होने दो घनघोर गर्जना, तूफानों को आने दो।
जन्म की नहीं कर्म की करो अर्चना, बाकी सब जाने दो।’’
‘‘जिस प्रकार विष पीकर अमृत की वाणी संत कवि रविदास ने कही वही काम बाबू जगजीवन राम ने आजीवन किया। रैदास ने एक ऐसे ‘बेगमपुरा’ की कल्पना की थी जहां कोई गेैर बराबरी, उंच-नीच न हो और जहां किसी की आत्मा पर चोट न पहंुचाई जाए। बाबूजी उसी शिवनारायणी परम्परा के रैदास भक्त थे। मुझे इस बात का फख्र कम है कि वे ऊंचे-ऊंचे पदो पर रहे बल्कि इस बात पर ज्यादा है कि मेरे पिता ने देश में आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी, उसमें लड़ने वालों के साथ रहे और आजादी के बाद भी समाज में गेैर बराबरी के खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहा। वे वैज्ञानिक बनना चाहते थे लेकिन भारत माता की आर्त पुकार थी कि वे आजादी की लड़ाई में कूद गये।’’
ये बातें लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार ने जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में जगजीवन बाबू की 116वीं जयंती समारोह में आयोजित व्याख्यामाला में कही। व्याख्यान का विषय था ‘‘बाबूजी की राजनीतिक विरासत और सामाजिक समरसता’’।
श्री मीरा कुमार ने कहा कि दूसरों की लड़ाई लड़ना आसान है लेकिन संकट जब अपने ही लोगों के बीच हो, समाज, जाति और कई तरह की हदबंदियों में बंटा हो तो उससे लड़ना बहुत मुश्किल है। अपने यहां जाति का संघर्ष, धर्म के नाम पर संघर्ष हो रहे हैं। इन सीमाओं में रहकर संघर्ष करना कठिन है। जगजीवन बाबू ने दोनों तरह के संघर्ष किये।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. अंशुल अभिजीत ने कहा कि आज जब बोलने, सोचने पर पाबंदी है जगजीवन बाबू की याद बेसाख्ता आती है। उन्होंने उनके लिए लड़ाई लड़ी जो समाज की सीमाओं से बाहर रहते है। वे उनके लिए लड़ाई लड़ते थे जो समाज का मैलापन सोख लेते हैं, जो जूता गांथते हैं। यही उनका सिद्धांत और जीवन का उसूल था और यही उनका उत्तरदान है कि हम उनके लिए लड़ते रहे जिनकी आवाज कमजोर है। उन्होंने कहा कि जगजीवन बाबू की विरासत और उत्तरदान किसी एक व्यक्ति या परिवार का नहीं, यह हम सबका है। यह विरासत आप सबकी है।
जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के निदेशक नरेन्द्र पाठक ने अपने विस्तृत वक्तव्य में जगजीवन बाबू के संघर्ष को प्रमुखता से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि वे उन नेताओं में थे जिनके पास देश निर्माण का व्यापक स्वप्न मौजूद था।
डॉ. रामवचन राय ने जगजीवन बाबू के जीवन और राजनीतिक सफर के बारे में विस्तार से अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि वे अपने राजनीतिक सूझ-बूझ में अपने समय के नेताओं से बहुत आगे थे। जब क्रिप्स मिशन ने अंतरिम मंत्रिमंडल की सूची बनाई थी तो उसने नेहरू से भी पहले जगजीवन बाबू का नाम रखा था लेकिन उन्होंने उससे अपनी असहमति जताई थी। अबुल कलाम आजाद के उस मंत्रिमंडल में शामिल होने का श्रेय भी जगजीवन बाबू को ही जाता है।
सभा की अध्यक्षता डॉ. मुंशी प्रसाद ने की एवं मंच संचालन अरुण नारायण ने की। समारोह में विजय कुमार सिंह, आशा देवी, मुकुंद सिंह, डॉ. मुंशी प्रसाद, सरोजा देवी, प्रदीप प्रियदर्शी ने भी संबोधित किया। इस मौके पर समाजशास्त्री डॉ. एम.एन. कर्ण की स्मृति में दो मिनट का मौन भी रखा गया।
सभा में महेन्द्र यादव, सर्वेन्दु कुमार वर्मा, नीरज कुमार, वीरेन्द्र यादव, बिनोद पाल, इरफान, मंजीत साहू, अनंत, अरविंद, डॉ. रेखा कुमारी सहित कई लोग उपस्थित थे।
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