बिहार में इतना कुछ है कि अगर सही ढंग से इसका इतिहास टटोला जाए तो अपनी सांस्कृतिक विरासत पर हमे गर्व हो।
अब उलार्क (जिसे ग्रामीण भाषा में उलार कहा जाता है) के सूर्य मंदिर को ही लीजिए। पटना जिले के दुल्हिनबजार के समीप स्थित इस सूर्य मंदिर की कड़ी, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। कहते हैं, जब भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ऋषि-मुनियों के श्राप के कारण कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे तो देव ऋषि नारद ने इस श्राप से मुक्ति के लिए उन्हें 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना कर सूर्य की उपासना करने को कहा। शाम्ब ने उसके बाद उलार्क, लोलार्क, औंगार्क, देवार्क, कोर्णाक समेत 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर बनवाए।
कहते हैं उन्होंने #उलार्क के तालाब में स्नान कर सवा महीने तक सूर्य की उपासना की थी। तब जाकर वे श्राप मुक्त हुए और उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से जो भी सूर्य की उपासना करता है, उनकी मनोकामना भगवान भास्कर की कृपा से पूरी होती है।
आज उन्ही सूर्य मंदिरों में से एक उड़ीसा राज्य का #कोणार्क सूर्य मंदिर देश विदेश के पर्यटकों में बहुत चर्चित है और वहीं हमारे क्षेत्र में स्थित “उलार्क सूर्य मंदिर” के बारे में देश विदेश की तो बात छोड़ दीजिए, अपने बिहार में भी बहुत लोगों को पता नहीं है।
दोस्तों, मुझे लगता है कि हमारी पीढ़ी को पूर्वजों से जो उत्कृष्ट और अमूल्य #पौराणिक तथा #सांस्कृतिक विरासत हमें मिले हैं, उन्हे संजोने का भरपूर प्रयास करना चाहिए और हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हमारे माननीय पूर्वजों द्वारा हमें सौंपे गए ऐसे दुर्लभ और प्राचीन उपहार को हम थाती के रूप में अपनी नई पीढ़ी को सौंपे न कि एक भग्नावेश के रूप में। इससे हमारी आने वाली पीढ़ी का सांस्कृतिक संवर्धन तो होगा ही और साथ में हमारा क्षेत्र पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बनेगा जिससे क्षेत्र के लोगों की आर्थिक उन्नति भी होगी। आइए साथ मिलकर प्रयास करें।
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