(प्रभात कुमार)
भगवती दुर्गा के 108 नामों में आद्या (मूल, आरंभ) है, तो चिता (मृत्युशैया) भी। लोकमानस में देवी के कई रूप हैं। कुछ स्नेहशील और ममतामय हैं, तो कुछ हिंसक और डरावने भी। उनका सर्वाधिक शांत, सुंदर और कांतिमय रूप ‘गौरी’ है और सबसे उग्र, हिंसक और क्रूर रूप देवी ‘काली’ का है। अपने इन्हीं विविध रूपों और नामों के साथ मां दुर्गा पूजी जाती हैं। इसकी दो तरह से व्याख्या की जा सकती है-
हर स्त्री है दुर्गा
देवी की आठ भुजाओं और उनमें सुशोभित अस्त्र-शस्त्रों की तुलना आज या पहले की स्त्री से करें। हम देखेंगे कि हमारे समाज में स्त्रियों पर बहुआयामी कर्तव्य और उत्तरदायित्व का बोझ रहा है और उन्होंने पूरी सफलता, सामर्थ्य और निष्ठा के साथ उनका निर्वहन भी किया है। स्पष्ट है कि स्त्री-अस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीक के रूप में देवी आराधना धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु सामाजिक दृष्टि से भी तर्कसंगत होगी।
परिवर्तन की प्रेरक
देवदत्त पटनायक कहते हैं कि देवी जब अपना रूप बदलती हैं, तो वे परिवर्तन के लिए प्रेरित करती हैं। सर्जक भंजक में परिवर्तित हो सकता है। भंजक रक्षक में बदल सकता है। जो हानि पहुंचाता है वह संरक्षण कर सकता है। जो इच्छा करता है वह संयम भी दिखा सकता है। देवी हमारे इर्द-गिर्द की दुनिया हैं। देवी हमें प्रेरित करती हैं। वे हमारे भीतर इच्छा पैदा करती हैं।
नवदुर्गा का नवाचार
नवदुर्गा के नौ रूपों में शैलपुत्री को स्वाभिमानी और दृढ़ इच्छाशक्ति संपन्न, ब्रह्मचारिणी को स्थिरमना और संघर्षशील और चंद्रघंटा को कल्याणकारिणी माना जाता है। इसी तरह कूष्मांडा गर्भ धारण करने वाली, स्कंदमाता और कात्यायनी-स्वरूप संततियों के माता-पिता और पालनहार, कालरात्रि जड़ जीवन से मुक्त होकर एक चेतना सम्पन्न मोक्ष की प्राप्ति आदि की द्योतक है।
भगवती का आठवां रूप महागौरी और नौवां रूप सिद्धिदात्री अर्थात ज्ञान अथवा बोध देने वाली देवी का है। ये देवी दुर्गा के सबसे दुर्लभ रूप हैं जिनके साक्षात्कार के लिए परम सिद्ध होने की आवश्यकता है। सूक्ष्मता से देखें तो एक आम भारतीय नारी में भी ये दुर्लभ रूप उपस्थित हैं, किंतु उनका सम्पूर्णता के साथ दर्शन से करने के लिए अपेक्षित धैर्य की आवश्यकता है।
परिवर्तन का अवसर
नवरात्र एक ऐसा पर्व है जो साल में तीन बार मनाया जाता है। इसमें चैत्र नवरात्र, शारदीय नवरात्र और गुप्त नवरात्र शामिल हैं। उत्सवधर्मिता और धार्मिक महत्ता की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। बहरहाल, इस वर्ष वैश्विक महामारी के मद्देनज़र ज़ाहिर है कि सारी दुनिया पर असर पड़ा है। त्योहार और सामाजिक-धार्मिक जीवन पर भी इसके तात्कालिक प्रभाव पड़े हैं। ऐसे में हमारे आस्था सम्बंधी विधानों और सामाजिक आचरण में थोड़ा-बहुत अंतर भी आया है।
देवी दुर्गा इस संकट की घड़ी में हमें अपने विकारों और विचारों दोनों को शुद्ध करने का अवसर और शक्ति देंगी, इसका दृढ़ विश्वास है। अत: ये नौ दिन संकट मिटाने और जीवन में सुख, समृद्धि और सुरक्षा आने का माध्यम बनाएं।
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