इतनी बड़ी कंपनी किसे पैसा खिला रही थी, जो खा रहा था, वो ख़ुद खा रहा था या आगे भी किसी को खिला रहा था, उसने और किस-किस से पैसे खाए होंगे, इतने सारे सवाल है कि दिमाग से पहले पेट खाली हो जाए.
अमेरिका की एक कंपनी पर आरोप लगा है कि उसने रेल मंत्रालय की सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी के अधिकारियों को घूस दी. चार लाख डॉलर की रिश्वत. करीब सवा तीन करोड़ रुपये. कौन सी कंपनी है, कौन अफसर है, उसने किस-किस को पैसे दिए, कुछ पता नहीं. सवा तीन करोड़ की रिश्वत कोई मामूली रकम तो नहीं है. ऑरेकल दुनिया की बड़ी साफ्टवेयर कंपनियों में से एक है. इसी कंपनी से रेलवे की कंपनी के अफसरों ने रिश्वत ले ली. यह मामला 2016 से 2019 के बीच का है जब पीयूष गोयल रेल मंत्री थे.
भारत में कंपनियों के हिसाब-किताब पर नजर रखने के लिए सेबी नाम की संस्था है, उसी तरह से अमेरिका में सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन है. इस आयोग के सामने ऑरेकल की पेशी हुई. सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज ने ऑरेकल पर आरोप लगाया है कि उसने भारत, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात में रिश्वत का सहारा लिया है. भारत में अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी है. इस पर कंपनी पर जो जुर्माना लगाया गया है वह रिश्वत की राशि से काफी बड़ी है. अमेरीका के सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमिशन ने ऑरेकल पर 188 करोड़ का जुर्माना लगा दिया है. 23 मिलियन डॉलर.
इतनी बड़ी कंपनी किसे पैसा खिला रही थी, जो खा रहा था, वो ख़ुद खा रहा था या आगे भी किसी को खिला रहा था, उसने और किस-किस से पैसे खाए होंगे, इतने सारे सवाल है कि दिमाग से पहले पेट खाली हो जाए. एक जानकारी और है. यह खबर भारत से नहीं आई है. अमेरीका से आई है जब 27 सितंबर को वहां के आयोग ने फैसला दिया. आज छह अक्तूबर है. भारत में इस पर चुप्पी साध ली गई. द वायर ने इस पर पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल के दफ्तर से और रेल मंत्रालय से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की है मगर कोई जवाब नहीं मिला. इतना ही कि अभी बताने के लिए कुछ नहीं है.
ऐसी ही खबर 2019 में आई थी. मनी लाइफ में सुचेता दलाल ने लिखा है. इस खबर के अनुसार Cognizant Technology Solutions Corporation ने भी भारत की एक कंपनी L&T को कथित रूप से पैसे दिए थे, काम कराने के लिए. अमेरीका के सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमिशन ने Cognizant Technology Solutions Corporation की यह चोरी पकड़ ली. कंपनी ने इस पर कुछ नहीं कहा, मतलब न खंडन किया न स्वीकार किया. बस चुपचाप करीब 200 करोड़ रुपये का जुर्माना भर दिया. 25 मिलियन डॉलर का फाइन चुका दिया. चूंकि यह रिपोर्ट 2019 की है तो जाहिर है हमने यह भी देखने का प्रयास किया कि उस वक्त L&T ने क्या सफाई दी थी. मनी लाइफ में तो छपा है कि L&T ने Cognizant के जुर्माना भरने पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. फिर जून 2021 में इकोनमिक टाइम्स में एक और खबर मिलती है कि L&T ने अमेरिका की अदालत में कहा है कि उसे इस केस में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि L&T के हिसाब से ऐसा कुछ नहीं हुआ है. आरोप था कि Cognizant के दो बड़े अधिकारियों ने सरकारी अधिकारी को 2015 में रिश्वत दी. Cognizant का चेन्नई में कैंपस बनना था और कंस्ट्रक्शन कंपनी L&T को ठेका मिला था. उसके जरिए कथित रूप से रिश्वत दी गई और बाद में L&T से कहा गया कि किसी और मद में पैसे का हिसाब दिखा दें. मगर अमेरीका की नियामक संस्था ने चोरी पकड़ ली. पुरानी रिपोर्ट में यह लिखा है कि कथित रूप से रिश्वत की रकम तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों को दी गई.
L&T और Cognizant Technology के मामले में फरवरी 2020 में लाइव मिंट में एक खबर छपी है कि किसी ने मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर CBI से जांच की मांग की है. मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया है. 2019 में DMK ने भी इस मामले में जांच की मांग की थी. मीडिया रिपोर्ट में खबरें तो मिल जाती हैं मगर अंत में उन मामलों का क्या हुआ, कई बार इसकी जानकारी नहीं मिलती है. माना जा सकता है कि चुप्पी साध ली गई है. इस मामले में 2016 में कंपनी के प्रेसिडेंट को इस्तीफा देना पड़ा था. इस्तीफे का कारण तो नहीं बताया गया मगर इसे रिश्वत देने की घटना से जोड़ा गया था. दिलचस्प बात यह है कि इस घटना से संबंधित पुरानी खबरों में यह लिखा हुआ है कि इसके सामने आने के बाद भी न तो सरकारी अफसर हैरान हैं और न नेता. ठीक यही सवाल इस बार भी उठ रहा है कि ऑरेकल ने रेलवे की एक कंपनी के अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी, यह कैसे हो
गया? कुछ और पुरानी ख़बरें हमें मिली हैं, जिनसे पता चलता है कि विदेशी कंपनियों को भारत में काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है.
2017 की हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरीका की एक इंजीनियरिंग कंपनी ने कथित रूप से नेशनल हाईवेज़ अथारिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के अधिकारियों को दस लाख डॉलर से अधिक की राशि रिश्वत के रूप में दी है. इस कंपनी ने 2011 से लेकर 2015 के बीच कांट्रेक्ट हासिल करने के लिए पैसे दिए. यह मामला भी अमेरीका में पकड़ में आया था. अमेरीकी कोर्ट में जब मामला साबित हुआ, तब भारत सरकार ने भी इस मामले में जांच की थी. CDM स्मिथ डिविज़न नाम की कंपनी के भारत में काम करने वाले कर्मचारियों ने कथित रूप से रिश्वत दी थी. खबरों के मुताबिक, परिवहन मंत्री गडकरी ने जांच बिठा दी थी. सीबीआई के छापे की भी खबर मिलती है. उसके आगे की जानकारी नहीं मिल सकी. इस मामले के उजागर होने से पहले ही NHAI ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था.
अमेरीका में सिस्टम ऐसा है कि वहां की कंपनी जब रिश्वत देती है तो पकड़ी जाती है. फिर उसे जुर्माना भरना पड़ता है. कायदे से भारत में सिस्टम होना चाहिए कि कोई विदेशी या देशी कंपनी से रिश्वत मांगे तो सरकार की एजेंसी उसी वक्त पकड़ ले. चूकि मीडिया गोदी मीडिया में बदल चुका है और कॉरपोरेट के भ्रष्टाचार के खिलाफ रिपोर्टिंग की संस्कृति समाप्त हो चुकी है, इसलिए ऐसी खबरें अब नहीं आती हैं. हिमाचल प्रदेश से खबर आई थी कि प्रधानमंत्री की रैली कवर करने वाले पत्रकारों को चरित्र प्रमाण पत्र देना होगा. हंगामा हुआ तो यह आदेश वापस ले लिया गया. गोदी मीडिया से कोई चरित्र प्रमाण पत्र मांग ले, इससे बुरा क्या हो सकता है, लेकिन आप ऐसे भी देख सकते हैं. चरित्र प्रमाण पत्र मांगने वाले अधिकारी ने गोदी मीडिया से पत्रकारिता प्रमाण पत्र नहीं मांगा. अगर पत्रकारिता का प्रमाण मांग देता तो गोदी मीडिया क्या करता. उसमें कौन सी खबर लिखवा कर ले जाते, चरित्र प्रमाण पत्र तो इस देश में कोई भी अधिकारी जारी कर देता है जिसके खुद के चरित्र का प्रमाण असंदिग्ध नहीं होता है.
रिश्वत जैसे हमारे सिस्टम का हिस्सा हो गया, न रिश्वत लेने वाले को डर, न देने वाले को
होमब्लॉगरिश्वत जैसे हमारे सिस्टम का हिस्सा हो गया, न रिश्वत लेने वाले को डर, न देने वाले को
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इतनी बड़ी कंपनी किसे पैसा खिला रही थी, जो खा रहा था, वो ख़ुद खा रहा था या आगे भी किसी को खिला रहा था, उसने और किस-किस से पैसे खाए होंगे, इतने सारे सवाल है कि दिमाग से पहले पेट खाली हो जाए.
रवीश कुमार, Updated: 7 अक्टूबर, 2022 9:46 AM
अमेरिका की एक कंपनी पर आरोप लगा है कि उसने रेल मंत्रालय की सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी के अधिकारियों को घूस दी. चार लाख डॉलर की रिश्वत. करीब सवा तीन करोड़ रुपये. कौन सी कंपनी है, कौन अफसर है, उसने किस-किस को पैसे दिए, कुछ पता नहीं. सवा तीन करोड़ की रिश्वत कोई मामूली रकम तो नहीं है. ऑरेकल दुनिया की बड़ी साफ्टवेयर कंपनियों में से एक है. इसी कंपनी से रेलवे की कंपनी के अफसरों ने रिश्वत ले ली. यह मामला 2016 से 2019 के बीच का है जब पीयूष गोयल रेल मंत्री थे.
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भारत में कंपनियों के हिसाब-किताब पर नजर रखने के लिए सेबी नाम की संस्था है, उसी तरह से अमेरिका में सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन है. इस आयोग के सामने ऑरेकल की पेशी हुई. सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज ने ऑरेकल पर आरोप लगाया है कि उसने भारत, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात में रिश्वत का सहारा लिया है. भारत में अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी है. इस पर कंपनी पर जो जुर्माना लगाया गया है वह रिश्वत की राशि से काफी बड़ी है. अमेरीका के सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमिशन ने ऑरेकल पर 188 करोड़ का जुर्माना लगा दिया है. 23 मिलियन डॉलर.
इतनी बड़ी कंपनी किसे पैसा खिला रही थी, जो खा रहा था, वो ख़ुद खा रहा था या आगे भी किसी को खिला रहा था, उसने और किस-किस से पैसे खाए होंगे, इतने सारे सवाल है कि दिमाग से पहले पेट खाली हो जाए. एक जानकारी और है. यह खबर भारत से नहीं आई है. अमेरीका से आई है जब 27 सितंबर को वहां के आयोग ने फैसला दिया. आज छह अक्तूबर है. भारत में इस पर चुप्पी साध ली गई. द वायर ने इस पर पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल के दफ्तर से और रेल मंत्रालय से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की है मगर कोई जवाब नहीं मिला. इतना ही कि अभी बताने के लिए कुछ नहीं है.
ऐसी ही खबर 2019 में आई थी. मनी लाइफ में सुचेता दलाल ने लिखा है. इस खबर के अनुसार Cognizant Technology Solutions Corporation ने भी भारत की एक कंपनी L&T को कथित रूप से पैसे दिए थे, काम कराने के लिए. अमेरीका के सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमिशन ने Cognizant Technology Solutions Corporation की यह चोरी पकड़ ली. कंपनी ने इस पर कुछ नहीं कहा, मतलब न खंडन किया न स्वीकार किया. बस चुपचाप करीब 200 करोड़ रुपये का जुर्माना भर दिया. 25 मिलियन डॉलर का फाइन चुका दिया. चूंकि यह रिपोर्ट 2019 की है तो जाहिर है हमने यह भी देखने का प्रयास किया कि उस वक्त L&T ने क्या सफाई दी थी. मनी लाइफ में तो छपा है कि L&T ने Cognizant के जुर्माना भरने पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. फिर जून 2021 में इकोनमिक टाइम्स में एक और खबर मिलती है कि L&T ने अमेरिका की अदालत में कहा है कि उसे इस केस में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि L&T के हिसाब से ऐसा कुछ नहीं हुआ है. आरोप था कि Cognizant के दो बड़े अधिकारियों ने सरकारी अधिकारी को 2015 में रिश्वत दी. Cognizant का चेन्नई में कैंपस बनना था और कंस्ट्रक्शन कंपनी L&T को ठेका मिला था. उसके जरिए कथित रूप से रिश्वत दी गई और बाद में L&T से कहा गया कि किसी और मद में पैसे का हिसाब दिखा दें. मगर अमेरीका की नियामक संस्था ने चोरी पकड़ ली. पुरानी रिपोर्ट में यह लिखा है कि कथित रूप से रिश्वत की रकम तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों को दी गई.
L&T और Cognizant Technology के मामले में फरवरी 2020 में लाइव मिंट में एक खबर छपी है कि किसी ने मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर CBI से जांच की मांग की है. मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया है. 2019 में DMK ने भी इस मामले में जांच की मांग की थी. मीडिया रिपोर्ट में खबरें तो मिल जाती हैं मगर अंत में उन मामलों का क्या हुआ, कई बार इसकी जानकारी नहीं मिलती है. माना जा सकता है कि चुप्पी साध ली गई है. इस मामले में 2016 में कंपनी के प्रेसिडेंट को इस्तीफा देना पड़ा था. इस्तीफे का कारण तो नहीं बताया गया मगर इसे रिश्वत देने की घटना से जोड़ा गया था. दिलचस्प बात यह है कि इस घटना से संबंधित पुरानी खबरों में यह लिखा हुआ है कि इसके सामने आने के बाद भी न तो सरकारी अफसर हैरान हैं और न नेता. ठीक यही सवाल इस बार भी उठ रहा है कि ऑरेकल ने रेलवे की एक कंपनी के अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी, यह कैसे हो गया? कुछ और पुरानी ख़बरें हमें मिली हैं, जिनसे पता चलता है कि विदेशी कंपनियों को भारत में काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है.
2017 की हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरीका की एक इंजीनियरिंग कंपनी ने कथित रूप से नेशनल हाईवेज़ अथारिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के अधिकारियों को दस लाख डॉलर से अधिक की राशि रिश्वत के रूप में दी है. इस कंपनी ने 2011 से लेकर 2015 के बीच कांट्रेक्ट हासिल करने के लिए पैसे दिए. यह मामला भी अमेरीका में पकड़ में आया था. अमेरीकी कोर्ट में जब मामला साबित हुआ, तब भारत सरकार ने भी इस मामले में जांच की थी. CDM स्मिथ डिविज़न नाम की कंपनी के भारत में काम करने वाले कर्मचारियों ने कथित रूप से रिश्वत दी थी. खबरों के मुताबिक, परिवहन मंत्री गडकरी ने जांच बिठा दी थी. सीबीआई के छापे की भी खबर मिलती है. उसके आगे की जानकारी नहीं मिल सकी. इस मामले के उजागर होने से पहले ही NHAI ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था.
अमेरीका में सिस्टम ऐसा है कि वहां की कंपनी जब रिश्वत देती है तो पकड़ी जाती है. फिर उसे जुर्माना भरना पड़ता है. कायदे से भारत में सिस्टम होना चाहिए कि कोई विदेशी या देशी कंपनी से रिश्वत मांगे तो सरकार की एजेंसी उसी वक्त पकड़ ले. चूकि मीडिया गोदी मीडिया में बदल चुका है और कॉरपोरेट के भ्रष्टाचार के खिलाफ रिपोर्टिंग की संस्कृति समाप्त हो चुकी है, इसलिए ऐसी खबरें अब नहीं आती हैं. हिमाचल प्रदेश से खबर आई थी कि प्रधानमंत्री की रैली कवर करने वाले पत्रकारों को चरित्र प्रमाण पत्र देना होगा. हंगामा हुआ तो यह आदेश वापस ले लिया गया. गोदी मीडिया से कोई चरित्र प्रमाण पत्र मांग ले, इससे बुरा क्या हो सकता है, लेकिन आप ऐसे भी देख सकते हैं. चरित्र प्रमाण पत्र मांगने वाले अधिकारी ने गोदी मीडिया से पत्रकारिता प्रमाण पत्र नहीं मांगा. अगर पत्रकारिता का प्रमाण मांग देता तो गोदी मीडिया क्या करता. उसमें कौन सी खबर लिखवा कर ले जाते, चरित्र प्रमाण पत्र तो इस देश में कोई भी अधिकारी जारी कर देता है जिसके खुद के चरित्र का प्रमाण असंदिग्ध नहीं होता है.
पिछले साल सितंबर महीने में रायटर्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, हिन्दू बिजनेस लाइन और मनी कंट्रोल में छपी खबर के अनुसार अमेरीका की सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज आयोग SEC ने लंदन की विज्ञापन के क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी WPP पर 155 करोड़ का जुर्माना लगा दिया. अमेरीकी नियामक आयोग ने अपने आदेश में लिखा कि इस कंपनी की एक सहायक कंपनी है जो भारत में काम करती है. उसने सरकारी विज्ञापन हासिल करने के लिए भारत के अधिकारियों को रिश्वत दी है. घूस खिलाने के कारण इस कंपनी का मुनाफा काफी बड़ गया था. ऐसा खबरों में लिखा है.
पिछले साल सितंबर में ही एमेजॉन के बारे में भी खबर आई थी कि कंपनी ने 2018-19 और 2019-20 के दौरान लीगल फीस के रूप में कथित रूप से 8000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का भुगतान किया था. 8000 करोड़ तो बहुत होता है, सवाल उठा कि यह राशि रिश्वत के रूप में दी गई और लीगल फीस के रूप में दिखाई गई होगी. कंपनी के वित्तीय हिसाब किताब में यह सब दिखाया गया था. खबरों में कहा गया है कि एमेजॉन इसकी जांच करा रही है और इसे लेकर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र भी लिखा गया है. टाइम्स आफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से इस खबर के बारे में लिखा है कि एमेजॉन ने स्पष्टीकरण दिया कि 8500 करोड़ नहीं, 52 करोड़ रुपये लीगल फीस के रूप में खर्च हुए हैं. यह खबर भी अलग-अलग दावों में उलझ कर रह गई. आखिर 8500 करोड़ की बात कहां से आ गई?
मूल बात यह है कि रिश्वत देने के इन आरोपों की खबरें जब आती हैं तो एक दो जगहों पर छपती हैं और गायब हो जाती हैं. रफाल विमान में दस लाख डॉलर की कथित दलाली का मामला भी ऐसा ही निकला. फ्रांस में जांच होती है, रिश्वत देने के आरोपों की पुष्टि होती है लेकिन भारत में सील बंद लिफाफे में कोर्ट को जानकारी दी जाती है और सारे आरोप खारिज कर दिए जाते हैं.
“French dare to order what we did not” – कोलकाता से छपने वाले अंग्रेज़ी अख़बार टेलिग्राफ ने हेडलाइन लगाई. 8 जुलाई 2021 की है. 3 जुलाई को एसोसिएट प्रेस से यह ख़बर आई थी कि फ्रांस की National Financial Prosecutor Office PNF ने हाल के आरोपों के संदर्भ में जांच करने के लिए एक जज को नियुक्त किया है. इस रिपोर्ट में लिखा है कि रफाल को हासिल करने के लिए रिश्वत दी गई है. याचिका वित्तीय मामलों के एक NGO ने दायर की है. जिसने पहले भी एक याचिका
दायर की थी कि दासौं ने रिलायंस ग्रुप को इसलिए चुना क्योंकि इसके प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं. पहले इसे Hindustan Aeronautics Limited (HAL) दिया जाना था.
हम कहां से चले थे, कहां-कहां से गुज़र गए. हमारी बात शुरू हुई थी कि सॉफ्टवेयर की बड़ी कंपनी ऑरेक्ल ने अपना काम कराने के लिए रेल मंत्रालय की कंपनी के अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी. अमेरीका में जब यह आरोप साबित हो गया तो कंपनी को 3 करोड़ की रिश्वत के कारण 188 करोड़ का जुर्माना देना पड़ गया. मैं अक्सर सोचता हूं कि जब कोई मंत्री भारत को विश्व गुरु बनाने का दावा कर रहा होता है, तब रिश्वत लेने वाले अधिकारी क्या सोचते होंगे, क्या ज़ोर-ज़ोर से हंसते होंगे या ज़ोर-ज़ोर से रोते होंगे? टैक्स चोरी और रिश्वत की खबरें कहीं से कम नहीं हुई हैं. नीचे की सीढ़ी पर बैठे अधिकारी का वीडियो वायरल हो जाता है, वे सस्पेंड हो जाते हैं. मगर करोड़ों रुपये के आरोप लगने के बाद भी ख़बर बीच रास्ते से गायब हो जाती है. यूपी के देवरिया से एक वीडियो वायरल हो गया कि वहां के एक कर्मचारी गिरिजेश्वर मणि त्रिपाठी पेंशन का कागज़ बनाने के लिए महिला से दस हज़ार की रिश्वत मांग रहे थे. वे निलंबत कर दिए गए हैं. त्रिपाठी ने तो वीडियो में कहा है कि पैसा ऊपर के अधिकारी तक जाता है मगर ऊपर वाला ऊपर वाला होता है. उसका कुछ नहीं होता है.
राजनीति में राष्ट्रवाद और धर्म की आंधी चल रही है. सवाल यह है कि क्या धर्म की राजनीति से समाज में अलग किस्म की नैतिकता पैदा होती है? लोग झूठ बोलना छोड़ देते हैं, रिश्वत खोरी और मिलावट खोरी बंद कर देते हैं? जब धर्म के सहारे से राजनीति की जा रही है तो उसके असर का अध्ययन तो होना ही चाहिए कि इससे समाज सुंदर होता है या कुछ बदमाशों को लाइसेंस मिल जाता है? गोदी मीडिया के तमाम ऐंकर हर दिन धर्म की रक्षा में उतर जाते हैं. कम से कम यही पूछ लेते सरकार से कि किस अधिकारी ने ऑरेकल से रिश्वत ली है या ये साहस भी खत्म हो जाता है? आप कई बार सुनते होंगे कि भारत विश्व गुरु बनने वाला है, क्या आपने सोचा है कि भारत से पहले कौन सा देश विश्व गुरु था या है, या किसी और देश ने कभी विश्व गुरु के लिए ट्राई ही नहीं किया? विश्व गुरु भारत की एक कंपनी ने भारत का नाम रोशन कर दिया है.
मामला जरा गंभीर है. हरियाणा की एक कंपनी के बनाए कफ सिरप को लेकर WHO ने दुनिया भर में अलर्ट जारी किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मेडिन फार्मास्यूटिकल्स के बनाए कफ सिरफ के सेवन से 66 बच्चों की जान चली गई है.
भारत की दवा कंपनी के बनाए प्रोडक्ट से बच्चे मर जाएं, ग्लोबल लेवल पर साख ख़राब हो जाती है. भारत की दवा कंपनियों की साख बेहतर हुई थी लेकिन अगर यह सही निकला तो विश्व गुरु बनने के लिए आतुर भारत के लिए अच्छा नहीं होगा. बेहतर है कि हर तरह से जांच होनी चाहिए. स्वच्छता को लेकर ज़मीन पर कितना काम हुआ, विज्ञापन कितना छपा, इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन हर साल स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट आती है कि फलां शहर आगे हो गया, फलां शहर पीछे हो गया. उस सर्वेक्षण में इसकी जानकारी नहीं होती कि इस अभियान से सफाईकर्मियों की ज़िंदगी में क्या बदलाव आया? उनकी नौकरी कितनी पक्की हुई और सुरक्षा कितनी बेहतर हुई. आप किसी एक अखबार को लेकर सिर्फ इतना टाइप कीजिए कि सीवर या टैंक की सफाई करते समय दम घुटने से कितने लोगों की मौत हुई, आपको सच्चाई दिख जाएगी. नहीं देखना चाहते हैं कोई बात नहीं, इसके बिना भी हम विश्व गुरु बन सकते हैं.
भाषण में कभी पीछे नहीं रहना है, भले राशन का जुगाड़ न हो. पिछले दस सितंबर को दिल्ली के मुंडका में सीवर की सफाई करते समय दम घुटने से दो लोगों की मौत हो गई थी. इस साल मार्च की खबर है, दिल्ली से ही, अमर उजाला में छपी है. दो दिन के भीतर दिल्ली में छह लोग दम घुटने से मर गए. ये सभी सीवर की सफाई करने के लिए उतरे थे. पिछले साल जनवरी में फरीदाबाद में दो लोगों की मौत हो गई थी. और इस बुधवार को फरीदाबाद में ही एक प्राइवेट अस्पताल के सीवर की सफाई करते समय चार लोग मर गए.
सरकार कहती है कि हाथ से मैला ढोने के कारण कोई नहीं मरा, क्या हाथ से सीवर सफाई करना मैला ढोना नहीं है? क्या इस पर कोई बहस हो रही है ? रेवड़ियों पर हो रही है. क्या आप नहीं जानते कि कोविड के समय कई देशों ने अपने नागरिकों के खाते में हज़ारों डॉलर डाले थे ताकि वे अपने आर्थिक नुकसान की
मामला जरा गंभीर है. हरियाणा की एक कंपनी के बनाए कफ सिरप को लेकर WHO ने दुनिया भर में अलर्ट जारी किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मेडिन फार्मास्यूटिकल्स के बनाए कफ सिरफ के सेवन से 66 बच्चों की जान चली गई है.
भारत की दवा कंपनी के बनाए प्रोडक्ट से बच्चे मर जाएं, ग्लोबल लेवल पर साख ख़राब हो जाती है. भारत की दवा कंपनियों की साख बेहतर हुई थी लेकिन अगर यह सही निकला तो विश्व गुरु बनने के लिए आतुर भारत के लिए अच्छा नहीं होगा. बेहतर है कि हर तरह से जांच होनी चाहिए. स्वच्छता को लेकर ज़मीन पर कितना काम हुआ, विज्ञापन कितना छपा, इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन हर साल स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट आती है कि फलां शहर आगे हो गया, फलां शहर पीछे हो गया. उस सर्वेक्षण में इसकी जानकारी नहीं होती कि इस अभियान से सफाईकर्मियों की ज़िंदगी में क्या बदलाव आया? उनकी नौकरी कितनी पक्की हुई और सुरक्षा कितनी बेहतर हुई. आप किसी एक अखबार को लेकर सिर्फ इतना टाइप कीजिए कि सीवर या टैंक की सफाई करते समय दम घुटने से कितने लोगों की मौत हुई, आपको सच्चाई दिख जाएगी. नहीं देखना चाहते हैं कोई बात नहीं, इसके बिना भी हम विश्व गुरु बन सकते हैं.
भाषण में कभी पीछे नहीं रहना है, भले राशन का जुगाड़ न हो. पिछले दस सितंबर को दिल्ली के मुंडका में सीवर की सफाई करते समय दम घुटने से दो लोगों की मौत हो गई थी. इस साल मार्च की खबर है, दिल्ली से ही, अमर उजाला में छपी है. दो दिन के भीतर दिल्ली में छह लोग दम घुटने से मर गए. ये सभी सीवर की सफाई करने के लिए उतरे थे. पिछले साल जनवरी में फरीदाबाद में दो लोगों की मौत हो गई थी. और इस बुधवार को फरीदाबाद में ही एक प्राइवेट अस्पताल के सीवर की सफाई करते समय चार लोग मर गए.
सरकार कहती है कि हाथ से मैला ढोने के कारण कोई नहीं मरा, क्या हाथ से सीवर सफाई करना मैला ढोना नहीं है? क्या इस पर कोई बहस हो रही है ? रेवड़ियों पर हो रही है. क्या आप नहीं जानते कि कोविड के समय कई देशों ने अपने नागरिकों के खाते में हज़ारों डॉलर डाले थे ताकि वे अपने आर्थिक नुकसान की भरपाई कर सके. अमेरीका, जर्मनी, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया सब जगह. क्या वो रेवड़ियां थीं? बहस होनी चाहिए कि विज्ञापन छपवा कर और भाषणों में आर्थिक रूप से सुपर पावर होने के दावे के बाद भी
अस्सी करोड़ जनता की हालत इतनी खराब क्यों है कि वह दो वक्त का अनाज भी नहीं खरीद सकती है? हमारा काम है, इन्हीं सब खबरों और सवालों को सामने लाना जो गायब कर दी जाती हैं.
स्क्रोल डॉट इन पर रिपोर्ट छपी है कि 2020 में कोविड महामारी के कारण साढ़े पांच करोड़ से ज़्यादा भारतीय गरीबी रेखा के नीचे चले गए. विश्व बैंक ने सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकॉनमी के सर्वे के आधार पर यह आंकलन पेश किया है. भारत ने 2011 से इस तरह का आधिकारिक डेटा प्रकाशित नहीं किया है. 2020 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा था कि 2020 में 2.3 करोड़ भारतीय और गरीब हो गए. विश्व बैंक का कहना है कि जब आंकड़ों को अंतिम रूप दिया जाएगा तब यह संख्या साढ़े पांच करोड़ से भी अधिक हो सकती है. महामारी के कारण दुनिया भर में गरीबी बढ़ी है.
क्या आप जानते हैं कि पांच दिनों के भीतर गुजरात और महाराष्ट्र से 317 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए हैं? 5 अक्टूबर को मुंबई से 227 करोड़ के जाली नोट बरामद किए गए हैं. विकास जैन को मास्टर माइंड बताया जा रहा है. विकास के साथ अंशुल शर्मा और दीनानाथ यादव को भी गिरफ्तार किया गया है. इसके पांच दिन पहले 30 सितंबर को सूरत में ही 25 करोड़ का जाली नोट पकड़ाया है. यह पैसा एंबुलेंस में ले जाया जा रहा था. यही नहीं जब और जांच हुई तब सूरत, जामनगर और आनंद जिले से 90 करोड़ के जाली नोट बरामद हुए हैं. यह सब मिलाकर 317 करोड़ से अधिक हो जाता है. एंबुलेंस में नकली नोटों का पकड़ा जाना अच्छी बात नहीं है.
वैसे ही लोग सवाल कर रहे हैं कि दो अक्टूबर को प्रधानमंत्री के काफिले को रोक कर एंबुलेंस को जाने दिया गया. यह एंबुलेंस उनके रास्ते में कैसे आ गई? उनके काफिले का मार्ग तो पूरी तरह से बंद होता है. एंबुलेंस में कौन था, जो मरीज़ था वो किस अस्पताल में भर्ती हुआ? उसने प्रधानमंत्री का धन्यवाद क्यों नहीं अदा किया? मीडिया ने मरीज़ के परिवारों का इंटरव्यू नहीं किया? बस यही समझ नहीं आया. गुजराती अखबारों के पाठक ही बता सकते हैं कि ऐसी कोई रिपोर्ट छपी है या नहीं. उम्मीद है जल्दी
ही मरीज़ का परिवार सामने आएगा या लाया जाएगा जो प्रधानमंत्री का धन्यवाद अदा करेगा. पूरा देश धन्यवाद दे रहा है, मरीज़ के परिजनों को भी देना चाहिए.
अगर बिहार में 317 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए होते तो गोदी मीडिया रोज़ जंगलराज के नाम से बहस कर रहा होता. 2020 में गृह राज्य मंत्री ने लोकसभा में बताया था कि 2016 से 2019 के बीच गुजरात से 11 करोड़ से अधिक के जाली नोट पकड़े गए थे. यह देश के 17 सीमावर्ती राज्यों में सबसे अधिक था. पिछले पांच दिनों में गुजरात और महाराष्ट्र से 317 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए हैं. मुंबई और गुजरात से आए दिन सैकड़ों करोड़ के ड्रग्स बरामद हो रहे हैं. इस पर पूरे देश को चिन्ता करनी चाहिए क्योंकि जो ड्रग्स नहीं पकड़ा जाता होगा, वो कहां-कहां पहुंच रहा होगा, किस किस के घर में, इतना ही सोच लीजिए तो काफी है.
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