पटना, 22 अप्रैल : भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अरविन्द कुमार सिंह ने कहा है कि स्वतंत्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। गुलामी किसी को भी प्यारी नहीं होती। चाहे वह पिंजरे में बंद बाघ हो या बाड़े में बंद बकरी। सबसे कष्टदायक स्थिति तब होती है जब अपनी ही मातृभूमि पर गुलाम होकर रहना पड़ता है, जहाँ भावाभिव्यक्ति की भी स्वतंत्रता नहीं होती। अंग्रेजों के बर्बरतापूर्ण रवैये से त्रस्त भारतीय सिसकियाँ भर चुप हो जाते थे, क्योंकि खुलकर रोना भी गुनाह था। साजिश के तहत लेखनी कुंठित एवं तलवार की धार कुंद कर दी गई थी। केवल कर्तव्य का पाठ पढ़ाया जाता था।
अधिकार के पन्नों को पलटना भी दण्डनीय अपराध था। बर्दाश्त की भी सीमा होती है। अतिशयता के कारण असहज मन उठने प्रतिक्रिया की आँधी का परिणाम बड़ा भयावह होता है। जनमानस में संचित आक्रोश, बारूद की एक बड़ी ढेर का रूप धारण कर चुका था। आवश्यकता थी एक चिनगारी की, तभी हाथ में व्यवस्था परिवर्तन की मशाल लेकर एक बूढ़ा शेर जंगे – मैदान में आया। उम्र अस्सी की थी लेकिन जोश अट्ठारह के जवानों से भी अधिक – “ अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था, सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था। “
भोजपुर जनपद में आज भी बड़े गर्व से गाया जाता है – ‘ पाकल मोछिया पर आइल बा जवानी कुँवर के। ‘
1857 के वीर सेनानी बाबू कुँवर सिंह का जन्म बिहार में भोजपुर जनपद के जगदीशपुर के एक सम्मानित जमींदार परिवार में हुआ था। इनके बाबा का नाम उदवंत सिंह तथा पिता का नाम साहबजादा सिंह था जिनके ये ज्येष्ठ पुत्र थे बाबू वीर कुंवर सिंह। इनके छोटे भाई अमर सिंह इनकी दाहिनी बाँह थे। यह कहना अत्युक्ति नहीं होगी कि वें भी कुँवर सिंह से कम नहीं थे। इनके दूसरे भाई का नाम दयाल सिंह था वे भी उन्हीं की तरह बहुत बड़
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