहेज का लेन देन भी कानूनी अपराध है और कानून में दोषियों के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान है। बाल विवाह के कई कारण हैं यथा बालिका अशिक्षा, पिछड़ापन, गरीबी, लैंगिक असमानता, लड़कियों को लेकर असुरक्षा की भावना आदि। बाल विवाह के दुष्परिणाम केवल बालिकाओं तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि अगली पीढ़ी को भी प्रभावित करते हैं। बाल विवाह लड़कियों के शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास को प्रभावित करता है। कम उम्र में गर्भ धारण करने के कारण माताएं अस्वस्थ और कम अविकसित शिशु को जन्म देती हैं, जो आगे चलकर बच्चे बौनेपन एवं मंदबुद्दि के शिकार हो जाते हैं। किसी भी बालिका को उम्र से पहले विवाह के बंधन में बांधकर उन्हें अन्य मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित कर उनके सर्वांगीण विकास को बाधित करना उनके मानव अधिकार का हनन है। बालिकाओं की शिक्षा का राज्य तथा देश की जनसंख्या के स्थिरीकरण से बिल्कुल सीधा संबंध है। बेटियों का अगर बिना भेदभाव के समान रूप से पालन पोषण हो तो वे शिक्षित एवं आत्मनिर्भर बनेंगी और अपने तथा परिवार के लिए सहारा बनेंगी।
दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति है, जो कानूनन अपराध होने के बावजूद समाज में पूरी स्वीकार्यता के साथ व्याप्त है। यह प्रथा समय के साथ और व्यापक हुई है और समाज के सभी वर्गों विशेषकर गरीब वर्गों को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के वर्ष 2015 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वैसे तो महिला अपराध की दर में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का 26वां स्थान है पर दहेज मृत्यु के दर्ज मामलों की संख्या में बिहार का स्थान देश में दूसरा है।
बाल विवाह एवं दहेज प्रथा की समस्या को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार ने गांधी जयंती के शुभ अवसर पर इनके विरुद्ध अभियान प्रारंभ किया। इसके अतिरिक्त इन दोनों सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध लागू कानून की समीक्षा कर अपेक्षित संशोधन तथा इसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संरचानात्मक बदलाव की प्रक्रिया शुरु कर नीतीश सरकार ने इसमें बड़ा बदलाव लाया।
शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो बिहार में साढ़े बारह प्रतिशत बच्चे स्कूलों से बाहर रहते थे। सरकार ने यह निर्णय लिया कि पहले बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाएंगे क्योंकि स्कूल तक पहुंचाना भी अपने आप में एक शिक्षा है। उसी का नतीजा है कि बच्चे-बच्चियों की संख्या स्कूलों में बड़े पैमाने पर बढ़ी है। इसके लिए पंचायतीराज संस्थाओं और नगर निकायों के माध्यम से शिक्षकों का नियोजन किया गया। आगे की पढ़ाई के लिए निफ्ट (नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी), चाणक्या लॉ यूनीवर्सिटी बना, आई.आई.एम. की तर्ज पर चंद्रगुप्त इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट की स्थापना की गई। एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी बनाया गया। कई एग्रीकल्चर कॉलेज खुले, हॉर्टीकल्चर कॉलेज खोले गए, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज ये सब खुले। इन सारे तथ्यों से नीतीश कुमार का महिलाओं के सम्मान को लेकर किए गए प्रयास का नतीजा है कि उनकी सरकार देश दुनिया में चर्चा का विषय बन गई है।
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