पटना, 24 दिसम्बर। ‘जन-आंदोलनों के मुद्दे और शराबबंदी’ विषय पर आज जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में जगजीवन राम स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ। इस आयोजन में सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बिहार जन-आंदोलनों की धरती रही है। देश भर के लोगों की अभिलाषा होती है कि बिहार जन-आंदोलनों का नेतृत्व करें। आजादी के अमृत वर्ष में अमृत पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन अमृत के नाम पर जहर फैलाया जा रहा है। लोगों की आजादी छीनी जा रही है। भय का माहौल बनाया जा रहा है। बिहार को बेहतर भारत के निर्माण में प्रेरक भूमिका निभानी होगी। गांधी के स्वदेशी नीति को बढ़ावा देकर ही स्व-रोजगार को बल मिलेगा।
यह दुःखद है कि भारत सरकार रोजगार के अवसर खत्म कर कॉरपोरेट को ताकतवर कर रही है। दो प्रतिशत अमीरों पर टैक्स लगाकर देश के संपत्तियों के बेचने के बजाय अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखना चाहिए। जल, जंगल, जमीन, प्राकृतिक संसाधन, किसानों की उपज, रोजगार, प्रकृति सम्मत विकास की बात जन-आंदोलन उठाते हैं। जयप्रकाश जी की संपूर्ण क्रांति एक प्रेरणा है, जिसका चित्र और चरित्र बिहार आकर ज्यादा स्पष्ट हो जाता है। आदिवासियों को वनग्राम से उजाड़कर किसानों को खेती परंपरा से अलग कर देश के सबसे बड़े उत्पादक वर्ग को कमजोर किया जा रहा है। किसानों, आदिवासियों और गांव की शक्ति को कमजोर कर चंद उद्योगपतियों को ताकतवर किया जा रहा है। पूरे भारत को एक बिजनेस पार्क में बदल दिया गया है। लॉकडाउन के नाम पर क्रैकडाउन लाया गया। विकास की किसी भी परियोजना में अगर उपजाऊ भूमिका नुकसान हुआ है, तो उसकी रक्षा पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अमेरिका ने बांधों के बिना विकास का निर्णय लिया है। अमेरिका ने एक हजार से ज्यादा बांध तोड़ दिये हैं। हम पश्चिम की नकल करते हुए आधुनिक होना चाह रहे हैं। पश्चिम से अच्छी चीजें भी सीखनी चाहिए। बागमती के लोग अगर बांध का विरोध कर रहे हैं तो मैं उनका समर्थन करती हूं। पूरे देश में जहां गरीबों की बस्तियां हैं, वहां बिल्डरशाही खड़ी हो जाती है। गरीबों की जिन्दगी उजड़ रही हो, तो यह किस तरह का अमृत वर्ष है। बाबा साहेब आंबेडकर, बाबू जगजीवन राम, कर्पूरी ठाकुर के बिहार में दलित, वंचितों, पिछड़े किसानों के हक को प्राथमिकता देनी होगी।
उन्होंने कहा कि शराबबंदी कानून का मैंने समर्थन किया था और अभी भी हर तरह की पूर्ण नशाबंदी के पक्ष में हूं। नशा मुक्त भारत का सपना गांधी, बाबा साहेब आंबडेकर, शिवाजी सहित कई महानायकों ने देखा था। किसी भी कानून का पूर्ण अमल नहीं होता है। मैं शराबबंदी के पक्ष में हूं लेकिन इसके कानून में सुधार की जरूरत है ताकि सख्ती से निर्दोष लोगों को तकलीफ न हो। शराब पीने से मृत्यु की स्थिति में उनके परिवार के साथ सरकार को खड़ा होने की जरूरत है।
व्याख्यान की शुरुआत बाबू जगजीवन राम की प्रतिमा पर मार्ल्यापण से हुआ। जयप्रकाश आंदोलन के प्रमुख सेनानी रमेज पंकज के असामयिक निधन पर दो मिनट का मौन रखा गया। सामाजिक कार्यकर्ता शाहिद कमाल ने रमेश पंकज के जीवन संघर्ष पर प्रकाश डाला। संस्थान के निदेशक नरेन्द्र पाठक ने संस्थान की ओर से मेधा पाटकर का अभिनंदन किया। उन्होंने बताया कि जब 1977 में मोरारजी देसाई ने संपूर्ण देश में शराबबंदी लागू किया था तब बिहार के मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर ने शराबबंदी का स्वागत किया था। बिहार में महिलाओं और गरीबों की बड़ी आबादी शराबबंदी के पक्ष में है। सरकार का काम जनता के हित में कानून बनाना है लेकिन कानून को लागू करना समाज की जिम्मेदारी है।
एनएपीएम के संयोजक मंडल के आशीष रंजन ने बिहार में गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, रोजगार गारंटी कानून के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बागमती आंदोलन के नेता उमेश राय ने वहां निर्मित होने वाले तटबंधों से होने वाली भारी विस्थापन और बाढ़ के खतरों से अवगत कराया।
किसान नेता उमेश कुमार ने बिहार में खाद के संकट एमएसपी पर नहीं हो रही खरीद व मंडी समिति को पुनः सक्रिय करने की मांगी की। छात्र नेता आकाश कश्यप ने प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पेपर लीक होने के मुद्दे को गंभीरता से उठाया।
एनएपीएम के संयोजक महेन्द्र यादव ने कोशी तटबंध के बीच के विस्थापितों, लापता प्राधिकार का मुद्दा उठाया। साथ ही अन्य रूपों में बड़ी नशाखोरी की बात की। मंच संचालन पुष्पराज ने किया। इस व्याख्यान में वरिष्ठ कवि श्रीराम तिवारी, किशोरी दास, डॉ. गोपाल कृष्ण, द्वारिका पासवान, रवीन्द्र राय, प्रमोद यादव, पत्रकार निवेदिता, पत्रकार अमनाथ झा, बक्सर किसान आंदोलन से अश्विनी कुमार चौबे, विद्याकर झा, अरविन्द श्रेयस्कर, संजीव, राकेश, उदयन चन्द्र राय सहित कई लोग उपस्थित थे।
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