बिहार के इस जिले में हैं विश्व की पहली मानव निर्मित गुफा, जानें रहस्यों में लिपटी इस विरासत की सच्चाई

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जहानाबाद: बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत काफी समृद्ध रही हैं। अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण बिहार की पहचान पूरे विश्व में है। राज्य में कई ऐतिहासिक विरासत हैं। उन्हीं विरासतों में एक है बराबर की गुफाएं। बराबर की गुफाएं बिहार के जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड स्थित बराबर की पहाड़ियों पर स्थित है।

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ये गुफा विश्व की पहली मानव निर्मित गुफा
यह प्राचीन गुफ़ा हमें सीधे मौर्य वंश के काल में ले जाती है। कहा जाता है कि ये गुफा विश्व की पहली मानव निर्मित गुफा है। जिसे मेडिटेशन के लिए बनाया गया था। बराबर पहाड़ी पर मुख्यतः 4 गुफ़ाएं हैं, लोमस ऋषि गुफ़ा, सुदामा गुफ़ा, करण चौपर और विश्व जोपरी। यहां बनी सारी गुफ़ाओं को विशाल ग्रेनाइट चट्टानों को काटकर बनाया गया हैं। इन गुफाओं का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा 322-185 ईसा पूर्व करवाया गया था। सुदामा गुफा की एंट्रेंस वॉल और दरवाजों पर कई शिलालेख हैं, जो बताते हैं कि यहां कभी बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। ये गुफाएं मगरमच्छ के समान नज़र आने वाली चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। इसे देखकर आपके लिए यह मानना कि, ये गुफाएं 2400 साल पुरानी हैं, थोड़ा मुश्किल सा हो जाता है। गुफा के अंदर दीवाल की सतह अभी भी इतनी चिकनी है कि दीवाल पर प्रतिबिंब दिखाई देता है।

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पत्थर पर किया गया नक्काशी काम लकड़ी की कारीगरी से प्रेरित
वहीं, लोमांस गुफा एकमात्र ऐसी गुफा है, जिसके प्रवेश द्वार पर उत्कीर्णन का काम देखा जा सकता है। इसके द्वार पर वास्तुकला के कुछ अलंकृत विवरण हैं, जो बाद में चट्टानों से खुदी गई गुफाओं के लिए चलन बन गया। इस प्रवेश द्वार पर बने मेहराब पर जाली का काम किया गया है तो निचले अर्धवृत्त पर बारीकी से उत्कीर्णित हाथियों की पंक्ति है, जो स्तूपों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। पत्थर पर किया गया यह नक्काशी काम लकड़ी की कारीगरी से प्रेरित है। पत्थर की कारीगरी से पहले लकड़ी की कारीगरी ही चित्रकला का प्रसिद्ध माध्यम थी। जब इन गुफाओं का निर्माण हो रहा था तब पत्थर की कारीगरी चित्रकला की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने के मार्ग पर अपने कदम बढ़ा रही थी।

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शिलालेख के अंत में बना हुआ उल्टा स्वास्तिक
करण चौपर गुफा की बात करें तो करण चौपर गुफा में बहुत पुराने 245 ई.पू के शिलालेख मौजूद है। इसमें अशोक के 19वें वर्ष के शासनकाल का शिलालेख मौजूद है। शिलालेख के अंत में उल्टा स्वास्तिक बना हुआ है। इससे पता चलता है कि ये बौद्ध भिक्षु के लिए बनाई गई थी। गुप्त वंश के एक शिलालेख के अनुसार इसे दरिद्र कंतारा यानी भिखारियों की गुफा कहा गया है। बता दें कि बराबर गुफ़ा के पास एक और अन्य गुफ़ा भी स्थित है नागार्जुनी गुफ़ा, जो बराबर गुफ़ा से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों ही गुफाएं एक ही समय की हैं, इसलिए इन्हें एक साथ सतघर के रूप में जाना जाता है। बिहार में कई ऐसी दुर्लभ ऐतिहासिक विरासत मौजूद है, जिन्हें संरक्षित और पर्यटन के तौर पर और विकसित करने की ज़रूरत है।

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