चरित्रहीन

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-अनामिका सिंह अविरल

कहानी के पात्र_ लाखन, सीता,मोहन,अजय, तीन छोटे बच्चे, सोनू,मोनू,अंजली।

आज भी कोई ख़ास बात नहीं थीं आम दिनों की ही तरह सीता ने अपनी चाय की दुकान खोली, पूजा अर्चना करने से पहले ही दुकान पर भीड़ जमा हो गई, जो कि रोज़ की बात  हैं, सीता अपने काम में तल्लीनता के साथ जुट गई, क्योंकि यही उसकी आजीवका का एक मात्र साधन था।

सीता की दुकान पर अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक भीड़ हुआ करतीं हैं, उसकी वजह ये है कि इस दुकान पर एक महिला प्रेम और श्रद्धा के साथ सभी ग्रहको को चाय परोसती थीं, मगर कुछ लोग उसकी दुकान पर केवल चाय पीने नहीं आते थे, चाय के साथ साथ वो सीता के सौंदर्य से अपनी आत्मा को तृप्त करने भी आते थे। इनमें से कई एक तो वेवजह की हमदर्दी जताने से भी बाज नहीं आते थे, पर ये सब सहन करना सीता की मजबूरी थी, लोग ऐसी मजबूरी का फ़ायदा उठाना बहुत अच्छे से जानते हैं ।

कभी कभी तो ये सब जब हद से ज्यादा हो जाता तो मजबूरन उसको रोकने के लिए सीता को शक्त होना पड़ता, हद तो तब हो जाती थी जब लोगों की निग़ाह सीता के साथ साथ उसकी बड़ी होती बेटी पर भी चली जाती, जिसे सहन कर पाना सीता के लिए असम्भव हो जाता।

सीता की झिड़क से आहत हुए लोग सीता को उल्टा सीधा बोलते हुए निकल जाते, उसको हासिल न कर पाने की कुंठा के कारण “वो चरित्रहीन है” कहते, तरह तरह की बाते बनाते।

सीता ये सब चुपचाप सहती, दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं था उसके पास।

अभी सीता की दुकान जम भी नहीं पाई थीं कि मोहन आ गया, मोहन सीता के दूर का रिश्तेदार था, और उसने हमेशा सीता की हर तरह से मदद की थीं, पर आज वो सीता से अंतिम बार मिलने आया था।

उसने सीता से दुकान बंद करके बात करने के लिए कहा, कुछ ज्यादा बात नहीं करनी थी उसे।

सीता ने दुकान पर भीड़ ज्यादा होने की बात कह कर, मोहन से वहीं बात करने को कहा, वैसे मोहन और सीता के बारे में सभी लोग जानते थे, दबी जुबान से लोग उन दोनों के रिश्ते को लेकर बाते किया करते, हालाकि मोहन दिल का बहुत अच्छा था और उसने सीता का उस समय साथ दिया था जब वो अकेली तन्हा तीन छोटे बच्चों को लेकर अत्यंत कठिन जीवन जीने को विवश थी।

सीता ने मोहन की तरफ़ चाय का प्याला बढ़ाते हुए अपनी बात कहने के लिए कहा।

मोहन की स्थिति देखकर ऐसा लग रहा था कि वो जो कुछ भी कहने वाला है वो सीता के ऊपर वज्रपात का काम करेगा ऐसा सोचकर वो बोलने से कतरा रहा था। लेकिन बात तो मोहन को करनी ही थी, झुकी हुई गर्दन और आंखो में नमी लिए मोहन ने कहना शुरू किया।

सीता मेरी कुछ दिनों में शादी होने वाली है, परिवार के दबाव के चलते मुझे शादी करने के लिए विवश होना पड़ा। हो सकता है ये हमारी अंतिम मुलाक़ात हो, इससे आगे मै इस रिश्ते को नहीं निभा सकता।

मोहन का कहा हुआ एक एक शब्द, सीता के लिए असहनीय था, लेकीन सीता जानती थी कि सच्चाई भी यही है, दूसरो के पंख से दूर तक उड़ान नहीं भरी जा सकती।

मोहन आख़िरी बार बच्चो से भी मिलना चाहता था, मोहन की आवाज़ सुनकर तीनों बच्चे मोहन चाचा कहते हुए गले से लिपट जाते हैं, मोहन बच्चो को जी भर कर प्यार करता है। लाखन के न रहने पर मोहन ने ही बच्चो को पिता का प्यार दुलार दिया था।

मोहन के जाते ही सीता अपने दुख को भूलकर अपनी दुकान के कामों में व्यस्त हो जाती है।

आज शाम कब हो गई उसे पता ही नहीं चला, अंदर से अंजली आवाज़ सुनकर सीता की तन्मयता टूटी।

मां खाना बन गया है, आज आपके पसंद का ही खाना बना है, दुकान बंद करो हम सब साथ खाएंगे।

अंजली की बात सुनकर सीता दुकान बंद कर देती है, और अपने बच्चो के साथ बैठकर भोजन करती है।

भोजन करने के बाद सीता अपने बच्चो के साथ सोने जाती हैं, पर नींद तो उसकी आंखो से ओझल हो चुकी है।

मोहन के साथ बिताया हुआ वक्त अब उसको कांटो की तरह चुभ रहा है।

कई सवाल उसको घेरे थे, क्या सचमुच मोहन अब कभी नहीं आयेगा, आज वो फ़िर से खुद को अकेला महसूस कर रही थी, सोचते सोचते वो अतीत की यादों में खो जाती है।

अभी कल ही की तो बात है जब सीता लाखन की पत्नी बनकर, लाखन के घर आई थी। सब कितने खुश थे जो भी देखता सीता को देखता रह जाता।

सीता की सुंदरता और सौम्यता ने लाखन के साथ साथ पास पड़ोस के लोगों का भी मन जीत लिया।

जल्द ही सीता तीन ख़ूबसूरत बच्चों की मां बन गई।

लाखन बहुत मेहनती ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति था, कठिन परिश्रम से कमा कर अपने परिवार को हर ख़ुशी देने का प्रयास करता।

पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था, एक दिन काम से लौटते वक्त सर्प दंश के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

सीता पर ग़म का पहाड़ टूट पड़ा, इतनी कम उम्र में विधाता ने भारी विपदा डाली थी, तीन छोटे बच्चों की परवरिश करना बहुत बड़ी बात थी, ऐसे में सभी ने उससे किनारा कर लिया, बस एक मोहन ही था जिसे सीता के परिवार से हमदर्दी थी।

शेष कल….…..

अनामिका सिंह अविरल

(लेखिका)

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