आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को आज पूरे देश में दशहरा धूमधाम से मनाया जा रहा है. सत्य की असत्य पर जीत के इस पर्व को विजयादशमी भी कहते हैं. इतना ही नहीं ये पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति व शरद के प्रारंभ होने की सूचना भी देता है. इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी. मान्यता ये भी है कि मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का इसी दिन वध किया था. दशहरा के दिन शस्त्र पूजन करने की भी परंपरा है.
मान्यता है कि जब भगवान श्री राम की पत्नी माता सीता को लंका का राजा रावण अपहरण करके ले गया तब नारद मुनि के निर्देश के अनुसार भगवान श्री राम ने शक्ति की साधना का नौ दिन व्रत करके भगवती दुर्गा को प्रसन्न कर, विजय का वर प्राप्त किया और रावण की लंका पर चढ़ाई की. इसी आश्विन शुक्ल दशमी के दिन राम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी. तब से इसे तिथि को विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा.
देवी अपराजिता का करें विशेष पूजन
विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजन व शमी पूजन का विधान है. स्कंद पुराण के अनुसार जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पूजन दशमी तिथि को उत्तर पूर्व दिशा में दोपहर के समय विजय एवं कल्याण की कामना के लिए किया जाना चाहिए. इसके लिए सबसे पहले पवित्र स्थान पर चंदन से आठ कोण दल बनाकर संकल्प करना चाहिए- ‘मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्धयर्थ अपराजिता पूजन करिष्ये’. इसके बाद उस आकृति के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए. साथ ही दाहिने एवं बायें तरफ जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए. इसके बाद ‘अपराजितायै नमः जयायै नमः विजयायै नमः’ मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. जब पूजा कर लें तो उसके बाद प्रार्थना करें कि – ‘हे देवी, यथाशक्ति मैंने जो पूजा अपनी रक्षा के लिए की है उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को जा सकती हैं.
शमी के वृक्ष की भी करें पूजा
अपराजिता पूजन के पश्चात उत्तर-पूर्व की ओर शमी वृक्ष की पूजा करना चाहिए. शास्त्रों में शमी का अर्थ शत्रुओं का नाश करने वाला बताया गया है. शमी वृक्ष की पूजा करने के लिए उसे नीच नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखते हैं. फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा करके उसकी जड़ के पास मिट्टी व कुछ पत्ते घर लेकर आते हैं.
दशहरा का धार्मिक महत्व
विजयादशमी या फिर कहें दशहरा असत्य पर सत्य की जीत, अन्याय पर न्याय, अधर्म पर धर्म, दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की जीत का प्रमुख पर्व है. यह पर्व हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. यह सनातन सत्य है कि हमेशा शुभ कर्मों की ही जीत होती है. विजयादशमी को विजय पर्व भी कहा जाता है.
दशहरा राम की रावण पर विजय और दुर्गा माँ की महिषासुर पर विजय के अवसर पर मनाया जाता है इसीलिए दशहरे का दिन विजयपर्व के रूप में भी मनाया जाता है। भारतीय परंपरा हमेशा से ही वीरता और शक्ति का उपासक रहा है। आज के दिन रावण का पुतला जलाकर असत्य पर सत्य की जीत का जश्न मनाया जाता है।
भारत के विविध प्रदेशों में विजयादशमी विभिन्न तरीको के मनाया जाता है। हालाँकि हरेक प्रदेश में उत्सव मनाने का हेतु तो एक ही होता है और वो है शक्ति पूजा या फिर असत्य पर सत्य की जीत।
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा इन सबसे काफ़ी लोकप्रिय और प्रख्यात – प्रसिद्ध है। कुल्लू में लोग रघुनाथ देवता की पूजा करते है और उत्सव और नाचते गाते उनकी शोभा यात्रा निकालते है। रघुनाथ देवता का जुलूस पुरे शहर में शान से और नाचते गाते निकलता है।
तो बंगाल, ओरिस्सा और असम में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। बंगाल में यह 5 दिनों तक जबकि ओरिस्सा और असम में 4 दिनों तक मनाया जाता है।
गुजरात में यह त्यौहार नवरात्रि के 9 दिन गरबा और रास खेलके मनाया जाता है और दसवे दिन रावण दहन का कार्यक्रम रखा जाता है तो महारास्ट्र में दसवे दिन सरस्वती देवी की उपासना की जाती है।
(सिद्धार्थ मिश्रा)
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