पटना: कहते हैं ना राजनीति में जिसने धैर्य दिखाया, उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है. सम्राट चौधरी इसके उदाहरण हैं. बीजेपी में आने से पहले उनकी राजनीति दरबारी रही थी.
कभी लालू तो कभी, नीतीश तो कभी मांझी के साथ. लेकिन बीजेपी के साथ आने के बाद उन्होंने धैर्य दिखाया. कभी खगड़िया से एक अदद लोकसभा टिकट का अपने लिए जुगाड़ नहीं कर पाने वाले सम्राट चौधरी अब बीजेपी के बिहार प्रमुख हैं. चर्चा है बीजेपी विधानसभा चुनाव में उन्हें अपना चेहरा बना सकती है.
बीजेपी ने अपने फायरब्रांड नेता सम्राट चौधरी को प्रदेश की कमान सौंप दी है. बीजेपी ने उन्हें सुशील मोदी, गिरिराज सिंह, राधा मोहन सिंह, नित्यानंद राय, रविशंकर प्रसाद जैसे पुराने और संगठन पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं पर तरजीह दी है.
गौर करने वाली बात यह है कि सम्राट चौधरी महज पांच साल पहले बीजेपी में शामिल हुए हैं. उनकी या उनके परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि बीजेपी या आरएसएस वाली नहीं रही है. इसके बाद भी वह बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं. अब चर्चा है कि सम्राट चौधरी बिहार में बीजेपी का सीएम फेस होंगे. बिहार की राजनीति में चर्चा है कि बीजेपी ने ना सिर्फ उन्हें अपना प्रदेश अध्यक्ष चुना है. बल्कि 2025 के लिए बतौर सीएम कैंडिडेट भी सलेक्ट किया है.
बीजेपी को थी चेहरे की तलाश
दरअसल 2005 से नीतीश की पिछल्लगू बन राजनीति कर रही बीजेपी को बिहार में एक चेहरे की जरूरत थी. नीतीश के साथ रहते बीजेपी से प्रदेश स्तर का कोई चेहरा नहीं उभर सका. विरोधी भी उनपर सीएम फेस को लेकर तंज करते रहे हैं. इसके बाद बीजेपी प्रदेश स्तर पर अपना चेहरा सामने लाने के लिए सर्चिंग मोड में थी.
सीमांचल में शाह ने दिए थे संकेत
सीमांचल दौरे पर आए अमित शाह ने किशनगंज में इसके संकेत देते हुए कहा था बिहार में बीजेपी अपनी पुरानी पंरपरा को तोड़ेगी. दरअसल बीजेपी की ज्यादातर राज्यों में यह नीति रही है कि वह चुनाव से पहले सीएम चेहरा घोषित नहीं करती है. लेकिन शाह के इस संकेत के बाद कहा जा रहा है कि बिहार में अगले विधानसभा चुनाव से पहले सीएम पद का चेहरा बीजेपी घोषित कर सकती है. बीजेपी की तलाश सम्राट चौधरी पर खत्म होती दिख रही है.
सम्राट चौधरी ही क्यों सीएम फेस?
इसके बाद सवाल उठता है कि बिहार में बीजेपी के बड़े-बड़े दिग्गजों के रहते सम्राट चौधरी को क्यों आगे करेगी? तो इसका तात्कालिक जवाब यह है कि बीजेपी ने उन्हें सभी चेहरों पर तरजीह देकर प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी. बात बीजेपी की एक रणनीति के साथ सम्राट चौधरी को सीएम फेस बनाने की करते हैं तो सबसे पहले अमित शाह के उस बयान पर गौर करना होगा जो उन्होंने सीमांचल दौरे के दौरान पूर्णिया में दिया था. तब अमित शाह ने कहा था बिहार में बीजेपी को मजबूत करने के लिए जरूरत पड़ी तो हर महीने वह बिहार आएंगे. तब अमित शाह ने यह भी कहा था कि वह 2025 तक बिहार में बीजेपी के कामकाज की खुद निगरानी करेंगे.
अमित शाह की पसंद सम्राट
इसके बाद यह स्पष्ट है कि बिहार जैसा बड़ा राज्य जहां लोकसभा के 40 सीट हैं वहां लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश की कमान सम्राट चौधरी को दी गई है तो वह अमित शाह के कहने पर ही दिया गया होगा.. लेकिन सम्राट चौधरी केवल शाह की पसंद की वजह से पहले प्रदेश अध्यक्ष और फिर सीएम फेस बना दिए जाएं यह कहना सही नहीं होगा, खासकर बीजेपी जैसी पार्टी के लिए जो वर्तमान समय में राजनीति सिर्फ चुनाव जीतने के लिए ही करती दिख रही है. बिहार की राजनीति को जानने समझने वालों का मानना है कि सम्राट को सीएम फेस कई वजहों से बनाया जा सकता है.
जातीय गणित में फिट हैं सम्राट
बिहार के लिए सटीक है. ‘जाति’ है कि जाती नहीं. मतलब बिहार की सोच चांद पर भले ही पहुंच गई हो. इंजीनियर फैक्ट्री और सिविल सर्विस में शानदार रिकॉर्ड बिहार के नाम हो लेकिन जाति की सोच यहां इतनी गहरी पैठ कर गई है कि आने वाले दिनों में इसके बिना कोई भी बात करना बेमानी है. खासकर राजनीति की. सम्राट चौधरी इस जातीय गणित के आंकड़े में फिट बैठते हैं.
बड़ी आबादी के बड़े नेता
बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष कुशवाहा जाति के हैं, उनकी आबादी बिहार में मुस्लिम और यादवों के बाद तीसरे स्थान पर है. नीतीश कुमार 2005 में लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) समीकरण के सहारे ही लालू यादव को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हुए थे. बिहार में लव-कुश के करीब 11 प्रतिशत वोटर हैं. जिसमें कुश यानि कुशवाहा के लगभग 9 प्रतिशत वोटर हैं. सम्राट चौधरी के मुकाबले बिहार में कुशवाहा जाति के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा ही हैं. लेकिन उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता नहीं के बराबर रही है. वह बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और बीजेपी के बिना सफल नहीं रहे हैं.
विरोध में उनके कद का कुशवाहा नेता नहीं
इसके विपरीत सम्राट चौधरी बीजेपी के साथ आने के बाद बड़े कुशवाहा नेता के तौर पर उभरे हैं. 2022 में सम्राट अशोक की जयंती पर पटना में उन्होंने अपना दम भी दिखाया था. इसके साथ ही पटना के पास मनेर में सम्राट अशोक की शिलालेख को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए उन्होंने आंदोलन किया और उसमें कामयाब हुए. उसके बाद उनकी छवि एक बड़े कुशवाहा नेता की बनी. वहीं उनके विरोध में खड़े जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा का अपना कोई जनाधार नहीं है. वह नीतीश के नाम की राजनीति कर रहे हैं. सम्राट चौधरी के पिता भी बड़े कुशवाहा नेता थे. शकुनी चौधरी तारापुर के सात बार विधायक और खगड़िया के सांसद रहे थे.
बीजेपी के तेवर की राजनीति करते हैं सम्राट
सम्राट चौधरी की आक्रामक छवि भी उन्हें सीएम फेस बनाने में मददगार साबित हो सकती है. बीजेपी बिहार में नेतृत्व के संकट से जूझ रही है. बीजेपी के पास गिरिराज सिंह जैसे बड़े नाम वाले नेता तो बहुत हैं लेकिन कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो जातीय समीकरण के साथ- साथ नीतीश लालू के खिलाफ आक्रामक राजनीति कर सके. सम्राट चौधरी में यह दोनों खूबी है. महागठबंधन सरकार बनने के बाद जिस तरह उन्होंने बिहार विधान परिषद और सदन के बाहर नीतीश तेजस्वी के खिलाफ मोर्चा खोला. उसके बाद वह अमित शाह की पहली पसंद बन गए हैं.
विवादों से दूर सब करते हैं पसंद
सम्राट चौधरी की एक खूबी यह भी है कि वह बीजेपी के साथ की राजनीति में विवादों से दूर रहे हैं. कुशवाहा जाति के बड़े नेता होने क बाद भी उनपर किसी जाति विशेष के नेता होने का चस्पा नहीं लगा है. वह सभी जाति के लोगों में पसंद किए जाते हैं. बीजेपी में किसी तरह की गुटबाजी से वह दूर हैं, वह सुशील मोदी को भी उतने ही पसंद हैं जितने नित्यानंद राय और गिरिराज सिंह और रविशंकर प्रसाद को.
प्रवीण बागी बोले
क्या सम्राट चौधरी बिहार में बीजेपी का सीएम फेस हो सकते हैं. इसपर बिहार की राजनीति को करीब से देखने- समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं- बीजेपी ने सम्राट चौधरी को प्रदेश की कमान देकर यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह सीएम फेस होंगे. कोई अप्रत्यासित परिस्थिति आ जाती है अलग बात है. उन्होंने कहा कि जिस तरह बिहार समेत पूरे देश में पिछड़ा और अतिपिछड़ा की राजनीति हो रही है इसमें वह फिट हैं. वर्तमान राजनीति में जो तेवर होना चाहिए वह तेवर भी उनके पास है
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