महिलाओं स्वार्थी जब तक नही होगी लोग ऐसे ही शोषण करते रहेंगेअब महिलाओं को स्वार्थी बनना होगा,
महादेवी वर्मा ने आदिम युग से लेकर सभ्यता के विकास तक भारतीय समाज में स्त्री की दयनीय दशा का वर्णन किया है। उनकी दृष्टि में “भारतीय नारी का मुख्य दोष महादेवी जी ने यह बतलाया है कि उसमें व्यक्तित्व का अभाव है। उसे न अपने स्थान का ज्ञान है, न कर्त्तव्य का। जो लोग उसकी सहायता करना चाहते हैं, वह उन्हीं का विरोध करती है।
भारतीय नारी की क्षमता और किसी भी उन्नतशील देश की नारी से कम नहीं है। हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में बिल्कुल बताया गया है कि देवी शक्तियां वहीं पर निवास करती जहां नारी का सम्मान होता है। किसी भी राष्ट्र या समाज का विकास तभी हो सकता है, जब उस राष्ट्र में नारी और नर में कोई भेद न हो। किसे नहीं पता कि लिंगभेद का शिकार सबसे ज्यादा आज भी महिलाएं ही हैं। लड़कियों को इस दौर में भी पढ़ाई से दूर रखा जाता है। स्कूल भेजने की सोचना तो दूर की बात। वहीं जो महिलाएँ घर एवं परिवार के प्रोत्साहन और अपने संघर्ष से किसी कदर आगे तक निकल जाती हैं तो उनकी कभी पदोन्नति में बाधा तो कभी कार्य स्थल पर शोषण के इतने उदाहरण सुनने में मिलते हैं जिसकी गिनती करते-करते थक जाएँगे। इसके अलावा भारत में ही कुपोषण को लेकर महिलाओं का आंकड़ा न केवल डराता है बल्कि हैरान भी करता है।
एक नये समाज के निर्माण की सृजनात्मक पहल हमें करनीं ही होगी। अतीत की गलतियां से सीखते हुए और भविष्य की आशा से ऊर्जस्वित होते हुए सभ्य और मानवीय समाज बनाने के लिए रूढ़िवादी समाज से लड़ना जरूरी है। निष्क्रिय और भाग्यवादी हो जाने पर सबसे पहले हमारी सृजनशीलता की क्षति होती है। भाग्य के बजाय कर्म में आस्था रखते हुए आगे बढ़ कर वह सब करना होगा, जो एक अच्छा और गरिमामय मानवीय जीवन जीने के लिए जरूरी है।
भारतीय नारी की क्षमता और किसी भी उन्नतशील देश की नारी से कम नहीं है। हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में बिल्कुल बताया गया है कि देवी शक्तियां वहीं पर निवास करती जहां नारी का सम्मान होता है। किसी भी राष्ट्र या समाज का विकास तभी हो सकता है, जब उस राष्ट्र में नारी और नर में कोई भेद न हो।
आज की नारी और भी अधिक शोषित,पीडित है। बदला है तो बस शोषण करने का स्वरुप। आज नारी जिस स्थिति में है उसे उस स्थिति तक पहुँचाया किसने? मैने, आपने और इस समाज ने क्योंकि नारी को नारी हमने बनाया। अबला, निरीह हमने बनाया है। जब एक बच्चा जन्म लेता हैं तब उसे खुद पता नहीं होता कि वह क्या हैं। अबला नारी का रुप ले लेता है क्यों आखिर क्यों जबाब नही क्योंकि औरत को औरत बनाने वाली भी औरत ही होती है। आखिर क्यों शिकंजो से आजाद नही हो पा रही है। महिलाएं अगर नेतृत्व करने की भूमिका में हों तो जिम्मेदारी और बढ़ जाती हैं। तब संतुलन हासिल करने में , दूसरों के साथ खुद के प्रति ईमानदार होना भी जरूरी है।
एक नये समाज के निर्माण की सृजनात्मक पहल महिलाओं को ही करनीं ही होगी। अतीत की गलतियां से सीखते हुए और भविष्य की आशा से ऊर्जस्वित होते हुए सभ्य और मानवीय समाज बनाने के लिए रूढ़िवादी समाज से लड़ना जरूरी है।
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में महिलाओं की पहचान के मानक भी बदले हैं। ऐतिहासिक नजरिए के बिना औरत को समझना मुश्किल है। महिलाएं सिर्फ सामयिक ही नहीं है। वह सिर्फ अतीत भी नहीं है। उसे काल में बांधना सही नहीं होगा। उसकी पहचान को ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए।
महिलाओं की धारणा को लेकर साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों में पुरूष-संदर्भ अभी भी वर्चस्व बनाए हुए है। औरत अभी भी साहित्य में बेटी, बहन, बीबी, बहू, माँ, दादी, चाची, फूफी, मामी आदि रूपों में ही आ रही है। महिलाओं को हमारे साहित्यकार परिवार के रिश्ते के बिना देख नहीं पाते, पुरुष-संदर्भ के बिना देख नहीं पाते। #जावेद अख्तर ने बेहद महत्वपूर्ण बात कही है कि ” एक महिला का सम्मान इसलिए मत करो की वो माँ है या बेटी है या फिर आपकी पत्नी है, वो सबसे पहले एक स्त्री है, नारी है, महिला है।” अब महिलाओं को इस तरह के भारी-भरकम शब्दों का बोझ त्यागना ही पड़ेगा और आखिर क्यों उठाएँ ?
महिलायें कब तक त्याग की मूर्ति बनी रहे और क्यों ? महिलाओं को स्वार्थी बनना होगा, आप अपने आस-पास देखो हर कोई स्वार्थी है, जो स्वार्थी है वही खुश है और वह दूसरों को भी खुश रख पाता है।
सबसे पहले आप हमारी प्रकृति को ही देखो ये पेड़ अगर स्वार्थी ना हो तो ये हरा-भरा नहीं रह पाएगा। ये अपनी जड़ों को फैलाता ही रहता है और अधिक पानी इकठ्ठा करने के लिए। अगर ये ऐसा नहीं करेगा तो न तो ये किसी को छाया दे पाएगा और न ही किसी को फल। प्रकृति का नियम ही है स्वार्थी होना। हम दूसरों के लिए तभी कुछ कर पाएँगे जब हम अपने लिए कुछ करेंगे, अपने आपको खुश रखेंगे और अपने आपको खुश रखने के लिए हमें स्वार्थी बनना ही पडेगा। तो आप भी स्वार्थी बनिए और अपने लिए समय निकालिये, चौबीस घंटों में एकाध घंटा तो अपने आपको दीजिये। स्वार्थी बनकर खुश रहिये और दूसरों को भी खुश रखिये। #अपनी देखभाल करना #स्वार्थी होना नहीं है। यह एक आवश्यकता है। न केवल उनके लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए।
एंगेल्स ने ठीक कहा है कि मातृसत्ता से पितृसत्तात्मक समाज का अवतरण वास्तव में स्त्री जाति की सबसे बड़ी हार है। मानविकी विज्ञान शास्त्र के विचारक ‘#लेविस्त्रास’ ने आदिम समाज का अध्ययन करने के बाद कहा- ‘ सत्ता चाहे सार्वजनिक हो या सामाजिक, वह हमेशा पुरुष के हाथ में रही है। स्त्री हमेशा अलगाव में रही। उसे यदि पुरुष ने देवी का रूप दिया, तो उसे इतना ऊँचा उठा दिया, निरपेक्ष रूप से इतनी पूज्या बना दिया कि मानव जीवन उसे प्राप्त ही नहीं हो सका।‘
(कनक लता चौधरी)
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