सच्चा प्यार वह होता है जो सभी हालातो में आप के साथ हो दुख में साथ दे आप का और आप की खुशियों को अपनी खुशियां माने कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है पर जिन्दगी बदलती है या नही, यह इंसान के उपर निर्भर करता है प्यार इंसान को जरूर बदल देता है प्यार का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम हमेशा उसके साथ रहे, .
प्यार या प्रेम एक एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है और इसमें अनेक भावनाओं व अलग अलग विचारो का समावेश होता है। प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। उदाहरण के लिए माता और पिता के प्रति, खुद के प्रति, या किसी जानवर के प्रति, या फिर किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहा जाता हैं। सच्चा प्यार वह होता है जो सभी हालातो में आप के साथ हो, यानी दुख में भी आप को और आप की खुशियों को अपनी खुशियां माने। कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है। पर जिन्दगी बदलती है या नही, यह इंसान के उपर निर्भर करता है। पर प्यार इंसान को जरूर बदल देता है। प्यार का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम हमेशा उसके साथ रहे, प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होना चाहिए। जिसमे दूर कितने भी हो, अहसास हमेशा पास का होना चाहिए। किसी से सच्चा प्यार करने वाले बहुत कम लोग हैं। लेकिन एक उदाहरण हैं लैला और मजनू का। इनके प्यार की कोई सीमा नहीं है। यह प्यार में कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे प्यार को लोग जनम जनमो तक याद रखेंगे।
“प्यार” शब्द ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर ही हमें अच्छा महसूस होने लगता है,प्यार शब्द में वो एहसास है जिसे हम कभी नहीं खोना चाहते।इस शब्द में ऐसी पॉजिटिव एनर्जी है जो हमें मानसिक और आंतरिक खुशी प्रदान करती है। कभी कभी कष्ट देय भी होती है
प्राचीन ग्रीकों ने चार तरह के प्यार को पहचाना है: रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। प्यार [1]को अक्सर वासना के साथ तुलना की जाती है और पारस्परिक संबध के तौर पर रोमानी अधिस्वर के साथ तोला जाता है, प्यार दोस्ती यानी पक्की दोस्ती से भी तोला जाता हैं। आम तौर पर प्यार एक एहसास है जो एक इन्सान दूसरे इन्सान के प्रति महसूस करता है।
प्रेम एक रसायन है क्योंकि यह यंत्र नहीं विलयन है,द्रष्टा और दृष्टि का। सौन्दर्य के दृश्य तभी द्रष्टा की दृष्टि में विलयित हो पाते हैं,और यही अवस्था प्रेम की अवस्था होती है। प्रेम और सौन्दर्य दोनो की उत्पत्ति और उद्दीपन की प्रक्रिया अन्तर से प्रारम्भ होती है। सौन्दर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, और प्रेम उस सौन्दर्य में समाया रहता है। प्रेम में आसक्ति होती है। यदि आसक्ति न हो तो प्रेम प्रेम न रहकर केवल भक्ति हो जाती है। प्रेम मोह और भक्ति के बीच की अवस्था है।
स्त्री व पुरुष के मध्य प्रेम होने के सात चरण होते है व प्रेम सामाप्त होने के सात चरण होते है । प्रेम होने के सात चरण पहला आकर्षण दूसरा ख्याल तीसरा मिलने की चाह चौथा साथ रहने की चाह पांचवा मिलने व बात करने के लिए कोशिश करना छठवां मिलकर इजहार करना सातवा साथ जीवन जीने के लिए प्रयत्न करना व अंत में जीवनसाथी बन जाना । प्रेम समाप्त होने के सात चरण पहला एक दूसरे के विचार व कार्यो को पसंद ना करना दूसरा झगड़े तीसरा नफ़रत करना चौथा एक दूसरे से दूरी बनना पंचवा संबंध खत्म करने के लिए विचार करना छठवां अलग होने के लिए प्रयत्न करना सातवाँ अलग हो जाना ।
प्रेमी व प्रेमिका या के प्रेम करने व अलग होने की मनोस्थित एक समान है ।
परन्तु कुछ विवाह जुड़े अलग नहीं हो सकते है क्योंकि उनकी आत्मा ही एक है जो भीतर से एक है वे बाहर से अलग हो ही नहीं सकते है ।
प्रेम अंतर्मन की एक भावना है। प्रेम एक अभिव्यक्ति है, जो एक जीवात्मा को दूसरे जीवात्मा से जोड़ती है। आसान शब्दों में कहें तो प्रेम ही वह धागा है जो इस संपूर्ण जगत को आपस में जोड़ कर रखता है।प्यार ईश्वर का एक वरदान है जो उन्होंने अपने पुत्र स्वरूप सभी जीवो को प्रेम स्वरूप भेंट किया है।
इसलिए आजकल हर जगह प्रेम की शिकायत सुनने को मिलती है। कुछ लोगों को तो प्रेम के नाम से ही नफरत है, क्योंकि प्रेम का सही अर्थ तो किसी ने समझा ही नहीं है। प्रेम का सही अर्थ है निस्वार्थ भाव से किसी के प्रति अपना सर्वस्य समर्पित कर देना। अपने प्रेमी के हित और खुशी के लिए अपनी खुशियों का खुशी-खुशी त्याग कर देना। प्रेम जीवन देता है जीवन लेता नहीं है। प्रेम तो परमात्मा के समतुल्य पवित्र और महान है परंतु मनुष्य ने इस पवित्र और महान प्रेम को उसके स्तर से गिरा कर कामना और वासना तक ही सीमित कर दिया है। इसलिए आज यह स्वार्थी प्रेम हत्या और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण बन गया है। जिस तरह इस स्वार्थी प्रेम का दुष्प्रभाव हमारे समाज में दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, वह निश्चित ही सृष्टि के विनाश का सूचक है। इसलिए अगर प्रेम करें तो निस्वार्थ प्रेम करें अन्यथा इस पवित्र प्रेम को दूषित ना करें।
कनक लता चौधरी
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