जैसा होगा तुम्हारा व्यक्तित्व वैसा मेरी होगा चरित्र मै राधा होउगी तुम कृष्ण बन जाना.
तुम होना रिवाज़,मैं रस्म बन जाऊंगी अगर होगे आत्मा,तो मैं जिस्म बन जाऊगी
कलम स्याही से नहीं,भीतर के एहसास से करूंगी रचित जैसा होगा तुम्हारा व्यक्तित्व,वैसी होगी मेरी चरित्र..!!
अब मिल जाओ तुम मुझे,अब मैं थक चुकी हूँ खुद को संभालते-संभालते, अपना नाम, सम्मान, चरित्र को संभालते हुए। तुम मिलो मुझे मैं अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर तुम्हारे साये मे सुकून से सो जाना चाहती हूँ। मैं हर चिंता से मुक्त होकर कुछ पल सुकून से तुम्हारे साथ बस तुम्हारे लिए जीना चाहती हूँ, जहाँ हसना भी तुम्हारे लिए हो तो रोना भी तुम्हारे ही लिए हो अगर मैं सांसे भी लूँ तो बस यूँ समझो तुम्हारे लिए हो मैं बस इस तरह तुम्हारे साये मे रहना चाहती हूँ।
मुझे नहीं पता प्रेम क्या है मेरे लिए तुम्हारा हसना, मुस्कुराना तुम्हारा खुश रहना ही मेरे लिए प्रेम है।
मैं तुमसे प्रेम के बड़े-बड़े वादे नहीं कर सकती और न करूंगी,मैं तुम्हारे लिए उन वादों से ज्यादा निभाना चाहती हूँ। प्रेमी से किये गए वादे वाला प्रेम एक हद तक होता है इसलिए मैं वादे न करके तुमसे बेहद प्रेम करना चाहती हूँ, तुम्हारे साथ हर परिस्थिति मे बहुत दूर तक निभाना चाहती हूँ।
सुनो, अब तुम मुझे मेरे होकर मिलो मैं तुम्हें अब अपना सर्वस्व सौंपना चाहती हूँ
कनक लता चौधरी
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