संघर्ष औऱ समर्पण के बूते गायकी में उमाकांत बरुआ ने पाया मुकाम

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मुरली मनोहर श्रीवास्तव

जीवन का अभिन्न हिस्सा है संघर्ष। हर किसी के जीवन में अलग अलग समस्याएं होती हैं और इसमें जो खुद को संभालकर अपने लक्ष्य पर टिका रहता है उसकी कामयाबी ही उसकी प्रतिभा को बयां करती है। कुछ ऐसा ही लोकगीत गायक उमाकांत बरुआ के साथ भी। बचपन में ही मां के गुजरने के बाद बरुआ की शिक्षा-दीक्षा अपने ननिहाल नवादा जिला के मेसकौर में ही हुई। इनके जीवन में भी काफी उतार चढ़ाव आया मगर उमाकांत ने अपनी गायकी से कभी समझौता नहीं किया, इन्होंने अपने कबीर पंथी नाना चांदो बाबू और दादा चौधरी गोप भूपा जो उस समय के प्रसिद्ध गायक और संत ने इन्हें विधिवत संगीत की शिक्षा दी।
भूगोल स्नातक के साथ-साथ संगीत प्रभाकर उमाकांत बरुआ 1998 में ऑल इंडिया रोडियो से जुड़ गए और आज तक गायन का काम करते हैं। वहीं वर्ष 2009 में बिहार दूरदर्शन से जुड़कर अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाने लगे। उमाकांत बरुआ अब तक वेब सीरिज से दो दर्जन कैसेट गा चुके हैं, जबकि टी सीरिज से देवी गीत गा चुके हैं। हलांकि 1999 में अपने कैसेट से पहचान कायम करने वाले बरुआ भोजपुरी में अश्लील गीतों से काफी परहेज करते हैं, कहते हैं कि अश्लीलता की वजह से हमारी भोजपुरी भाषा बदनाम हो रही है, इसलिए मेरा तो अन्य गायकों से अपील है कि इससे परहेज करें। लोकसम्राट भरत शर्मा व्यास, मदन राय और गोपाल राय को अपनी प्रेरणा मानने वाले बरुआ को सबसे पहले विपुल जी ने भारत कैसेट कंपनी से मौका दिया था।

उमाकांत बरुआ के पिता राम प्रसाद यादव शिक्षक थे मगर अपने बच्चों को पालने के लिए नौकरी तक छोड़ दिए थे। छह बेटियों के पिता उमाकांत अपने साथ-साथ अपनी बच्चियों को भी संगीत की तालिम दे रहे हैं जिसमें इनकी 12 वर्षीय बेटी सोनम कृति शास्त्रीय गायन में अपनी गायकी का छटा बिखेरने लगी है तो छोटी बेटी तन्नु भी उसी राह पर आगे बढ़ रही हैं। अपनी बेटियों को बेटी से किसी स्तर पर कम नहीं आंकते और कहते हैं कि बेटी है तो जहान है। इस तरह पूरे परिवार के माहौल को देखकर लगता है कि सरस्वती की उपासना का केंद्र है इनका परिवार। अपने संघर्ष के दिनों को यादकर बरुआ की आंखें आज भी गिली हो जाती हैं। नर्तक गेंदो रविदास हारमोनियम की शिक्षा ली तो सकलदेव व्यास ने कोलकाता में इन्हें पहली प्रस्तुती का मौका दिया था। वर्ष 1994 में मैट्रिक पास करने वाले इस गाय़क को विष्णु प्रसाद सिन्हा और सत्यनारायण सिंह का भी सानिध्य भरपुर प्राप्त हुआ। इन सबसे इतर बरुआ अपने जीवन में इतना आगे बढ़ने के लिए संगीत पुरोधा बिहार दूरदर्शन के निदेशक डॉ.राजकुमार नाहर को मानते हैं। इनके सानिध्य में पिछले दो दशक से आगे बढ़ रहे हैं और इन्हें ही अपना आदर्श मानते हैं।

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