देह व्यापार, छेड़छाड़, हाउस वाइफ, प्रॉस्टीट्यूट… जैसे शब्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक; अदालतों में अब इन्हें क्या कहा जाएगा? जानें

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छेड़छाड़, वेश्या, हाउस वाइफ, देह व्यापार जैसे कई शब्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। ये शब्द अदालती कार्यवाही के दौरान कानूनी शब्दावली से बाहर हो जाएंगे

छेड़छाड़, वेश्या, हाउस वाइफ, देह व्यापार जैसे कई शब्दों पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रोक लगा दी है। ये शब्द अदालती कार्यवाही के दौरान कानूनी शब्दावली से बाहर हो जाएंगे। इन शब्दों की बजाय कौन से शब्द इस्तेमाल होंगे, इसके लिए एक पूरी पुस्तिका जारी की गई है। आज सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पुस्तिका का विमोचन किया। उन्होंने कहा- “यह न्यायाधीशों और कानूनी समुदाय को कानूनी चर्चा में महिलाओं के बारे में रूढ़िवादी सोच को पहचानने, समझने और बदलने में सहायता करने के लिए है।

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सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए प्रयोग होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए हैंडबुक लॉन्च की है। इसमें 43 रूढ़िवादी शब्दों और करीब इतने ही असम्मानजनक वाक्यांश और पूर्वाग्रह वाले वाक्यों का इस्तेमाल ना करने के बारे में निर्देश दिया गया है। साथ ही उन शब्दों की जगह वैकल्पिक शब्दों और भाषा का सुझाव दिया है। यह हैंडबुक देशभर के जजों और कानून से जुड़े लोगों को समझाने और महिलाओं के प्रति गलत शब्दों के इस्तेमाल से बचने की सलाह देती है।

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इस हैंडबुक को कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है। इस समिति में रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन और जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झूमा सेन भी शामिल हैं। प्रोफेसर सेन फिलहाल कोलकाता में वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज में फैकल्टी मेम्बर हैं।

किन शब्दों का इस्तेमाल करने पर मनाही?
हुकर, प्रॉस्टीट्यूट, मिस्ट्रेस, ईव टीजिंग, हाउस वाइफ, कर्तव्यपरायण पत्नी, ड्यूटीफुल वाइफ, फेथफुल वाइफ, गुड वाइफ, ओबीडिएंट वाइफ जैसे अन्य शब्द।

अब किन शब्दों का इस्तेमाल होगा
स्ट्रीट, सेक्चुअल हैरेसमेंट, होममेकर, वाइफ, वूमन, बेरोजगार, ट्रांसजेंडर जैसे वैकल्पिक शब्द दिए गए हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस हैंडबुक को जारी करने का मकसद रूढ़िवादी सोच से बचने में मदद करना है। इस हैंडबुक में वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल के लिए सुझाव दिए गए हैं। इसके साथ ही शब्दावली है। इस कदम का मकसद अदालत में सुनवाई के दौरान ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाना है, जो सालों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं और ये स्टीरियोटाइप्ड कहलाते हैं। स्टीरियोटाइप्ड का मतलब उस चलन से है, जिसमें तार्किकता और संवेदनशीलता समय सापेक्ष नहीं होती हैं। अदालतों की बहसों में इस्तेमाल होने वाले टर्म को बदलने का मक़सद लैंगिक संवेदनशीलता को सुनिश्चित करना है। कहा जाता है कि इन टर्मों के इस्तेमाल से भेदभाव वाले व्यवहार को वैधता मिलती है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘इस गाइडबुक का मक़सद क़ानून की भाषा और कोर्ट की सुनवाई के दौरान जो लैंगिक भेदभाव वाले शब्द इस्तेमाल होते रहे हैं, उनकी पहचान करना और उनके इस्तेमाल पर रोक लगाना है। चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक के आने से जेंडर स्टोरियोटाइपिंग पर रोक लगाने में जजों को मदद मिलेगी। साथ ही नए वैकल्पिक शब्दों को भी मुहैया कराया गया है।

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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लीगल कम्युनिटी और जजों के सहयोग के लिए इसे बनाया गया है ताकि कानून के विषयों में महिलाओं को लेकर स्टीरियोटाइप को खत्म किया जा सके। ये हैंडबुक जजों और वकीलों के लिए है। इस हैंडबुक की प्रस्तावना में डीवाई चंद्रचूड़ ने लिखा है, ”शब्द वो जरिया हैं, जिसके सहारे कानून के मूल्यों का संचार किया जाता है। ये शब्द ही होते हैं जो कानून निर्माता या जजों के इरादे देश तक पहुँचाते हैं। एक जज जिस भाषा का इस्तेमाल करता है वो न सिर्फ कानून की व्याख्या को दिखाता है बल्कि समाज को लेकर उनकी धारणा को भी बयां करता है।

इसी साल मार्च में महिला दिवस के मौक़े पर चंद्रचूड़ ने कहा था कि लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देने वाले शब्दों को हटाने पर काम चल रहा है, जल्द एक गाइडलाइन जारी की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने अब बताया है कि इस हैंडबुक पर काम कोविड के दौरान शुरू हुआ था। हैंडबुक के लॉन्च के वक़्त चंद्रचूड़ बोले, “इसका मक़सद किसी फैसले पर संदेह करना या आलोचना करना नहीं है बल्कि स्टीरियोटाइपिंग, ख़ासकर औरतों को लेकर इस्तेमाल होने वाले शब्दों को लेकर जागरूकता फैलाना है। हैंडबुक इस बात पर गौर करेगी कि स्टीरियोटाइप क्या है।”

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