शीर्षासन योग की विधि में व्यक्ति का सिर नीचे और पैर आसमान की ओर रहता है। इसे करने में व्यक्ति स्वतंत्र संतुलन अगर नहीं कायम कर पा रहा हो तो उसे किसी दीवार के साथ गठबंधन (समझौता) कर इस आसन को करना चाहिए। दिमाग के स्तर पर रक्त प्रवाह के साथ ही ऑक्सिजन प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए आदि ऋषी पतंजलि ने लोगों को शीर्षासन करने के सुझाव दिया है। मस्तिष्क के स्तर पर रक्त और ऑक्सिजन की कमी होने से व्यक्ति मानसिक संतुलन खो देता है।
ठीक इसी तर्ज पर बिहार की राजनीति में सूबे के मुखिया अपनी कुर्सी के संतुलन को बनाए रखने के लिए राजनीतिक शीर्षासन कर रहे हैं।आइए गौर करते हैं इनके राजनीतिक शीर्षासन के क्रम पर…
1) एनडीए के साथ 17 साल की जुगलबंदी के बाद साल 2013 में इन्होंने पहला राजनीतिक शीर्षासन किया। इस क्रम में सबसे पहले योग की भाषा में इन्होंने स्वयं को ढीला छोड़ बंधन मुक्त किया। पुन: 2015 आते आते जिस लालू यादव के खात्मे का संकल्प लेते हुए ये बिहार में एनडीए का हिस्सा बने थे। उन्हीं लालू यादव के साथ समझौत कर पहली बार राजनीतिक शीर्षासन का प्रदर्शन किया।
सार्वजनिक रूप से/ सदन के अंदर/ चौक चौराहे पर हर जगह कहा मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाएंगे।
लेकिन ये क्या? 2017 में ही देश को इन्होंने दूसरी बार शीर्षासन का प्रखर प्रदर्शन किया। इसबार लालू कुनबे को कोसते हुए नरेंद्र मोदी की स्तुती करने लगे। लोगों का मानना है कि स्वास्थ्य को सही रखने के लिए समझदार योग करते रहते हैं। बस यही काम कुर्सी कुमार भी कर रहे हैं।
शीर्षासन की लत लगी है…
बात 2016 की है। साहेब ने बिना फुलप्रूफ प्लान के पूरे प्रदेश में शराबबंदी लागू कर दी। एक ऐसी योजना जिसका विरोध पियक्कड़ भी नहीं कर सके। इसके साथ ही अवैध शराब का कारोबार फलने फूलने लगा। शराब की दुकानें बंद हो गई। साहेब आपनी योजना को सफल मान फूले न समा रहे थे। बीच बीच में जहरीली शराब पीने से गरीबी रेखा से भी नीचे जा चुकी जनता काल के गाल में समाती रही। साहब ने इसे कर्म का फल बताया। इनके लिए सहानुभूति और संवेदना नहीं थी। विपक्ष राजनीति करते हुए मृतकों को मुआवजा देने की मांग की। साहेब बोले यही लोग शराबियों के साथ हैं। मुआवजा नहीं इन्हें लानत दीजिए।
अचानक 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले साहेब को नीतिगत शीर्षासन का मन हुआ। नया फैसला लिया। ‘जबसे प्रदेश में शराबबंदी हुई है, तभी से प्रदेश में किसी की भी मृत्यु जहरीलि या अमृत सरीखी किसी भी प्रकार के शराब पीने से हुई हो, उसके परिजनों को मुख्यमंत्री राहत कोष से 04 लाख रूपये की सहायता राशि दी जाएगी’। विपक्ष खुश की हमने मृतक के परिजनों को राशि दिलवा कर स्थापित किया कि हुजूर की महत्वकांक्षी योजना फेल है। नीतिगत शीर्षासन कर हुजूर भी खुश कि गरीबों को मिलने वाला 04 लाख रूपया 2024 में ‘मत’ दान के रूप में वापस आएगा।
बात 2020 की है। सूबे में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। साहेब एनडीए के नेता थे। मुकाबला तेजस्वी यादव के नेतृत्व में कथित महागठबंधन से था। महागठबंधन ने ऐलान किया कि अगर मेरी सरकार बनी तो अपने पहले हस्ताक्षर से प्रदेश में 10 लाख सरकारी नौकरी जारी करेंगे। पहले शीर्षासन जी हंसे। बोले इतनी नौकरी के लिए बबुआ पैसा कहां से लाएंगे। फिर सहयोगियों ने इनके सामने गाना गाया ‘कसमें वादें प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या’ कुशाग्र बुद्धि के धनी साहब तुरंत समझ गये। ऐलान किया हम 20 लाख देंगे। फिर हंसे। मानो कह रहे हों कि जब कहना ही है तो पीछ काहे रहे।
2022 में एक बार फिर शीर्षासन करते हुए कुमार साहब लालू जी के साथ हो लिए। अब नौकरी कर रहे सेवकों को फिर से नौकरी करने का ज्वाइनिंग लेटर दे रहे हैं। 20 लाख नौकरी कोई मामुली बात थोड़े ही है।
2020 से लालू यादव अपनी पार्टी और परिवार के साथ जातीय जनगणना का राग अलाप रहे थे। सुशासन बाबू विरोध में थे। लेकिन जैसे ही 2022 में दोस्ती का शीर्षासन करते हुए लालू के लाल के साथ हुए। नीतिगत शीर्षासन भी किया। आज साहब बिना बजटीय प्रावधान के आकस्मिक निधि से 500 करोड़ रूपया जारी कर पता कर रहे हैं कि प्रदेश में किस जाति के कितने लोग हैं। कहते हैं जानकारी बढ़ानी चाहिए। लोग कहे कि इससे कलह होगा। पीछे से आवाज आई जानकारी बढ़ने पर विद्वता बढ़ेगी और विद्वान कलही होते ही हैं। इसमें कुछ नया नहीं है।
शीर्षासन का दौर जारी है..
एक समय था जब हाईकोर्ट की टिपण्णी के बाद हुजूर के साथ उनका पूरा राजनीतिक जमात प्रदेश में जंगलराज है कहा करते थे। लोगों से वोट मांगा कि हम जंगल राज खत्म कर सभ्य राज कायम करेंगे। आज शीर्षासन करते हुए साहेब फिर जंगली हो चले। मानो कह रहे हों कि जंगलराज का भी एक फाएदा है। पर्यावरण साफ रहता है। सेहत सही रहती है।
अपराधी के साथ और अपराध के खिलाफ साहेब सड़क पर 2005 के पहले खूब संघर्ष करते रहे। कहा मौका दो। अपराध और अपराधी दोनों बंद होगा। मौका मिला तो कुछ दिनों तक ऐसा किया भी। लेकिन कुर्सी तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन कम होने लगी। जेल मैनुयल में ही संशोधन कर दिया। अब हवा साफ है। आज नया दांव है। शीर्षासन करते रहो। दिमाग सही रहे ना रहे कु्र्सी सही रहेगी। नया नारा है ‘चलो जंगल की ओर’।
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