पटना, 12 अगस्त। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बुधवार को यहां बताया कि राज्य में नवजात शिशुओं के लिए चलाये जा रहे ‘कमजोर नवजात शिशु देखभाल’ कार्यक्रम से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास हो रहा है और राज्य में कमजोर नवजात शिशुओं की पहचान भी आसानी से हो रही है। इससे न सिर्फ बच्चे कुपोषण से बच परिपक्व भी हो रहे हैं, बल्कि शिशु मृत्यु दर में काफी गिरावट आयी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्वभर में प्रति वर्ष 1.5 करोड़ बच्चों का जन्म 37 सप्ताह से पूर्व हो जाता है। इसके कारण वे अपरिपक्व होते हैं। जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं में से 5 फीसदी जन्म से अपरिपक्व होते हैं।
श्री पांडेय ने बताया कि कमजोर नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम्र के तहत स्वास्थ्य केन्द्रों, घर एवं निजी अस्पतालों में जन्म लिए कमजोर शिशुओं की पहचान कर उन्हें बेहतर देखभाल प्रदान करने का प्रावधान बनाया गया है। इसके लिए चिन्हित हुए बच्चों के अभिभावक को एक पासपोर्ट प्रदान किया जाता है। इसकी सहायता से बच्चों में होने वाली सुधार की निगरानी की जाती है। स्वास्थ्य इकाई से डिस्चार्ज के पहले, तीसरे, सातवें, चौदहवें एवं अट्ठाइसवें दिन आशा कार्यकर्ता चिह्नित बच्चों के घर का दौरा करती हैं। संबंधित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा प्रभारी की निगरानी में आशा कार्यकर्ता को पहले, तीसरे, पांचवें एवं सातवें दिन फोन किया जाता है एवं उनसे दौरे का विवरण लिया जाता है। साथ ही दूसरे, चौथे, छठे ,चौदहवें एवं तीसवें दिन बच्चे की माता या पिता को फोन कर आशा द्वारा किए गए दौरे की पुष्टि की जाती है। ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस पर एएनएम चिह्नित कमजोर बच्चे की लिस्ट तैयार करती हैं। साथ ही वह बेहतर प्रबंधन सुनश्चित कराने का प्रयास करती हैं। आशा गृह भ्रमण के दौरान तय मानकों का अनुसरण करते हुए चिन्हित कमजोर नवजात शिशुओं को उचित सलाह देती हैं। साथ ही खतरे की आशंका होने पर संबंधित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क साध कर बच्चे के लिए रेफरल सुविधा उपलब्ध कराती हैं।
श्री पांडेय ने बताया कि राज्य के सभी प्रखंडों में कमजोर शिशु देखभाल कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसमें अपरिपक्व जन्म (गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूर्व होने वाले जन्म), जन्म के समय नवजात शिशु का वजन 2 किलोग्राम या उससे कम एवं जन्म के दिन से ही स्तनपान नहीं करने वाले शिशुओं को शामिल किया गया है। साथ ही स्वास्थ्य इकाई एवं सामुदायिक स्तर पर पहचान कर उन्हें उचित देखभाल प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। ‘कमजोर नवजात शिशु देखभाल’ के बेहतर कार्यान्वयन के कारण सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिले हैं। पूर्व में 2.5 किलोग्राम से कम वजन के बच्चों की रिपोर्टिंग बहुत कम थी, जिसमें अब निरंतर बढ़ोतरी दर्ज हो रही है।
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