बिहार विधानपरिषद का चुनाव संपन्न हो चुका है. अब सबकी नजरें चुनाव परिणाम पर टिकी हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधानपरिषद चुनाव का परिणाम सामने आने के बाद BJP और JDU में निकटता बढ़ेगी या फिर कटुता आएगी? वहीं, तेजस्वी यादव की पार्टी RJD के MY समीकरण (मुस्लिम-यादव वोट बैंक) का लिटमस टेस्ट भी होना है.
पटना. बिहार विधानपरिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव संपन्न हो गया है. BJP और JDU ने साथ मिलकर यह चुनाव लड़ा. वहीं, इस चुनाव में भितरघात होने की बात भी कही जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि यदि भाजपा और जेडीयू पर भितरघातियों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो इन दोनों पर इसका क्या असर पड़ेगा? दूसरी तरफ, बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पर भी विधानपरिषद चुनाव परिणाम का असर पड़ सकता है. राजद भविष्य में MY फॉर्मूले पर ही चलेगा या फिर A टू Z की राजनीति की ओर रुख करेगा, इसका भी फैसला हो सकता है. आरजेडी के एमवाई समीकरण का भी लिटमस टेस्ट होगा.
बिहार विधानपरिषद चुनाव परिणाम से न तो सरकार बनना है और न ही सरकार के लिए इससे कोई ख़तरा बढ़ेगा या फिर कम होगा. इसके बावजूद चुनाव परिणाम बिहार में आने वाले समय की राजनीति के लिए कई एजेंडा सेट कर सकता है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि MLC चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार की सियासत में मौजूदा ट्रेंड चलता रहेगा या फिर आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति इससे प्रभावित होगी.
NDA में भितरघात की आशंका
बात सबसे पहले NDA की करें तो MLC चुनाव में JDU और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और दोनों दल के नेताओं ने साथ मिलकर चुनाव प्रचार भी किया था. लेकिन, अंदर की ख़बर है कि कई सीटों पर दोनों दल के बाग़ियों ने NDA उम्मीदवार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था. इसका NDA प्रत्याशी को उठाना पड़ सकता है. दिलचस्प हे कि इसकी जानकारी दोनों दलों के अलाकमान को भी है. हालांकि, वे फ़िलहाल कुछ भी फ़ैसला लेने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसी ही परिस्थितियाँ विधानसभा चुनाव के समय में भी हुई थी, जब JDU और भाजपा के कई उम्मीदवार को पार्टी के ही बाग़ियों की वजह से हार का सामना करना पड़ा था.
अंदरखाने आम है यह चर्चा
विधानसभा चुनाव के समय ऊपर से तो NDA की एकता दिखती थी, लेकिन अंदर ही अंदर बाग़ियों ने खेल ख़राब कर दिया था. आज भी NDA में कई सीटों पर तस्वीर कुछ ऐसी ही दिखती है जो NDA की सेहत के लिए ठीक नही है. परिणाम पर अगर भितरघात का असर दिखता है तो आने वाले समय में JDU और भाजपा के रिश्तों पर इसका असर देखने को मिल सकता है और तकरार भी बढ़ सकता है. इस बात की चर्चा JDU के नेता अंदरखाने करने भी लगे हैं.
MY समीकरण की परीक्षा
अब बात राजद की करते हैं. राजद ने विधानसभा उपचुनाव अकेले दम पर लड़कर साफ़ कर दिया था कि बिहार में असली जनाधार उसी के पास है. अगर कांग्रेस को राजद के साथ रहना है तो उसे राजद के शर्त को मानना होगा. नतीजा कांग्रेस आज की तारिख में राजद से अलग होकर MLC चुनाव अकेले लड़ी. ज़ाहिर है राजद को MLC चुनाव में अकेले लड़ने का फ़ायदा और नुक़सान दोनों उठाना पड़ सकता है. राजद में तेजस्वी युग के बाद कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं. तेजस्वी राजद को परम्परागत MY समीकरण वाली छवि से निकाल कर A TO Z वाली पार्टी बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं. MLC चुनाव में उन्होंने बड़ा दांव खेलते हुए 24 में से 10 उम्मीदवार सवर्ण उतारे.
तेजस्वी का सवर्ण वोट बैंक में पैठ
MLC चुनाव परिणाम यह भी बताएगा की राजद का सवर्ण समुदाय में किस हद तक पहुंच है. अगर परिणाम राजद के मन मुताबिक़ आता है तो राजद के A TO Z की राजनीति को और धार मिलेगा जो NDA के लिए परेशानी का सबब हो सकता है. राजद की कांग्रेस पर निर्भरता और कम हो सकती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि राजद कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहता है तो कांग्रेस सवर्ण उम्मीदवार को उतारने की कोशिश करता है. इससे राजद के वोट बैंक का फ़ायदा मिलता है. लेकिन, अगर राजद को MLC चुनाव में झटका लगता है तो आने वाले समय में राजद फिर से अपने पुराने समीकरण पर ध्यान देने को मजबूर हो सकता है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी उस पर दबाव बढ़ा सकती है. ये परिस्थितियां फिर से कांग्रेस और राजद को एक साथ आने को मजबूर कर सकती हैं.
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