हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता श्याम सुन्दर शरण ने प्रेस वार्ता करते हुए नीतीश और तेजस्वी पर हमला बोलते हुए कहा कि ये दोनों लोग पढ़ा-लिखा नौजवान उसमें भी खास करके दलित और अति पिछड़ा में पसंद नहीं करते । आज जो संतोष मांझी पर दबाव बनाकर के मंत्री पद से इस्तीफा देने को मजबूर करने का काम इनलोगों के द्वारा किया गया और महागठबंधन से बाहर किया गया उसका एकमात्र कारण है कि संतोष मांझी पढ़े-लिखे, सुसंस्कारित और सुविचारित नेता है… गरीब संपर्क की यात्रा पर जब वो निकले और उनसे जब लोग प्रभावित होने लगे,और एक हुजूम उमड़ा और लगा कि अब बिहार में एक नया नेतृत्व पैदा हो जाएगा दलित वर्ग से तो उनके पेट में दर्द हो गया । दरअसल तभी से इन लोगों ने साजिश के तहत संतोष मांझी का नेतृत्व पनप ना सके इसके लिए हम पार्टी को खत्म करने का प्लान बना लिया। वह तो समय रहते हमारे नेता समझ गए और किसी भी कीमत पर पार्टी के अस्तित्व और दलितों के स्वाभिमान से समझौता नहीं करने का निर्णय लिया और बगैर किसी झंझट के मंत्री पद का त्याग कर दिया।
उसके बाद भी जब इनलोगों का मन नहीं भरा तो अब साजिश के तहत चाटुकारिता करने वाले अपने पार्टी के कुछ लैंडलेस नेताओं के द्वारा गाली दिलवाने का काम करवा रहे हैं। लेकिन वह नहीं जानते कि वह जितना इस तरह का हमला करेंगे डॉक्टर संतोष मांझी का नेतृत्व उतना ही और प्रबल होगा। जिस अशोक चौधरी से यह हमला बोलवा रहे हैं उनको जरा पूछना चाहिए कि बिहार में कहीं उनकी जगह क्यों नहीं बन पा रही चुनाव लड़ने की। कब से चुनाव नहीं लड़े हैं अशोक चौधरी यह लोगों को बताएँ। जीतन राम मांझी की हैसियत नाप रहे हैं उनको पता होना चाहिए कि जब उनके नेता नीतीश कुमार जी विधायक बनने को बेचैन थे तब जीतन राम मांझी जी बिहार सरकार के मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे थे । अशोक चौधरी में हिम्मत है तो सीट चुने बिहार से कहीं भी, हमारी पार्टी का एक साधारण कार्यकर्ता भी अगर उनको चुनाव में पटक न दे तो हम उनकी बात स्वीकार कर लेंगे..। एक भी दलित उनको अपना नेता नहीं मानता है। और इसलिए नहीं मानता है कि उन्होंने कब का दलितों का त्याग कर दिया। शादी ब्याह तो उन्होंने कब से ही दलित वर्ग में करना बंद कर दिया था सत्य है कि उन्होंने अपने पैतृक गांव में जिस दलित बस्ती में उन्होंने जन्म लिया था उस जमीन और मकान को भी बेच दिया, जो यह दर्शाने को काफी है कि उनको दलितों से कितनी नफरत है । उनको दलितों के बीच में जाकर यह बताना चाहिए कि आखिर उनको दलितों से इतनी दूरी क्यों है ।
आज का सच यही है कि बिहार में सबसे अनुभवी और सबसे पुराने नेता है मांझी साहब। यह सच है कि इन लोगों को पैर पूजने वाला दलित नेतृत्व चाहिए। कैसे तेजस्वी यादव अपने दुगने से भी ज्यादा उम्र के माननीय मंत्री रत्नेश सदा जी से पैर छूकर प्रणाम करवा रहे हैं यह पूरा बिहार देख रहा है । तेजस्वी प्रसाद यादव जी को हर उस नौजवान से दिक्कत है जो जनता के बीच में अपनी एक महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराता है। चाहे वह चिराग हों, चाहे कन्हैया हों, चाहे मुकेश सहनी हों, चाहे संतोष मांझी हों या कोई और हो। आने वाले समय में इसका करारा जवाब दिया जाएगा। और यह कोई और नहीं बिहार की जनता अपनी ताकत का एहसास कराएगी और बताएगी कि एक दलित के अपमान का क्या मजा होता है ।साथियों दूसरी तरफ हम एक और बात आपसे आज कहना चाहते हैं कि आपको महागठबंधन के नेताओं से जाकर पूछना चाहिए कि वह कहते हैं कि मांझी की कोई औकात नहीं तो बताएं कि आखिर वह इतना क्यों डर गए कि पिछले अगस्त और सितंबर में दो मंत्रियों का इस्तीफा लेने के बाद आज तक उन्होंने उनकी जगह क्यों नहीं भरी। और दूसरी तरफ जैसे ही हमारे नेता ने संतोष मांझी जी ने इस्तीफा दिया कि 2 घंटे के अंदर उनको उनका विकल्प चुनना पड़ा और समाज में संदेश देना पड़ा। हमको इसके एक और कारण नजर आते हैं महागठबंधन के लोग सवर्णों को भी मंत्रिमंडल में रखना ही नहीं चाहते हैं। भूमिहार और राजपूत कोटे से आने वाले उन दोनों मंत्रियों के विकल्प के तौर पर आखिर क्यों नहीं राजद ने किसी भी व्यक्ति को मंत्री पद देने का काम कर रही है । महागठबंधन का चेहरा बिल्कुल उजागर हो चुका है और ए टू जेड की बात करने वाले तेजस्वी यादव की तो कलई ही खुल चुकी है। सवर्ण, अति पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक विरोधी हैं महागठबंधन के नेता। खासकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव । आने वाले समय में पूरा बिहार इनको इसका जवाब देगा।
पार्टी के राष्ट्रीय संगठन सह बिहार प्रभारी राजन सिद्दीकी, किसान प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजीत कुमार चंद्रवंशी, राष्ट्रीय प्रवक्ता पूजा सिंह, प्रदेश महासचिव रामविलास रजक, प्रदेश महासचिव आकाश कुमार, पटना महानगर अध्यक्ष,अनिल रजक, प्रदेश मिडिया प्रभारी श्रवण कुमार गिरिधारी सिंह आदि हम पार्टी नेता प्रेस वार्ता में मौजूद थे ।
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