29 सितंबर को है जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें पूजा की सही तिथि.

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जीवित पुत्रिका व्रत हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रत में से एक है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत शुरू होता है। तीन दिन तक चलने वाला यह व्रत महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है। यह व्रत सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक चलता है। इस व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास रहकर संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं। देश के अलग- अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत नाम से जाना जाता है। इस साल यह व्रत 28 सितंबर को शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत के एक दिन पहले दिन नहाए खान होता है। इसके बाद दूसरे दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं सेंघा नमक और बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्ध तरीके से बना कर खाती हैं।

पुत्र के दीर्घायु, सुखी और निरोगी जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत रखा जाता है। जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें जल, फल या अन्न आदि ग्रहण नहीं किया जाता है। यह कठिन व्रतों में से एक है। इस​ दिन पूजा के समय गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से जुड़ी पौराणिक कथा सुना जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत कथा या जितिया व्रत कथा भी कहते हैं।

कैसे शुरु हुआ जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत

गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गरुड़ का भोजन बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे। उन्होंने अपने साहस और परोपकार से शंखचूड़ नामक नाग की जीवन बचाया था। उनके इस कार्य से पक्षीराज गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए थे और नागों को अपना भोजन न बनाने का वचन दिया था।

पक्षीराज गरुड़ ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था। इस तरह से जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा की थी। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा। इस दिन गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं ​के अनुसार, यह व्रत करने से पुत्र दीर्घायु, सुखी और निरोग रहते हैं।

कठिन व्रत है जीवित्पुत्रिका

माताएं अपने पुत्र के कल्याण के लिए पूरे एक दिन निर्जला व्रत रखती हैं। उसके अगले दिन स्नान आदि से निवृत होकर दैनिक पूजा करती हैं और फिर पारण करके व्रत को पूरा करती हैं।

डिस्क्लेमर

”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”

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